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Omar Khayyam (1946)

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  • GenreDrama
  • LanguageHindi
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उमर खय्याम ईरान के एक महान दर्शनिक कवि हुये है। पाश्चात्य विद्वानों ने इनकी कविताओं की विभिन्न रूप से समालोचना की है। किन्तु इस महाकवि की कृतियों की वास्तविकता को न समझकर या उसकी उपेक्षा करके उन्होंने मनमाने रूप से अर्थ का अनर्थ कर डाला। साकी और मयखाने का आधार लेकर समालोचनको ने कवि के वास्तविक जीवन से उनका अमिट सम्बन्ध बताया है। इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों को लक्ष्य में रखकर यह तर्क गले उतर ही नहीं सकता कि आज से लगभग हजार वर्ष पूर्व धार्मिकता में पूर्ण विश्वास रखनेवाला कवि शराबी और वेश्यागामी हो। वह एक सुफि था और सुफियों का जीवन और उनकी कृतियां हमेशा रहस्मयी होती है। रहस्यवाद उनकी कविताओं का धर्म है। साकी और मयखाने के पर्दे के पीछे खय्याम ने एक नग्न सत्य जनता के सामने रखा है। अगर लोग उसे गलत समझें तो यह कवि का दोष नहीं, लोगों की समझ का दोष है।

इसी प्रकार एक बार खय्याम के जीवन काल में भी गलतफहमी हो गई। ईरान की प्रसिद्ध नाचनेवाली, महरू खय्याम की कविता पर मुग्ध होकर उससे प्रेम करने लगी थी किन्तु अल्लाह के रंग में रंगे हुये खय्याम ने उसके लौकिक प्रेम का उत्तर न दिया। महरू को अपने सौन्दर्य पर घमण्ड था। धन और सौन्दर्य ने उसकी आंखों पर पट्टी चढ़ा दी थी, क्रोध के आवेश में उसने खय्याम से बदला लेने का निश्चय किया।

नैशापूर का आमिल गयास बेग महरू पर मरता था और खय्याम को अपना रकीब समझता था। जब से मालूम हुआ कि महरू खय्याम को प्रेम करती है तब वह किसी भी प्रकार खय्याम को मिटा डालने पर उतारू हो गया।

एक दिन महरू ने धोखे से खय्याम को अपने यहां बुलवाया और कामोत्पादक हावभावों के प्रदर्शन से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। किन्तु दृढ़संकल्प खय्याम कब डिगने वाला था? जब महरू स्त्रीत्व की पराकाष्ठा पर पहुँच गई तो खय्याम ने अपना ध्यान उसकी ओर से खैंचने के लिये अपना हाथ दीपक पर रख दिया और उसे जला डाला। यह देखकर महरू की काया पलट हो गई। वह खय्याम के चरणों पर जा गिरी और बार बार अपने कृत्थ के लिये क्षमा चाचना करने लगी। खय्याम ने अपनी स्वाभाविक उदाता से उसे क्षमा कर दिया। महरू खय्याम की परम शिष्या बन गई और इसी महरू का वर्णन खय्याम ने अपनी कविताओं में साकी के रूप में किया। महरू खय्याम के साथ रहने लगी और गुरु के नाते उसकी सेवा करने लगी। किन्तु ये सब गयास बेग को फूटी आँखों भी अच्छा न लगा। उसने अनेक षड़यंत्र रचे उसने खय्याम का घर जलवाया, उसे पिटवाया, शहर से निकलवाया। अपनी जन्मभूमि नैशापूर छोड़कर खय्याम को जंगल में आसरा लेना पड़ा। किन्तु मानवता के सच्चे सेवक खय्याम को अपने लक्ष्य से कौन हटा सकता था? सल्जूक सल्तनत के वजीर की मदद से खय्याम ने एक रिफाहे आम बनवाया जहाँ गरिबों की मदद, बीतारों की दवा की जाने लगी।

खय्याम अपने समय के उच्च कोटि के ज्योतिषी भी थे वहीं एक यन्त्रालय भी बनवाया जहाँ बैठकर नक्षत्रों की गति और गणना पर विचार करने लगे। किन्तु गयास बेग ने उन्हें वहाँ भी चैन से न बैठने दिया। खय्याम ने बादशाह के ऐलान के विरुद्ध भी एक बागी की सेवा की और इसी दोष में अपने दोस्त, सल्तनत के वजीर के हाथों उन्हें फांसी की सजा मिली। अन्त में वे कैसे निर्दोष सिद्ध किये गये, उनकी महानता पर राजा-रंक सबको कैसे विश्वास हुआ, ये सब पर्दे पर चलते फिरते कुछ चित्र आपको बतायेंगे।

(From the official press booklet)

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