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“सोने की चिड़िया” एक अनाथ एवं निस्सहाय युवती की कहानी है जिसे जीवन में मनुष्य के उन दोनों पहलूओं का अनुभवप होता है जो सम्पत्ति आते या जाते सदैव बदला करते हैं।
कहानी की नायिका, लक्ष्मी, अनाथ हो जाने पर, अपने चाचा के यहाँ शरण लेती है जहाँ उसका जीवन तानों, व्यंगों और आलोचनाओं में ही व्यतीत होता है। वह भारस्वरूप समझी जाती है। उससे छुटकारा पाने के लिये यहाँ तक होता है कि उसका चचेरा भाई उसका सौदा शहर के एक अति निकृष्ट व्यभिचारी के साथ कर डालता है।
परन्तु इसी विकट परिस्थिति में उसका भग्योदय होता है। उस कुंचकी नर-पिशाच से बचने के लिये लक्ष्मी रंगमंच की शरण लेती है और रंगमंच से उठकर देश की अति लोकप्रिय सिनेतारिका बनने में उसे कोई समय नहीं लगता। उसकी सारी काया ही बदल जाती है और अब वही सग्बन्धी गण जो उसे घृणा के दृष्टि से देखते थे उसके ऐश्वर्य में हाथ बटाने के हेतु उसके अनन्य भक्त बन जाते हैं।
धन और वैभव होते हुए भी, लक्ष्मी के कान प्यार के दो शब्द सुनने के लिये सदैव आतुर रहते हैं और अमर, जो एक अवसरवादी है, इस परिस्थिति का पूरा लाभ उठाकर उसे अपने चंगुल में फांस लेता है। लक्ष्मी आत्मसमर्पण कर बैठती है- अन्त में यही जानने के लिये कि यह सक स्वांग अमर ने उसकी आत्मा पाने के लिये नहीं वरन् उसकी सम्पत्ति अपरहण करने के लिये ही किया था.... लक्ष्मी को बड़ा आघात पहुँचा है और निराशा और विवशता के उस क्षण में वह जीवन से विदा ले लेने का संकल्प कर लेती है।
परन्तु किसी के दो शब्द उसे पुनः आश्वासन दिलाते हैं और जीवन में नवीन आशा का संचार करते हैं।
वे शब्द किसके हैं? इसका उत्तर रजतपट पर मिलेगा.....।
(From the official press booket)