indian cinema heritage foundation

कौन सुनेगा इन सिसकती बिलखती प्रतिभाओं का विलाप?

08 Oct, 2020 | Archival Reproductions by Cinemaazi
Anand Soin. Image courtesy: Madhuri, 26 January 1979

आनंद सोईन
 

हमारे यहां हर वर्ष लगभग 400 फिल्में बनती है, जिनमें करीब 125 हिंदी में होती है। मगर इन फिल्मों में बार बार वहीं गिने चुने सितारे दिखायी देते हैं।
 
आठ साल के बाद भी! 
 
 
आनंद सोईन ने पूना फिल्म इंस्टीट्यूट से अभिनय का प्रशिक्षण प्राप्त कर 1971 में फिल्म उद्योग में प्रवेश किया। निर्माता निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी ने उसे नायक की भूमिका के लिए अनुबंधित भी किया, मगर वह फिल्म अब तक शुरू नहीं हुई।

उसकी पहली फिल्म गत दिनों  प्रदर्शित हुई, 'जलन' इस फिल्म में उसकी नायक की भूमिका थी। मगर फिल्म निर्माण के दौरान जाने क्या हुआ कि नायक आनंद की भूमिका दो पात्रों में विभाजित कर दी गयी-आनंद और अनिल। आनंद की भूमिका चंद दृश्यों तक सीमित रह गयी। इसकी बानगी फिल्म में भी देखते को मिलती है जब अंबिका जौहर 'अनिल' को एक जगह 'आनंद' कह कर बुकारती है।
आनंद इसके अतिरिक्त शक्ति सामंत की बहु प्रचारित फिलम 'पाले खां' में भी सहायक भूमिका के लिए अनुबंधित था, मगर यह फिल्म भी आगे नहीं बढ़ पायी।

स्वर्गीय नासिर खान की फिल्म 'दुश्मन हो तो ऐसा' में भी आनंद नायक था। मगर नासिर खान की मृत्यु के बाद यह फिल्म करीब 11 रील बन कर रुक गयी। इसके निर्देशक इकबाल है।

याकूब हसन रिजवी की 'प्यारा दुश्मन' में आनंद ने प्रणयी नायक की भूमिका निभायी है। नायिका है माला जग्गी। फिल्म लगभग पूरी हो चुकी है।

हाल में बेंजमिन के निर्देशन में बननेवाली 'संभावना' में नायक की भूमिका आनंद को सौंपी गयी है।

इनमें किसी फिल्म के प्रदर्शन पर ही कहा जा सकेगा कि उसका प्रशिक्षण और इतने बरसों का संघर्ष क्या रंग लायेगा।

संख्या की दृष्टि से भारत ने फिल्म निर्माण में विश्व के सभी प्रगतिशील कहलाने वाले देशों को पछाड़ दिया है। हमारे यहां हर वर्ष लगभग 400 फिल्में बनती है, जिनमें करीब 125 हिंदी में होती है। मगर इन फिल्मों में बार बार वहीं गिने चुने सितारे दिखायी देते हैं। निर्माता एक ओर नयी प्रतिभाओं के अकाल को लेकर चिल्लपों मचाते है मगर जब अनुबंध करने का समय आता है तो वे किसी एकनिष्ठ भक्त की तरह उन्हीं चंद सितारों की शरण में पहुंचते हैं। खुशी खुशी अपने देवता को काले धन का भोग चढ़ाते हैं शूटिंग की तारीखें पाने के लिए खुशामद करते फिरते है और टिकट खिड़की पर फिल्म की असफलता के बाद फिर एक बार नयी प्रतिभाओं के अकाल की दुहाई देने लगते है। 
 
एक ओर विश्व सिनेमा फिल्म कला की नयी नयी उंचाइयों को छू रहा है तो हिंदी फिल्में विदेशी फिल्मों की भोंड़ी नकल करने में अपने को धन्य मान रही है।

दिशाहीनता


फिल्मों के स्वस्थ विकास के लिए हमारे फिल्मकारों का न तो प्रशिक्षण मिला और न दिशा निर्देश। एक ओर विश्व सिनेमा फिल्म कला की नयी नयी उंचाइयों को छू रहा है तो हिंदी फिल्में विदेशी फिल्मों की भोंड़ी नकल करने में अपने को धन्य मान रही है।

इस स्थिति में सुधार के उद्देश्य से भारत सरकार ने पूना में फिल्म इंस्टीट्यूट स्थापित किया। यहां निर्देशन, पटकथा लेखन, छायांकन, संपादन, अभिनय आदि का विधिवत प्रशिक्षण देना प्ररंभ किया गया। आशा थी कि इस संस्थान से प्रशिक्षण पा कर आनेवाले युवजन फिल्मों को एक नया मोड़ देंगे, उसे सही मायने में स्वस्थ मनोरंजन का माध्यम बनायेंगे।

इस संस्थान को स्थापित हुए करीब 15 साल हो गये। इन पंद्रह वर्षों में लगभग 100 छात्रों को प्रशिक्षण दिया गया, जिन पर एक अनुमान के अनुसार करदाताओं का 5 करोड़ रू. व्यय हो चुका है। मगर फिल्मकला की विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षित इन 900 प्रतिभाशाली युवाओं (जिनमें अभिनय के करीब 150-200 लोग थे) का क्या हुआ? शत्रुध्न सिन्हा, असरानी, शबाना, जया भादुड़ी (अभिनय); के.के. महाजन (छायाकार), नरेन्द्र सिंह (ध्वनी मुद्रक) जैसे बिरले भाग्यशाली ही निकले, जिन्होंने अपनी जगह बनाने में सफलता पायी।


वाह री मृगतृष्णा!


