When this six feet tall, physically fit actor used to mouth dialogues in his orotund voice on stage facing the legendary Prithviraj Kapoor, the auditorium echoed with applause. People would leave the auditorium humming his songs. He left his home in Churu District of Rajasthan when he was called to Mumbai by his elder brother, Bharat Vyas. Though he wanted to be a playback singer in films, he eventually became an actor as destined.
Brij Mohan Vyas, commonly known as B. M. Vyas says, “I was interested in music and singing since childhood. I am a Shastri [B.A. (Honours)] in Sanskrit. In the early 1940s, my brother asked me to come to Mumbai. When I reached here, I started taking singing classes at Deodhar Sangeet Vidyalaya near Opera House. Around the same time, I sang twenty songs in the Rajasthani play Ramu Chanana. Lyricist Pandit Indra heard my songs and introduced me to owners of Ranjit Movietone, Sardar Chandulal Shah & Gauhar Jaan and I was given the opportunity to sing for the film Bharathari (1944).”
Producer Chandulal Shahs film Bharathari made in 1944 under the banner of Naveen Pictures was directed by Chaturbhuj Doshi. The lead cast included names like - Surendra, Mumtaz Shanti and Arun Ahuja. For this film, B. M. Vyas sang the song Alakh niranjan, jai jai jai manaranjan written by Pandit Indra, under the music direction of Khemchand Prakash. Picturized on Arun Ahuja, this song was very popular at that time. Later he sang songs for films like Naulakha Haar (1953) under the music direction of R.C.Boral and Maharana Pratap (1946) under the music direction of Ram Ganguli. He sang the famous group song Hindustaan ke hain hum hindustaan hamara with Rafi,Shyam Kumar and *Alauddin (*reference: Naushad's filmography by Vishwas Nerurkar) for the film Pehle Aap made in 1944.
B. M. Vyas says “I became an actor by chance. I was recruited in Prithvi Theater as a singer but Prithviraj Kapoor was impressed with my knowledge of Sanskrit and offered me the role of Kanva Rishi in their first play, Shakuntala. With this play, my acting career took off.” B. M. Vyas was part of Prithvi Theatre for eleven years. During that period he not only played important characters in plays like Deewar, Pathan, Gaddaar, Ahuti and Paisa but was also actively involved in their music department.
"Since I never planned my acting career, I took any role that came my way and soon got recognition as a character artist.”
B. M. Vyas says “In that era, the music industry was going through a change due to the entry of newcomers in the field. With increasing acting commitments my singing career took a back seat. Around mid-40s Prithvi Theatres manager Ramesh Sehgal left the theatre group and joined Chetan Anand's company India Pictures. The company was busy with its first venture Neecha Nagar (1946). On Ramesh Sehgal's recommendation, I was chosen to play the part of Kamini Kaushal's elder brother. Actress Zohra Segal played my wife. With this film released in 1946, my acting career in films took off. Since I never planned my acting career, I took any role that came my way and soon got recognition as a character artist.”
B. M. Vyas played the father of various leading artists onscreen like Nargis in Barsaat (1949) and Awaara (1951), Meena Kumari in Baiju Bawra (1952) and Shammi Kapoor in Tumsa Nahin Dekha (1957). He was highly appreciated for his performance as the prisoner in V. Shantaram's famous film Do Ankhen Barah Haath (1957) and as Chanakya in Samrat Chandragupt (1958). His role as Ravan in the successful film Sampoorna Ramayan (1961) became so famous that he was flooded with offers to act in mythological films. Soon he became an integral part of films made by producer-director Homi Wadia who was famous for making mythological, historical and fantasy films under him banner Basant Pictures. After acting in close to 200 films, B.M.Vyas quit acting in the early 1990s after the release of films like Maa (1991) and Daulat Ki Jung (1992).
Father of six daughters and one son, B. M. Vyas lost his wife in December 2008. In 2009 he moved to Kalyan, an eastern suburb of Mumbai after selling his bungalow in Juhu. Born in the year 1920 in Churu (Rajasthan), B. M. Vyas turned 92 on 22 October this year. Though his body reflects his age, it is comforting to see that he still retains the freshness in his voice and memory. Shri B.M.Vyas Ji passed away peacefully at his Kalyan residence today i.e. on 11th March 2013 at 7.30 AM. Team Beete Hue Din's heartfelt condolences.
