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हक और बातिल:- सुलतान अबदुल मजीद और शहनशाह नफकूज की सूरत में एक बार फिर टकरा गये, और जैसा कि होता आया है। आरजी तौर पर ही सही (ताकत से नहीं फरेब से) बातिल कामयाब हो गया। शहजादा अबदुल हमीद अपने खून का आखिरी कतरा भी वतन के लिए बहाने को तैयार था। मगर दूर अन्देश सुलतान और मौलवी बाबा के आगे मजबूर हो गया। जशन फतह में शहजादा हमीद भी कमाल के इसरार से शिरिफ हुआ। नफकूज की बेटी शहजादी जरीन ने हमीद को और हमीद ने जरीन को देखा। दुश्मनी के अन्धेरे में प्यार की किरन फूटी, नजरें मिलीं और दिल वार गाहें इश्क में झुक गये।
मुहब्बत आगे बढ़ती गई और शादी के मंजिल में दाखिल हो गई। जरीन का मंगेतर हाशाम इन्तकाम पर उतर आया। और हमीद के छोटे भाई कासम को कत्ल कर दिया। हमीद की तलवार ने हाशाम की शमाय ज़िन्दगी गुल कर दी। हमीद ने शादी की पहली रात जरीन के महल में गुज़ारी, मगर सुबह वज़ीर आज़म शरजील के हाथों गिरफ़तार हो गया। हमीद को अन्धा करके छोड़ दिया गया। हमीद अन्धा हो गया या नफकूस की हुकूमत। मौलवी बाबा ने हमीद को कहीं दूर भेज दिया। शरजील ने हमीद की बहन शाविरा और मौलवी बाबा की लड़की आबिदा को गिरफ़तार कर लिया। कैदियों को खाना और पानी देने के जुर्म में शहजादी जरीन भी कैद कर दी गई। अबिदा के साथ जरीन को इबादत करते देखकर शरजील ने अपने हब्सी गुलाम फिरोज को हुक्म कर दिया कि उनके शर कलम कर दें। दरिया में रहेमत जोस में आया। फिरोज का रंग शपाह या दिल में और कमजोरो का तरफदार फिरोज भी गिरफ़तार हो गया। मौलवी बाबा ने एलाने जंग कर दिया।
फिरोज कौन था?
शहजादा हमीद कहां गया?
नफकूज का क्या अन्जाम हुआ?
जंग का क्या अन्जाम हुआ उसका जवाब आपको फिल्म "अरब का सितारा" देंगी।
(From the official press booklet)