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"लड़का" हँसी खुशी की जीती जागती मिसाल था। और "लड़की" शोख़ी ओ शरारत का हसीन मिलाप।
"लड़के" ने अपनी माँ को वचन दिया था कि वह दुनिया की खेती में रूपये का बीज बोयगा और अब उस खेती में इज़्ज़त, शोहरत और दौलत के फूल निकलेंगे तो वह उन फूलों की महक से 'बड़ा आदमी' बन जायगा....क्योंकि समाज बड़े आदमी की हर अदा पसंद करती है। फिर वह अपनी बाल विधवा बहन के लिये वर ढूँड कर ही दम लेगा। 'लड़के' ने "हँसता-गाता" नामी थियेटर में एक शो (सुनिये-सुनिये आज कल की लड़कियों का प्रोग्राम) पेश किया जो सिर्फ लड़कों के लिये था। इस जिद्दत पर 'लड़की' ताव खा गई। 'लड़की' ने (चना जोर गरम) नामी प्रोग्राम पेश कर के 'लड़के' को मुँह तोड़ जवाब दिया।
'लड़का' 'लड़की' एक दूसरे के दुश्मन बन गये।
सेठ गिरधारी बनवारीलाल - पटवारीलाल ऐण्ड नो सन्स ऐक मनचले रईस थे, उनके पास इतना धन था जितना कि बोरियों में अनाज होता है, उन्होंने 'लड़का' 'लड़की' फ्री क्लब के फ्री शो में हिस्सा लेने के लिए दावत दिया... शो बहुत कामयाब हुवा। 'लड़का' 'लड़की' की छेड़ छाड़ प्यार में बदलने लगी और एक दिन वह दोनों एक होने के सपने देखने लगे।
'लड़के' ने यह शर्त रखी कि वह पहले अपनी बहन की शादी करेगा। 'लड़के' ने अपनी बहन के लिये वर ढूँड लिया मगर वाह री क़िस्मत इधर 'लड़के' ने अपनी बीमार माँ को यह खुश ख़बरी सुनाई उधर उस के होने वाले बहनोई की शादी ग़लती से ऐक शहज़ादी से हो गई।
'लड़के' का दिल टूट गया टूटे हुवे दिल ने जब यह सुना कि उस की माँ मर गई है तो उसे यूँ लगा जैसे उसका वचन मर गया है... वह पागल हो गया।
'लड़का' पागल ख़ाने पहुँच गया और उसकी बहन बम्बई में अपने भाई की तलाश में एक विलायत पास नौजवान को मिल गई भाई जो उसे अपने घर ले आया-अजीब इत्तिफ़ाक़ है कि वह नौजवान 'लड़की' का भाई निकला और एक दिन इस नौजवान ने लड़के की विधवा बहन से शादी का फैसला कर लिया... बहन न समझा भाई उस पर एहसान कर रहा है मगर वह ग़लत थी... तो सही क्या था.......
'लड़के' की बहन की 'लड़की' के भाई से शादी हुई या नहीं........
'लड़का' पागल खाने से बाहर आया या नहीं.........
'लड़का' 'लड़की' के एक होने का ख़्वाब पूरा हुआ या नहीं........
इन सवालों का जवाब है ब्राइट फिल्मस की सोशल और मज़ाहिया तस्वीर "लड़का-लड़की".......
[From the official press booklet]