(Part of Shishir Krishna Sharma's Beete Hue Din blog series)
बादलों सी गरजती आवाज़, छह फ़ुटा क़द, कसरती शरीर, जब वो मंच पर पृथ्वीराज कपूर के सामने खड़े होकर संवाद बोलते थे तो हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता था। दर्शक नाटक में उनके गाए गीतों को गुनगुनाते हुए हॉल से बाहर आते थे। अपने बड़े भाई गीतकार भरत व्यास के बुलावे पर राजस्थान के चुरू ज़िले से आए तो थे वो फ़िल्मों में पार्श्वगायक बनने, लेकिन बिना किसी कोशिश के अभिनय का सिलसिला भी चल निकला।
श्री बृजमोहन व्यास, जिन्हें लोग बी.एम.व्यास के नाम से जानते हैं, बताते हैं, ‘गाने बजाने का शौक़ मुझे बचपन से ही था। ज़्यादा पढ़लिख नहीं पाया, किसी तरह संस्कृत में ‘शास्त्री’ पास किया और 1940 के दशक की शुरूआत में भाईसाहब के पास मुंबई चला आया। यहां आकर मैं ऑपेरा हाऊस के पास मौजूद ‘देवधर संगीत विद्यालय’ में विधिवत रूप से गायन की शिक्षा लेने लगा। उसी दौरान राजस्थानी भाषा के नाटक ‘रामू चणना’ में मैंने बीस गाने गाए जिन्हें सुनकर गीतकार पंडित इंद्र ने मुझे ‘रणजीत मूवीटोन’ के मालिक ‘सरदार चंदूलाल शाह’ और ‘गौहरजान’ से मिलवाया और मुझे फ़िल्म ‘भर्तृहरि’ में गाने का मौक़ा मिला।
निर्माता चंदूलाल शाह द्वारा ‘नवीन पिक्चर्स’ के बैनर में साल 1944 में बनाई गयी फ़िल्म ‘भर्तृहरि’ का निर्देशन चतुर्भुज दोषी ने किया था। मुख्य कलाकार थे सुरेन्द्र, मुमताज शांति, अरूण आहूजा और संगीतकार थे, खेमचन्द प्रकाश। इस फ़िल्म में श्री बी.एम.व्यास ने पंडित इंद्र का लिखा गीत ‘अलख निरंजन, जय जय जय मनरंजन’ गाया था। अरूण आहूजा पर पिक्चराईज़ हुआ ये गीत उस दौर में बेहद लोकप्रिय हुआ था। फिर उन्होंने आर.सी.बोराल के संगीत में फ़िल्म ‘नौलखाहार’ और राम गांगुली के संगीत में ‘महाराणा प्रताप’ में गीत गाए। साल 1944 में बनी फ़िल्म ‘पहले आप’ में नौशाद के संगीत में रफ़ी, श्याम कुमार और अलाउद्दीन (संदर्भ : फ़िल्मोग्राफ़ी-नौशाद/द्वारा विश्वास नेरूरकर) के साथ मिलकर गाया उनका समूह गीत ‘हिन्दोस्तां के हम हैं हिंदोस्तां हमारा’ भी काफ़ी पसंद किया गया था।
श्री बी.एम.व्यास के मुताबिक़, ‘अभिनय के क्षेत्र में मेरा आना संयोग से हुआ, जब संस्कृत के मेरे ज्ञान को देखते हुए पृथ्वीराज कपूर ने मुझे पृथ्वी थिएटर के पहले नाटक ‘शकुंतला’ में कण्व ऋषि की भूमिका निभाने को कहा। हालांकि मैं महज़ एक गायक के तौर पर पृथ्वी थिएटर से जुड़ा था लेकिन नाटक ‘शकुंतला’ से अभिनय का सिलसिला भी चल निकला।‘श्री बी.एम.व्यास क़रीब 11 सालों तक पृथ्वी थिएटर से जुड़े रहे और उस दौरान उन्होंने कंपनी के सभी नाटकों ‘दीवार’, पठान’, ‘गद्दार’, ‘आहुति’ और ‘पैसा’ में अभिनय तो किया ही, इन नाटकों का गीत-संगीत पक्ष भी बख़ूबी संभाला।
