Her dream was to become a doctor like her father but she was destined to be an actress. On being persuaded by her friend, she participated in a national level talent hunt competition out of curiosity and came out as a winner. As the movie offers started to pour in, she left her medical course midway. Then suddenly she decided to marry and bid adieu to acting. The same well known actress Peace Kanwal of the 1950’s decade is today known as a successful painter and philanthropist.
I have been in regular touch with Peace Kanwal ji through phone. Recently we met again at her residence. Peace Kanwal ji’s father belonged to a Rajput family from Jodhpur and since he was from the family of Raja Man Singh, he had a close relation with the royals of Jodhpur and Jaipur. He was a doctor and worked for a missionary hospital in Agra. He also had his private hospital in Amritsar. Peace Kanwal’s mother was from an elite Rajput family hailing from Jabalpur.
Peace Kanwal says, “My father’s job was such that he spent most of his time in the towns of Texla, Lahore and Rawalpindi in West Punjab (now Pakistan). Due to his association with missionary he converted to Christianity and changed his name from Indriyaas Munshiram Kanwal to Andrew. After his sudden death in the year 1943, we shifted to Delhi. I was born in Amritsar and after studying in Amritsar, Lahore, Rawalpindi and Delhi, I got admission in Ludhiana Medical College”.
(According to Peace Kanwal ji, her date of birth is 16th December, but due to personal reasons, she isn’t willing to share her year of birth.)
She says, “While in Mumbai, I met a girl at the famous Rhythm House at Kala Ghoda which turned into a close friendship. Those were the days when Kardar-Kolynos Talent Contest was a much talked affair everywhere. My friend persuaded me to apply for the competition which I did”.
Peace Kanwal had just completed the first year of her medical course when she got a chance to visit Mumbai with some of her relatives. She says, “While in Mumbai, I met a girl at the famous Rhythm House at Kala Ghoda which turned into a close friendship. Those were the days when Kardar-Kolynos Talent Contest was a much talked affair everywhere. My friend persuaded me to apply for the competition which I did”.
Peace Kanwal says, “I topped the Kardar-Kolynos Talent Contest and signed a two year contract with the Kardar Studio.
This proved to be a huge turning point in Peace Kanwal’s life. Peace Kanwal says, “I topped the Kardar-Kolynos Talent Contest and signed a two year contract with the Kardar Studio. Chand Usmani was the runner up while Shubha Khote and Anita Guha were among other contestants of the contest. Kardar’s Dil-E-Nadan was my first film with Talat Mahmood as hero. This musical hit, composed by Ghulam Mohammad was released in the year 1953”.
"Kardar’s Dil-E-Nadan was my first film with Talat Mahmood as hero. This musical hit, composed by Ghulam Mohammad was released in the year 1953”.
Her next film Barati released in the year 1954. This was again a Kardar Productions film. In this J.K. Nanda directed film Agha was the hero and its music was composed by Roshan. Peace Kanwal says, “One day Mr. Sushil Ruia from one of the well-known business families, the Ruia family accompanied by one of his friends met me on the sets of the film Dil-E-Nadan. He then started coming to meet me often, we came close and married in the year 1955. But after marriage, it became increasingly difficult for me to work in films as Sushil wanted me to be a housewife. I got many offers but Sushil was against my acting in the films. Post marriage, I was rechristened Rajshri.”
Despite all the restrictions, Peace Kanwal occasionally acted in films. Her third film Kismet as the leading lady was released in the year 1956. Ranjan was the hero of this Nanabhai Bhatt directed film and the composer was Chitragupt. In the year 1957, she gave birth to a son. She was then seen playing character roles in films like Barsaat Ki Raat, Nai Maa and Maa Baap released in 1960 and Aarti released in 1962. Peace Kanwal says, “I could not cope with my husband and eventually we separated legally in the year 1968”.
Peace Kanwal always had a passion for social service. She had a long association with the organization named Friends of Children. Now with ample time at hand she also joined the War Widows Organization as vice president which was headed by Nargis Dutt. Simultaneously she also devoted time for the wellbeing of homeless children as president of the Lioness Club-District 323/A-3 for a long time. Peace Kanwal also got recognition as an excellent painter. Her painting exhibitions were frequently held at the Lalit Kala Academy (New Delhi) as well as in many countries including Australia and USA.
Peace Kanwal says, “During one such exhibition held in the year 1976, ex-President of India Mr. V.V. Giri’s grandson (his daughter’s son) Mr.V. Mahesh came in contact with me. Even after the exhibition ended, he often met me. During such meetings he came to know all about my personal circumstances. Eventually he proposed to me and we married in the year 1977”.
