जे बी एच वाडिया (J B H Wadia) - वचन न जाए
जिन निर्देशकों के साथ मैंने आज तक काम किया है, उनकी चर्चा यदि मैं ऐसे निर्देशकों से आरंभ करूं जिन्होंने हिट फिल्में बनायी हैं, तो प्रकाश मेहरा का नाम सब से पहले आना चाहिये. उनकी गिनती आज हिंदी फिल्मों के सब से ज्यादा सफल निर्देशकों में होती है. फिर पाठकों को भी इसी में आनंद आयेगा, क्योंकि सब ही आजकल केवल सफल व्यक्तियों के विषय में पढ़ना पसंद करते हैं.
किंतु मैं अपने इन लेखों का क्रम जे.बी.एच. वाडिया की चर्चा से आरंभ करने लगा हूं, जो इन दिनों फिल्मों तो नहीं बना रहे पर हिंदी फिल्मों के इतिहास में उनका नाम अवश्य लिखा मिलेगा.
मैंने उनके साथ काम किया है, इस बात पर मुझे गर्व है. चाहे जो कुछ भी मैंने उनकी फिल्म के लिये लिखा था वह परदे पर नहीं आया, कारण यह कि वह फिल्म बीच में ही बंद हो गयी जो उन्होंने मुझ से लिखवायी थी.
इस पर भी उनके साथ काम करने का अवसर मुझे मिला. इसे मैं अपने जीवन की एक उप्लब्धि मानता हूं. इसीलिये मैं अपने लेखों की इस लड़ी का शुभारंभ जे.बी.एच. वाडिया की यादों से कर रहा हूं, जो एक उच्च कोटि के निर्देशक तो हैं ही, एक उच्च कोटि के व्यक्ति भी हैं.
आदर बढ़ता गया
मेरे मन में उनका आदर इतना समय बीत जाने पर भी कम नहीं हुआ. बढ़ा ही है. क्योंकि इस बीच फिल्मी दुनिया में मेरा पाला ऐसे लोगों से पड़ा जो जमशेद वाडिया के आगे मुझे बहुत छोटे, बहुत ओछे लगे हैं.
’अरमानों की दुनिया ’ नाम था उस फिल्म का जिसके संवाद जमशेद वाडिया ने मुझसे लिखवाये थे. ये कोई दस वर्ष पूर्व की बात है. उन दिनों के चोटी के फिल्मी सितारे और टैक्नीशियन उन्होंने अपनी फिल्म के लिये एकत्र कर लिये थे. तब राजेश खन्ना सुपर स्टार कहलाते थे. उनको हीरो लेकर जमशेद वाडिया ने उस समय की लोकप्रिय फिल्मस्टार मुमताज को उनकी हीरोइन बनाया था.
फिल्म की कहानी गुलशन नंदा की थी. पटकथा जमशेद वाडिया ने स्वयं तैयार की थी, और अपनी ऊंची शिक्षा और गहरे अनुभव के जौहर उसमें दिखाये थे. आर.डी. माथुर जो उन दिनों ’मुगले आजम’ की बेजोड़ फोटोग्राफी के बल पर चोटी के कैमेरामैन माने जाने लगे थे, छायाकार थे और कल्याणजी आनंदजी उसके संगीत निदेशक थे. यूं उस समय को देखते हुए वह एक बड़े बजट की फिल्म बन रही थी.
’अरमानों की दुनिया ’ की पांच रीलें बन चुकी थीं, दो गाने भी रिकार्ड किये जा चुके थे, और फिर एक बड़ा महंगा सैट वाडिया ब्रडर्स के अपने बसंत स्टूडियो में खड़ा किया गया था. उसमें भी हीरो और हीरोइन दोनों को एक साथ काम करना था, उनका कुछ काम शिवकुमार के साथ होना था, जो इस फिल्म के हीरो नं. 2 थे. राजेश शूटिंग पर पहुंच गये, हीरोइन का इंतजार होता रहा. शिफ्ट दस बजे सबेरे से छः बजे शाम तक वाली थी. पर जब मुमताज दोपहर तक भी नहीं पहुंची, तो राजेश का पारा गरम होने लगा. उनका गुस्सा कम करने के लिए मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वह थोड़ी देर नींद ले लें. हम सबको डर था - कहीं ऐसा न हो कि जैसे ही हीरोइन घर से आये थे हीरो साहब उनसे बदला चुकाने के लिये अपने घर लौट जायें. इसलिये जब हीरो मेरा कहा मान कर विश्राम करने अपने मैकअप रूम में चले गये, तो हम सब ने इतमीनान का सांस लिया.