फिल्मों में सफलता का मतलब है अपार धन और यश। इस चकाचैंध कर देने वाली सफलता का लुभावना आकर्षण इन 900 युवा प्रतिभाओं के लिए प्राणलेवा साबित हुआ है। उनके परिवारजनों ने अपना पेट काट काट कर अपने बच्चों को इस संस्थान में सुनहरे भविष्य की आशा में भेजा।

मगर वस्तुस्थिति यह है कि इनकी जवानी के कीमती बरस निर्माताओं के द्वार खटखटाने में गुजर गये। मृगतृष्णा में जीनेवाले यह लोग मारे शर्म के अपने शहर गांव तक नहीं जाते कि यार दोस्त पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे? परिवारजनों को झूठी आशाएं बताते रहते हैं कि 'बस अब चांस मिलनेवाला ही है।' अब तो घर से खर्च मंगाने की भी हिम्मत नहीं पड़ती ।

जो हिम्मत हार गये, निराश होकर, दुनिया भर के ताने उलाहने सुनने की तैयारी कर घर लौट गये। और पेट की आग गुझाने के लिए कोई और व्यवसाय अपना लिया या नौकरी कर ली। कोई मोटर मैकेनिक बन गया, कोई केमिकल्स बेच रहा है, कोई लेख लिख रहा है तो कोई फोटो खींचता फिर रहा है।

मगर जो लोग लौट जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाये वे अब भी बंबई में एड़ियां रगड़ रहे हैं। शाम ढलने के बाद किसी आंटी या अंकल के अड्डे पर नमक के सहारे ठर्रे के कड़वेे घूट (किसी और के खर्च पर) गले के नीचे उतारते हुए हर शाम की तरह आनेवाले कल के सपने सजाने लगते हैं या फिर सारी दुनिया को कोसने लगते हैं।


सरकारी उदासीनता


सबसे दुखद बात है कि जिस सरकार ने इन प्रतिभाओं पर इतना खर्च किया, वह भी उन्हें प्रशिक्षित कर देने के बाद अपना कर्तव्य पूरा हुआ मान संतोष किये बैठी है। सरकार द्वारा नियंत्रित दृश्य श्रव्य माध्यमों, जैसे फिल्म डिवीजन, टेलीविजन, रोडियो आदि में भी इन्हें उचित अवसर नहीं मिल पाता। फिल्म वित्त निगम ने श्री बी.के. करंजिया के कार्यकाल में फिल्म संस्थान से प्र्रशिक्षित प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने की नीति अपनायी थी। मगर तब और आज भी अधिकांश लोग, जिन्हें ऋण दिया गया, कोई और ही थे। उन्होंने संस्थान से प्रशिक्षित प्रतिभाओं का एक तरह से शोषण ही किया, नाममात्र का पारिश्रमिक देकर अवसर प्रदान करने का उपकार अलग से थोपा जबकि संस्थान की इन्हीं प्रतिभाओं को प्रोत्साहन के नाम पर वित्त निगम से राशि प्राप्त की।

भारत सरकार ने गत दिनों पूना फिल्म इंस्टीट्यूट की कार्यप्रणाली में सुधार करने, उसे अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से एक जांच समिति नियुक्त की है जिसके सदस्य निर्माता, निर्देशक, लेखक बासु चटर्जी, नैशनल स्कूल आफ ड्रामा के प्रधान श्री अलकाजी तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी है।

क्या इस समिति से आशा की जाय कि वह सुनहरे भविष्य की मृगतृष्णा में जीती, एड़ियां रगड़ती, सिसकती हुई इन प्रतिभाओं की समस्याओं पर भी गंभीरता से विचार करेगी? ...और अगर भारत सरकार इस संस्थान से हर वर्ष निकलने वाली प्रतिभाओं की खेप को खपाने की व्यवस्था नहीं कर सकती तो बहतर है वह उनकी जिंदगियों से खेलने की बजाय इस संस्थान को ही बंद कर दे।



This article was originally published in 26 January 1979 issue of Madhuri magazine. 

  • Share
774 views

About the Author

 

Other Articles by Cinemaazi

22 Jan,2024

A Painful Parting

18 Oct,2023

Munna

19 Jun,2023

Romance in Our Cinema

07 Jun,2023

Sangam (1964)

25 May,2023

Gandhi: Whose voice?

15 May,2023

Mangal Pandey

02 May,2023

Birbal Paristan Mein

27 Mar,2023

The Film Director?

21 Mar,2023

M Sadiq

20 Feb,2023

Do Dooni Chaar

15 Feb,2023

Rafoo Chakkar

03 Jan,2023

Nav Ratri

03 Nov,2021

An Actor Prepares

03 May,2021

Ankahee: The Unspoken

29 Apr,2021

Children’s Films

04 Nov,2020

Progress In Raw Film

30 Oct,2020

Freedom In Films

03 Sep,2020

Payyal's Lucky Break