वह सुंदरता का पुजारी था। फूलों में, वृक्षों में, सितारों में और चांद में उसे सुंदरता की तलाह थी।
एक दिन प्रकृति के इन दृष्यों में सुन्दरता के पुजारी को सुन्दरता की देवी मिल ही गई। शांता के सौंदर्य में प्रकृति की सारी सुन्दरता सिमट आई थी और किशन के दिल में संसार भर का प्यार और फिर रूप और प्रेम सारे संसार को भूल कर एक दूसरे में खे गए।
वह सौंदर्य का पुजारी, सुन्दरता का दीवाना चाहता था कि उसकी पत्नी का सौंदर्य पूणम के चांद की भांति चमकता और खिले फूल की भांति इसी प्रकार महकता रहे।
उसका प्रेम जीवन के हर ऊंच नीच का मुकाबला करता रहा। कोई घटा उसके चांद को ओझल न कर सकी और परिवर्तन का कोई झोंका उसके कवल पर एक बाल भी न डाल सका। उसका प्रेम शांता के सौंदर्य का रखवाला बना रहा।
परंतु........... विवाह की छटी वर्षगांठ पर कवल की टहनी एक नई कली के बोझ से लचक गई। उसने कहा- “यह कली नहीं, शांता के सौंदर्य-पुष्प का भंवरा है। यह रूप और यौवन को चुस लेगा। मैं इस कली को खिलने से पहले ही मसल दूंगा।” पयार के मतवाले पर एक नया पागलपन सवार हो गया। ममता और प्रेम के उस भयानक टक्कर ने किशन और शांता को एक दूसरे से जुदा कर दिया। और सौंदर्य के पुजारी का मंदिर फिर पहले की तरह सुनसान रह गया।
शांता की जुदाई और पहले बालक की उत्पत्ति ने उसके सपने टुकड़े 2 कर दिये। सपनों के इन टुकड़ों से एक नया सत्य-एक महान सत्य सितारा के रूप में उभरा और सौंदर्य का पुजारी प्रेम का एक नया सपना देखने लगा। और फिर वह स्वप्न धीरे 2 एक सत्य बनता चला गया। और फिर हर वस्तु सत्य होती चली गई।
किस प्रकार?? यह रजतपट पर देखिये।
(From the official press booklet)