इस बीच मुमताज के लिए भाग दौड़ होती रही. उनके घरवालों का कहना था कि वह बसंत स्टूडियो ही गयी हैं. और यहां वह पहुंची नहीं थी.
इसलिये प्रश्न था कि रास्ते में कहां गुम हो गयीं?
बहुत खोजने पर भी जब उनका कहीं पता न चला, तो हम लोगों के दिल में कई प्रकार के डर उठने लगे. फिर लंच ब्रेक का एक घंटा भी बीत गया. हीरोइन फिर भी गायब!
पैक अप
जमशेद वाडिया ने पैकअप का आडर दे दिया. राजेश को जगाया गया. वह नींद ले कर उठे थे, इसलिये उनका मूड ठीक हो चुका था. परंतु जैसे ही उन्हें खबर दी गयी कि पैकअप हो गया है, उनका पारा फिर चढ़ गया. और जब वह घर के लिये चलने लगे, तो उनका गुस्सा कपड़े फाड़ देने की सीमा तक पहुंच चुका था. यूनिट के सब आदमी अपने अपने घरों को चल दिये, इस आशा को साथ लिये कि कल सब ठीक ठाक हो जायेगा।
वह कल फिर नहीं आयी. उलटा हम सब धक से रह गये जब हमारे कान में यह भनक पड़ी कि यह सैट ही टूटने वाला है. ठीक ठीक बात का तो किसी को पता नहीं चलने पाया. और जमशेद वाडिया से पूछने की किसी में हिम्मत नहीं थी.
बसंत स्टूडियो में निर्देशक को बड़ा दबदबा हुआ करता था, चाहे उन दिनों निर्माता निर्देशकों पर बुरा वक्त आ चुका था, और फिल्मी सितारे उन पर राज करने लगे थे. फिर भी जमशेद वाडिया से ऐसी बात पूछना उनसे घनिष्ठता दिखाने जैसा था और इसकी वहां किसी को अनुमति नहीं थी. वैसे सुनने में तो यहां तक आया था कि मुमताज ने यह फिल्म ही छोड़ दी है, और एक सप्ताह के भीतर ही इसकी पुष्टि भी हो गयी जब जमशेद वाडिया ने उस महंगे सैट को तोड़ देने का निर्देश दे दिया.
मैं नया नया बसंत पिक्चर्स में काम करने आया था, इसलिये वहां के टैक्नीशियनों से ज्यादा आजाद था. जैसे जमशेद वाडिया आजाद था. जैसे जमशेद वाडिया मेरे लिये हौआ नहीं थे, वैसे उनका आदर करने में मैं किसी से पीछे नहीं था. मैंने सीधे उन्हीं से इस दुर्घटना के विषय में पूछ लिया.
मुमताज नहीं चाहिए
वह बड़ी गंभीरता से बोले “हां, मुमताज अब ’अरमानों की दुनिया ’ में काम नहीं करेंगी. लेकिन उन्हें दोषी क्यों ठहराया जाये? आजतक तो बड़े बड़े निर्देशक भी फिल्मी सितारों के दरबारी बने उनके हजूर में हाथ जोड़े खड़े नजर आते हैं. और दिन हो या रात, वह उनकी किसी भी आज्ञा का पालन करने को उत्सुक रहते हैं. मैं तो बस अपने काम में ही विशेषज्ञ हूं, पर मेरी योग्यता आज के फिल्मी सितारों के लिये पर्याप्त नहीं है.”
“फिल्मी दुनिया में बहुत कुछ ऊपर नीचे होने वाला है. अभी तक निर्देशक साधारण कलाकारों को भी फिल्मी सितारे बना दिया करते थे. अब इसके उलट हुआ करेगा. फिल्मी सितारे जिसे चाहेंगे वह निर्देशक बन जाया करेगा. और जिस दिन से ऐसा होने लगेगा, उस दिन से फिल्मी दुनिया का खुदा ही मालिक है.”
