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राजीव गोस्वामी - कहां थे अब तक 'पेंटर बाबू'?

03 Oct, 2020 | Archival Reproductions by Cinemaazi

तीन वर्ष पहले एक फिल्म आयी थी पेंटर बाबू (1983)। इस फिल्म से मनोजकुमार के छोटे भाई राजीव गोस्वामी और मीनाक्षी शेषाद्रि ने साथ साथ फिल्मों में प्रवेश किया था। मगर क्या कारण है कि इन तीन वर्षों में ही स्टारडम की सीढ़ियां चढ़ती हुई मीनाक्षी आनन फानन शिखर पर पहुंच गयी और राजीव वहीं के वहीं रह गये? इस दौरान मीनाक्षी की दर्जन भर फिल्में प्रदर्शित हुई, मगर राजीव परदे पर दोबारा नहीं दिखे?

राजीव का जवाब था, “यह सही है, मगर इसमें मेरा कोई दोष नहीं, सारा दोष हालातों का है, जिनके सामने मैं मजबूर हो गया था। पेंटर बाबू के प्रदर्शन के फौरन बाद पिताजी के आकस्मिक निधन ने मुझे मानसिक रूप से बड़ा आघात पहुंचाया। उस समय मैं कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। इन परिस्थितियों से उबरने के बाद मैंने ओम शांति  के लिए लेखक सूरज सनीम के साथ काम शुरू किया, मगर बीच में ही रोकना पड़ा। इस फिल्म का मुख्य पात्र किसी प्रदर्शित फिल्म (जिसका नाम मैं नहीं लेना चाहता) में हूबहू दिखाया गया था।”

सदमे पर सदमा

“बाद में देशवासी (1991) की स्क्रिप्ट पर काम शुरू किया। इस फिल्म के लिए पिछले साल 18 जुलाई को गाने की रिकार्डिंग करना चाहता था। पर 11 जुलाई 1984 को सदा सदा के लिए मैं अपनी मां के प्यार से वंचित हो गया। यह मेरे जीवन का दूसरा बड़ा सदमा था। चूंकि मेरी मां की बड़ी इच्छा थी कि मैं इस फिल्म को शुरू करूं, इसलिए इसका मुहूर्त 27 जुलाई ’85 को नियत तिथि पर किया गया। लेकिन इन दिनों दुर्धटनाओं से मैं मानसिक रूप से इतना टूट चुका था कि काम करने की स्थिति में नहीं था।

“इन सदमों से उबरने के बाद मैंने हाल ही में काफी संतोषजनक काम किया है। देशवासी का पेपर वर्क खत्म करके शूटिंग शुरू कर दी है। कलियुग की रामायण (1987), जिसमें मेरी मुख्य भूमिका है, लगभग पूर्ण हो चुकी है, पिछले दिनों क्लर्क (1989) की भी शूटिंग की। कुल मिला कर इस समय मैं काफी व्यस्त हूं।”

“ये सारी फिल्में आपके घर की फिल्में हैं। बाहर के निर्माताओं ने अनुबंधित क्यों नहीं किया?” कुछ देर तक वे सोचते रहे फिर बोले, “ऐसा नहीं है कि बाहर के निर्माताओं ने पेशकश ही नहीं की! पेंटर बाबू  के बाद मेरे पास कई फिल्मों के प्रस्ताव आये थे, मगर किसी की कहानी अच्छी नहीं थी, तो किसी में मेरी भूमिका अच्छी नहीं थी, इसलिए मैंने उन्हें स्वीकार नहीं किया। ’राम तेरा देश’ और ’पुराना मंदिर’ ऐसी ही फिल्में थी, जिन्हें मैंने ठुकरा दिया था।”
 

Image of Rajiv Goswami

मैं घबराता नहीं!