Presently, Peace Kanwal lives with her husband Mr.V. Mahesh in a posh building near Juhu Beach in Vile Parle (West). Her son from her first marriage with his family is also based in Mumbai. Peace Kanwal has no ties with the film world now. She acted in the 1979 release Chambal Ki Kasam, 1984 release Aasmaan and was last seen on the big screen in the 1991 release Woh Subah Kabhi To Aayegi. Peace Kanwal is now completely into social service and painting.
English Translation by: Maitri Manthan
Part of Shishir Krishna Sharma's Beete Hue Din blog series.
उनका सपना था पिता की तरह एक सफल डॉक्टर बनने का। लेकिन क़िस्मत में अभिनेत्री बनना लिखा था। अपनी एक दोस्त के उकसावे पर महज़ उत्सुकतावश उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की एक प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और जीत हासिल की। बिना कोशिश किए ही उन्हें फ़िल्में मिलने लगीं तो उन्हें डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। फिर एकाएक उन्होंने शादी करके अभिनय को अलविदा कह दिया। 1950 के दशक की वोही जानी-मानी अभिनेत्री पीस कंवल आज एक सफल चित्रकार और समाजसेविका के तौर पर जानी जाती हैं।
पीस कंवल जी के साथ मेरा संपर्क फ़ोन पर लगातार बना हुआ था। हाल ही में उनके घर पर एक बार फिर से हमारी मुलाक़ात हुई। पीस कंवल जी के पिता जोधपुर के एक राजपूत परिवार से थे। राजा मानसिंह के ख़ानदान से जुड़ा होने के नाते पिता का जयपुर और जोधपुर के राजपरिवारों से बेहद क़रीबी रिश्ता था। पेशे से वो डॉक्टर थे और आगरा के मिशनरी अस्पताल से जुड़े हुए थे। अमृतसर में उनका एक निजी अस्पताल भी था। पीस कंवल की मां जबलपुर के एक संभ्रांत राजपूत परिवार से थीं।
पीस कंवल बताती हैं, “नौकरी के सिलसिले में मेरे पिता का ज़्यादातर समय पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) के तक्षशिला, लाहौर, रावलपिंडी जैसे शहरों में गुज़रता था। मिशनरी के साथ काम करते हुए उन्होंने भी ईसाई धर्म अपना लिया था और उनका नाम इंद्रियास मुंशीराम कवंल से बदलकर एंड्र्यू रख दिया गया था। साल 1943 में पिताजी के अचानक गुज़र जाने के बाद हम लोग दिल्ली आ गए थे। मेरा जन्म अमृतसर में हुआ था और अमृतसर, लाहौर, रावलपिंडी और दिल्ली में पढ़ाई करने के बाद मैंने लुधियाना मेडिकल कॉलेज में दाख़िला ले लिया था।”
(पीस कंवल जी के मुताबिक़ उनकी जन्मतिथि 16 दिसम्बर है। कुछ निजी कारणों से वो अपने जन्म के साल को सार्वजनिक करना नहीं चाहतीं।)
पीस कवंल को मेडिकल की पढ़ाई करते हुए एक साल ही हुआ था कि छुट्टियों के दौरान अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ उन्हें मुंबई आने का मौक़ा मिला। वो बताती हैं, “मुंबई के कालाघोड़ा स्थित मशहूर “रिदम हाऊस” में एक लड़की से मेरी दोस्ती हो गयी। उन दिनों निर्माता-निर्देशक ए.आर.कारदार द्वारा आयोजित किया जा रहा “कारदार-कॉलिनोज़ टेलेंट कॉम्पिटिशन” काफ़ी चर्चा में था और अपनी उस दोस्त के कहने पर मैंने भी प्रतियोगिता का फ़ॉर्म भरकर भेज दिया था”।
ये कदम पीस कंवल की ज़िंदगी का एक अहम मोड़ साबित हुआ। पीस कंवल कहती हैं, “कारदार-कॉलिनोज़ टेलेंट कॉम्पिटिशन” में मुझे पहला स्थान मिला और कारदार स्टूडियो के साथ मेरा दो साल का कॉण्ट्रेक्ट हुआ। उस प्रतियोगिता में दूसरा स्थान चांद उस्मानी ने हासिल किया था। अन्य प्रतियोगियों में प्रमुख थीं, शुभाखोटे और अनीता गुहा। कारदार की “दिल-ए-नादान” मेरी पहली फ़िल्म थी जिसमें मेरे हीरो तलत महमूद थे। ग़ुलाम मोहम्मद द्वारा संगीतबद्ध ये म्यूज़िकल हिट फ़िल्म साल 1953 में रिलीज़ हुई थी”।