जमशेद वाडिया की यह भविष्यवाणी कितनी ठीक निकली. आजकल के निर्देशकों को देखिये जो बरसात के मेढकों के समान उमड़ आये हैं. इनमें से प्रत्येक पहले निर्देशक कहलाने और फिर निर्देशक बने रहने के लिये किसी न किसी फिल्मी सितारे का आभारी है. इसे छोड़ इनके पास निर्देशक होने का कोई गुण नहीं है. फिल्मी सितारों की सहायता न रहे, तो ये बिना बैसाखी के अपंगों जैसे पड़े रह जायें! और जनता को इनकी अनुपस्थिति का भी पता न चले.
दूसरी ओर जमशेद वाडिया जैसे निर्देशक जनता वर्षों याद रहेंगे, जिन्होंने कितने ही साधारण कलाकारों को उठा कर फिल्मी दुनिया के सितारे बना दिया.
जमशेद वाडिया वह दुर्घटना झेल गये, परंतु राजेश को यह अपना व्यक्तिगत अपमान लगा. उन्होंने जमशेद वाडिया से कहा, “मुमताज का जितना काम अब तक हुआ है, उसे आप काट दीजिये और उसकी जगह एक दूसरी हीरोइन ले कर मेरे साथ वह सीन रीशूट कर लीजिये.”
जमशेद वाडिया दूसरी हीरोइन ढूंढने निकले. वैसे तो उन दिनों की जितनी भी चोटी की हीरोइनें थीं, उनमें से प्रत्येक राजेश खन्ना के साथ काम करने को उत्सुक थी, पर उस फिल्म के लिये शूटिंग की जो तिथियां राजेश ने दी हुई थीं, उन तिथियों में सब बड़ी हीरोइनें व्यस्त थीं. इसलिये जमशेद वाडिया ने एक उभरती हुई हीरोइन रेखा को लेना तय किया, जिसे फिल्मों में आये थोड़े ही दिन हुए थे, और इसलिये उसकी जी चाहे जितनी तिथियां शूटिंग के लिये मिल रही थीं.
रेखा के उद्गार
इसके अतिरिक्त वह जमशेद वाडिया का उपकार मानते थकती नहीं थी क्योंकि वह सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ हीरोइन बन कर आने का उसका सपना साकार कर रहे थे. जब उन्होंने रेखा से बातचीत तय करके उसे साइन किया, उस समय रात काफी बीत चुकी थी. फिर भी उन्होंने राजेश को उसी समय फोन करके सूचित करना चाहा. राजेश घर पर नहीं थे. किसी पार्टी में गये हुये थे. इसलिये उन्होंने सोचा कल सवेरे मैं स्वयं जाकर राजेश को ये शुभ समाचार दूंगा.
परंतु होनी को तो हो कर रहना था. या यूं कहिये कि जमशेद वाडिया के भाग्य में अभी और दुख झेलने लिखे थे. उस रात जिस पार्टी में राजेश गये हुये थे, उसी में रेखा भी निमंत्रण थी. वहां न जाने किस बात पर उन दोनों में बड़ा जबर्दस्त झगड़ा हो गया. और जैसा ऐसे झगड़ों के परिणामस्वरूप हुआ करता है, उन दोनों ने प्रतिज्ञा कर ली कि वह कभी एक दूसरे के साथ काम नहीं करेंगे.
पार्टी छिन्न भिन्न हो गयी. जिसने पार्टी दी थी, उस बेचारे को बहुत दुख हुआ. परंतु वह उस दुख के आगे कुछ भी नहीं था जो जमशेद वाडिया को उठाना पड़ा. उन्हें क्या पता था कि रात ही रात में काया पलट हो गयी है. वह तो प्रसन्नचित अगले दिन सवेरे राजेश को ये शुभ समाचार देने पहुंच गये कि मैंने रेखा को साइन कर लिया है. इसके पश्चात राजेश और जमशेद वाडिया में जो बातचीत, जो गरमगरमी हुई होगी, उसका अनुमान आप स्वयं लगाइये.