श्री बी.एम.व्यास बताते हैं, ‘उस दौर में फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में बहुत तेज़ी के साथ बदलाव आ रहे थे। इस क्षेत्र में नए नए लोग आ रहे थे। अभिनय में बढ़ती व्यस्तताओं की वजह से मेरा गायन कहीं पीछे छूट गया था। उधर पृथ्वी थिएटर के प्रबंधक रमेश सहगल, चेतन आनंद की कंपनी ‘इंडिया पिक्चर्स’ में चले गए थे, जिसके बैनर में उन दिनों फ़िल्म ‘नीचा नगर’ बन रही थी। रमेश सहगल की सिफ़ारिश पर मुझे इस फ़िल्म में कामिनी कौशल के भाई की भूमिका में चुन लिया गया। साल 1946 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘नीचा नगर’ में मेरी पत्नी की भूमिका जोहरा सहगल ने निभाई थी। यहां से मेरा फ़िल्मों में अभिनय का सिलसिला चल पड़ा। चूंकि अभिनय को लेकर मैंने कोई योजना नहीं बनाई थी इसलिए जिस तरह की भी भूमिकाएं मिलती रहीं, मैं बिना नानुकुर किए करता चला गया और जल्द ही एक चरित्र अभिनेता के तौर पर पहचाना जाने लगा।‘
श्री बी.एम.व्यास ने राजकपूर की फ़िल्म ‘बरसात’ और ‘आवारा’ में नरगिस के पिता की भूमिका की तो ‘बैजू बावरा’ में मीना कुमारी और ‘तुमसा नहीं देखा’ में शम्मी कपूर के पिता की। वी.शांताराम की बहुचर्चित फ़िल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ में क़ैदी की और ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ में चाणक्य की भूमिका के लिए भी उन्हें बहुत सराहा गया। अपने समय की बेहद सफल फ़िल्म ‘संपूर्ण रामायण’ (1961) में श्री बी.एम.व्यास का निभाया गया रावण का चरित्र इतना लोकप्रिय हुआ कि उनके सामने धार्मिक फ़िल्मों में अभिनय के लिए प्रस्तावों के ढेर लग गए और बहुत जल्द वो धार्मिक, फ़ैंटेसी और ऐतिहासिक फ़िल्में बनाने के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक होमी वाडिया’ के बैनर ‘बसंत पिक्चर्स’ की फ़िल्मों का अभिन्न अंग बन बैठे। क़रीब 200 फ़िल्मों में अभिनय कर चुके श्री बी.एम.व्यास ने 1990 के दशक की शुरूआत में प्रदर्शित फ़िल्में ‘मां’ और ‘दौलत की जंग’ के बाद अभिनय को अलविदा कह दिया।
छह बेटियों और एक बेटे के पिता श्री बी.एम.व्यास की पत्नी का निधन दिसंबर 2008 में हुआ। साल 2009 में जुहू का अपना बंगला बेचकर वो मुंबई के पूर्वी उपनगर कल्याण में रहने चले गए। साल 1920 में चुरू (राजस्थान) में जन्मे श्री बी.एम.व्यास ने इसी 22 अक्टूबर को अपनी ज़िंदगी के 92 साल पूरे किए है। उम्र का असर उनके शरीर पर भले ही नज़र आने लगा हो लेकिन ये देखकर अच्छा लगता है कि उनकी याददाश्त और आवाज़ की ताज़गी आज भी बरकरार है। आज दिनांक 11 मार्च 2013 की सुबह 7.30 बजे श्री बी.एम.व्यास जी का उनके कल्याण स्थित निवास स्थान पर निधन हो गया। टीम "बीते हुए दिन" की ओर से श्रद्धांजलि।