“जिस समय आपकी पेंटर बाबू  प्रदर्शित हुई थी उन दिनों न तो अनिल कपूर, सनी देओल या जैकी श्राफ ही फिल्म आकाश पर उभरे थे और न ही गोविंदा, रोहण कपूर, करन शाह तथा राजन सिप्पी जैसे सितारों की ही भीड़भाड़ थी। इसलिए आज की तुलना में उन दिनों फिल्मों में जगह बनना आपके लिए अपेक्षाकृत ज्यादा आसाथ था। क्या आप यह नहीं महसूस करते कि उन दिनों की तुलना में आपको आज ज्यादा स्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है?”
पेंटर बाबू की असफलता के बाद तीन साल तक राजीव गोस्वामी के कैरियर में एक अजीब सी खामोशी छायी रही। अब वे फिर से  कलियुग की रामायण, क्लर्क और देशवासी से अभिनय के मैदान में कूद पड़े हैं। मगर इस बीच क्या कर रहे थे राजीव गोस्वामी...?

“मैं वक्त और भाग्य पर विश्वास रखता हूं। जो भाग्य में लिखा होगा, वही होगा! स्पर्धा उस समय भी थी और आज भी है। स्पर्धा से मुझे कोई डर नहीं लगता। स्पर्धा किस क्षेत्र में नहीं है? जिन कलाकारों के आपने नाम गिनाये उनसे मैं बिलकुल नहीं घबराता। उनके अभिनय का अलग अंदारज है, उनकी अलग इमेज है और मेरी अलग!”

राजीव की अभिनय शैली उनके बड़े भाई मनोजकुमार से काफी मिलती जुलती है। पेंटर बाबू  की असफलता का एक मुख्य कारण शायद यह भी था। क्या राजीव जानबूझ कर अपने भाई की नकल करते हैं?

“चूंकि वे मेरे भाई है इसलिए हमारे चेहरों में समानता स्वाभाविक है। शायद इसीलिए लोगों को लगा हो कि मैं उनकी नकल कर रहा हूं। इसके अलावा इस फिल्म में मेरी भूमिका जमाने भर के ठुकराये हुए आशिक की, गंभीर किस्म की थी। इसलिए मुझे संवाद काफी धीमे स्वर में बोलने पड़े थे। जो मनोजजी की संवाद अदायगी की शैली से काफी मिलते जुलते थे। अब आप मुझे मेरी आगामी फिल्मों में बिलकुल अलग रूप में देखेंगे। उनमें मैंने अपनी संवाद अदायगी और अभिनय शैली में काफी परिवर्तन किय है। मनोजजी के निर्देशन में बन रही फिल्म ’क्लर्क’ में मैं एक ऐसे गरीब लड़के की भूमिका कर रहा हूं, जो अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण के खिलाफ लड़ता है। ’कलयुग की रामायण’ में माधवी के साथ रोमांटिक हीरो की भूमिका कर रहा हूं। देशवासी  में मेरी जमींदारों की राजनीति और ग्रामीण समाज के दकियानूसी ढांचे के खिलाफ लड़ने वाले नौजवान की भूमिका है। इसमें पूनम ढिल्लों मेरी नायिकिा हैं। इस फिल्म का निर्देशन भी मैं ही कर रहा हूं।”

दो नावों पर सवार

“आप अभिनय के साथ साथ निर्देशन भी कर रहे हैं, यानि एक साथ दो नावों पर सवारी! क्या इससे अभिनेता के रूप में आपका कैरिअर प्रभावित नहीं होगा?”

“यह लोगों की गलतफहमी है कि अभिनय और निर्देशन साथ साथ नहीं किया जा सकता। जब वी. शांताराम, राज कपूर, मनोजकुमार और फीरोज खान जैसे लोगों ने अभिनय व निर्देशन साथ साथ सफलतापूर्वक किया है, तो मैं क्यों नहीं कर सकता? मुझे अपनी प्रतिभा पर पूरा भरोसा है। मैं इनकी तरह सफल होकर रहूंगा।” आत्मविश्वास के साथ राजीव ने जवाब दिया।

This article was originally published in Madhuri magazine's 5 December 1986 issue. 
The images used in the article are taken from the original article.

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