साल 1954 में उनकी अगली फ़िल्म “बाराती” रिलीज़ हुई। इसका निर्माण भी कारदार प्रोडक्शंस के बैनर में ही हुआ था। फ़िल्म “बाराती” के नायक आग़ा, निर्देशक जे.के.नंदा था और संगीतकार रोशन थे। पीस कंवल बताती हैं, “फ़िल्म दिल-ए-नादान की शूटिंग मेरी मुलाक़ात मशहूर व्यवसायी “रूईया ख़ानदान” के सुशील रूईया से हुई जो अपने किसी दोस्त के साथ सेट पर आए हुए थे। हरेक मुलाक़ात के साथ हमारी नज़दीकियां बढ़ती चली गयीं और फिर साल 1955 में हमने शादी कर ली। लेकिन शादी के बाद मेरे लिए फ़िल्मों में काम करना आसान नहीं रहा। सुशील चाहते थे कि मैं सिर्फ़ एक गृहिणी बनकर रहूं। मेरे पास फ़िल्मों के ऑफ़र आते थे लेकिन सुशील को मेरा फ़िल्मों में काम करना पसंद नहीं था। शादी के बाद मेरा नाम बदलकर “राजश्री” कर दिया गया”।
तमाम पाबंदियों के बावजूद पीस कंवल को कभीकभार अभिनय के मौक़े मिल ही जाते थे। साल 1956 में बतौर नायिका उनकी तीसरी फ़िल्म “क़िस्मत” रिलीज़ हुई जिसमें उनके नायक रंजन थे। नानाभाई भट्ट के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म का संगीत चित्रगुप्त ने तैयार किया था। साल 1957 में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। साल 1960 में वो “बरसात की रात”, “नई मां” और ”मां-बाप” और साल 1962 में बनी फ़िल्म “आरती” में बतौर चरित्र अभिनेत्री नज़र आयीं। पीस कंवल कहती हैं, “पति के साथ मेरी बहुत ज़्यादा दिनों तक निभ नहीं पायी और 1968 में हम कानूनी तौर पर अलग हो गए”।
समाजसेवा में पीस कंवल की दिलचस्पी हमेशा से रही। वो लंबे समय से “फ़्रेंड्स ऑफ़ चिल्ड्रेन” नाम की संस्था से जुड़ी हुई थीं। समय मिला तो उन्होंने नरगिस दत्त की अध्यक्षता में शहीद जवानों की विधवाओं के हित में काम कर रही संस्था “वॉर विडोज़ एसोसिएशन” का उपाध्यक्ष पद भी संभाल लिया। साथ ही लंबे समय तक लायंस क्लब के डिस्ट्रिक्ट 323/ए-3 की अध्यक्षा के तौर पर भी वो बेघरबार बच्चों के लिए काम करती रहीं। इसके अलावा उन्होंने बतौर चित्रकार भी ख़ासा नाम कमाया। ललित कला अकादमी (नई दिल्ली), ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका समेत देश-विदेश में नियमित तौर पर उनकी बनाई पेंटिंग्स की प्रदर्शनियां आयोजित होती रहीं।
पीस कंवल बताती हैं, “साल 1976 में आयोजित ऐसी ही एक प्रदर्शनी में मेरी मुलाक़ात भूतपूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी के दोहते (बेटी के बेटे) वी.महेश से हुई थी। प्रदर्शनी ख़त्म होने के बाद भी वो अक्सर मुझसे मिलते रहे। उन मुलाक़ातों के दौरान मेरे निजी हालात का भी उन्हें पता चल चुका था। अचानक एक रोज़ उन्होंने मुझसे शादी करने की इच्छा ज़ाहिर कर दी। और फिर साल 1977 में हमारी शादी हो गयी”।
आज पीस कंवल अपने पति वी.महेश के साथ विले पारले (पश्चिम) में, जुहूबीच के पास एक आलीशान इमारत में रहती हैं। पहली शादी से जन्मा उनका बेटा और उसका परिवार भी मुंबई में ही हैं। सिनेमा के साथ पीस कंवल का रिश्ता अब पूरी तरह से टूट चुका है। साल 1979 में बनी फ़िल्म “चंबल की क़सम”, साल 1984 में बनी “आसमान” और आख़िर में साल 1991 में बनी फ़िल्म “वो सुबह कभी तो आएगी” में अभिनय करने के बाद उन्होंने सिनेमा को अलविदा कह दिया था। पीस कंवल अब पूरी तरह से समाजसेवा और चित्रकला में व्यस्त हैं।