वहां से लौटने पर जमशेद वाडिया को रेखा से फिर मिलने की कोई आवश्यकता नहीं थी. कितने ही निर्माता निर्देशक फिल्मी सितारों को साइन करके गोल हो जाते हैं. किंतु जमशेद वाडिया उन लोगों में से नहीं हैं. वह रेखा के पास गये, और उसको बताया कि उनके दृष्टिकोण से कोंट्रैक्ट एक वचन होता है. इसलिये उन्हें रेखा के साथ किये हुये कोंट्रैक्ट के पूरा न होने का दुख है. पर वह बेबस हैं. वह चाहें भी तो अब उसे लेकर ’अरमानों की दुनिया ’ नहीं बना सकते, क्योंकि राजेश ने भी वह फिल्म छोड़ दी है.
वचन न जाये
“लेकिन फिर भी तुम मजबूर करोगी” उन्होंने रेखा से कहा, “तो मैं अपनी बात से पीछे नहीं हटूंगा. मैंने तुम्हारे साथ जो कोंट्रैक्ट किया है, उस पर मेरे हस्ताक्षर हैं. और अपने हस्ताक्षर मेरे लिये पुण्य हैं, क्योंकि इसमें मेरे नाम के साथ मेरे पिताजी के नाम के अक्षर भी हैं, और मेरे उन पुरखों का नाम भी मेरे हस्ताक्षर के साथ जुड़ा हुआ है जिनसे मेरे परिवार का नाम चलता है!”
इतनी पवित्र मिट्टी के बने हुए हैं जे.बी.एच. वाडिया! और कितनी घटिया मिट्टी की बनी हुई है रेखा. आप ही अनुमान लगा लीजिये, जिसने फिर भी उन्हें मजबूर किया कि वह अपने हस्ताक्षर की लाज रखें; और उसे हीरोइन लेकर एक फिल्म बनायें! जबकि दूसरी ओर रेखा ने स्वयं अपनी प्रतिज्ञा का पालन नहीं किया और आज वह एक नहीं अनेक फिल्मों में राजेश के साथ काम कर रही है!
जमशेद वाडिया ने अपना वचन निभाया. उन्होंने रेखा को लेकर ’साज और सनम’ बनायी. अलबत्ता मन से नहीं बना पाये. और बनाते भी कैसे? ’अरमानों की दुनिया ’ का जो कर्ज उनके ऊपर चढ़ा हुआ था, इधर इस फिल्म के लिये उन्हें और कर्ज लेना पड़ रहा था. परिणाम यह हुआ कि ’साज और सनम ’ बुरी तरह फेल हुई, और उनके लिये जंजाल बन गयीं.
लोग कहते हैं इन दो फिल्मों में, जिनमें से एक अधूरी रह गयी, और दूसरी पूरी होकर पिट गयी, जमशेद वाडिया को सोलह लाख की मार पड़ी. कुछ लोगों के विचार में घाटा इस से भी अधिक हुआ था. ठीक ठीक किसी को पता नहीं चलने पाया. क्योंकि जमशेद वाडिया ने बदनामी होने से पहले अपनी जायदाद बेच कर पूरा कर्जा चुका दिया था.
वह दिवालिया भी हो सकते थे. कितने ही निर्माता इस से कहीं छोटी रकमों के लिये दिवालिये बन जाते हैं. इतना ही नहीं, कुछ लोग तो दिवाला निकाल कर नये नाम की कंपनियां खोल डालते हैं. और बड़ी बेशर्मी से बिजनेस करते रहते हैं. किंतु जमशेद वाडिया एक शरीफ आदमी हैं. उन्होंने सारा कर्ज उतार कर अपनी इज्जत बचा ली. और फिल्में बनानी बंद कर दीं.
उन्होंने किसी को यह कहने की छूट नहीं दी कि जमशेद वाडिया के हस्ताक्षर का मोल तो उस कागज जितना भी नहीं जिस पर उन्होंने साइन किया है. अपने कर्ज की एक एक पाई चुका कर जे.बी.एच. वाडिया ने साबित कर दिया कि उनके हस्ताक्षर उनके लिये पुण्य हैं. क्योंकि इसमें उनके नाम के साथ उनके पिताजी के नाम के अक्षर भी हैं, और उन पुरखों का नाम भी उनके हस्ताक्षर के साथ जुड़ा हुआ है जिनसे उनके परिवार का नाम चलता है!
This article was originally published in Madhuri magazine on 9 March 1979 issue. It was written by Anand Romani.
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