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Shola Jo Bhadke (1961)

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जिन्दगी से भरपूर जंगल में जहाँ आम तौर से ताकत की हुकुमत होती है। जहाँ सरकशी राज करती है। जहाँ बिमारियाँ भगवान मानी जाती है, वहाँ इन्सानियत और जिन्दगी का संदेश पोहोचाना कोई मामूली बात नहीं।

जंगल की सरहद के पूलीस थाने का इनचार्ज विजयसींग अपनी धून का पक्का था उसके पोहोंचने से पहले उसकी बहादूरी की दास्तान उन लोगों तक जो अपनी गरज के लिये जंगलीयों को अपना गुलाम बनाये रखना चाहते थे-पोहोंच गई थी। उन्होंने एका कर लिया था कि विजय को उसके मकसद में कभी कामयाब न होने देंगे। विजय की राह में कई रूकावटें थी। एक तो सबेसे बड़ी रूकावट यही थी के जंगली अपनी ना समझी की वजह से पूलीस को अपना दुश्मन समझती थी। इसलिये विजया-जिसके दिल में जनता की सेवा की लगन लगी हुयी थी अपने भाई विजय का मकसद लेकर आगे बढ़ी। विजया ने खतरनाक असलहें लेकर चलने से इन्कार कर दिया वो सेवा और शांती के हत्यारों के साथ अपनी मंझील की तरफ बढ़ी। नजर के सामने जंगल था-दिल के सामने इन्सानियत और इन्सान थे। कदम कदम पर खतरा था-वो जंगल के एक सरदार केशो की हद में दाखिल हुयी। सबको उसका अना बूरा मालूम हुवा, मगर विजया ने सेवा और शांन्ति के हत्यारों से केशो का मन जित लिया। आगे बढ़कर शाहू के टापू में पोहोंची मगर वहाँ मूसीबत ये हुयी के विजया के पोहोंचते ही जंगल में कोलरा की बिमारी फूट पड़ी, जंगलीयों ने समझा के शहरीयों के आने की वजह से जंगल की देवी नाराज हो गई। विजया की कामयाबी की खबर जंगल में आग की तरह फैल चूकी थी।

जंगल का सबसे खतरनाक सरदार कालू जिसकी ताकत के सहारे जमींदार जी रहे थे और जिसे जमींदारों के चमचे लल्लू की जरीये काफी दौलत और संदेशा पोहोंच चुका था। विजया को खत्म कर देने के लिये तय्यार हुये। उसने अपने भाई चंद्रा को मूकाबले के लिये भेजा। शाहू के इलाके में चंद्रा के आने की इत्तला से सख्त घबराहट फैल गई। लेकिन जब चंद्रा बिजया के सामने आये तो उस पर जिन्दगी और इन्सानियत की हकीकत जाहीर हुयी। विजया ने आपस की बढ़ती हुयी नफरत को मोहब्बत में बदलने के लिये तरकीब की के शाहू को चंद्रा और चांदनी की शादी के लीये तय्यार कर दिया। चांदनी इन्कार कर रही थी लेकिन विजया के समझाने से अपनी कौम की भलाई के लिये चांदनी मान गई। चंद्रा की मां भी विजया के सामने अपने दिल की भेंट लेकर आई। लेकिन जब कालू ने ये देखा तो खूद उसने तलवार उठाई। चन्द्रा और चांदनी की शादी रोकने के लिये आगे बढ़ा उसने अपनी जिन्दगी का आखरी दांव खेला, जंगल गरज रहा था- सीने में दिल कांप रहे थे, जंग हो रही थी। उसी वक्त एका एक मालूम हुवा के कालू विजया को उठाकर ले गया सबके हौसले टूट गये। विजयसींग को खबर मिलते ही वो अपनी ताकत लेकर आगे बढ़ा- सब निराश हो रहे थे। इस निराशा में आशा की किरन किस तरह फूटी, विजया की जान किस तरह बची, जंगल में किस तरह इन्सानियत को अपनाया, जनता राज किस तरह कायम हुआ-इन तमाम सवालात का जवाब आप सिनेमा के परदे पर देखिये।

(From the official press booklet)