जीवन दुःख और सुख के झूले के समान है।
झूलना सुख और सन्तोष की पराकाष्ठा पर पहुँचता है।
सुन्दरलाल अपने को बड़ा भाग्यवान पाते हैं। क्योंकि उन्हें एक नन्हा बच्चा अरुण और श्रद्धालु पत्नी लक्ष्मी मिली है। वे पुलिस के प्रधान सिपाही के रूप में समाज की शानदार सेवा करते हैं। लेकन धरमराज बिल्कुल भिन्न प्रकृति का है। उसका एकमात्र उद्देश्य दूसरे की बुराई करना है। उसके कलुषित कारनामें बे-रोकटोक बढ़ते रहते हैं। वह बदमाशों का अगुआ है।
झूलना नीचे की ओर आने लगता है।
सुन्दरलाल को जेल जाना पड़ता है। धरमराज द्वारा उस पर गंभीर अपराध मढ़ दिया जाता है। उसकी पत्नी और बालक निःसहाय हो जाते हैं। धरमराज को भी अपनी पत्नी सुशीला और लड़की सुमति को छोड़कर देश से भागना पड़ता है। क्योंकि कानून के लम्बे हाथ उसे पकड़ने के लिए पहुँच रहे हैं।
झूलना नीचे की ओर और तेज़ी तथा भीषणता से बढ़ता है।
मुसीबतों के झंझावात में लक्ष्मी के कोमल मातृ-हृदय ने अपने पुत्र अरुण को एक रिटायर्ड जज रामकृष्ण के यहाँ छोड़ दिया, जिस में उसे सुखमय जीवन का अवसर मिल सके। फिर भी कठिनाइयाँ उसका पीछा नहीं छोड़तीं। अपने बच्चे से दूर भागने के बाद वह अन्तिम सासें लेती हुई सुशीला के संपर्क में आती और असहाय सुमति को अपनी देखभाल में लेती है। इतना होने पर भी उसकी मुसीबतों का अन्त नहीं आता। बेगुनाह बरी हुआ उसका पति उसे अपने पति ईमानदार नहीं पाता-क्योंकि वह उसकी गोद में सुमति को देखता हैं।
धरमराज भी अनुभव करता है कि पैसा सर्वशक्तिमान नहीं है। अब वह इस इरादे से अपने घर वापस लौटता है कि उसने समाज और अपने परिवार के प्रति जो गलत काम किये हैं, उनका प्रायश्चित्त करेगा। उसकी तन्दुरुस्ति गिरी हुई है। कानून पीछा कर रहा है। समय के विरुद्ध उसकी दौर चल रही है।
अरुण और सुमति अब पूर्णतः नवयौवन में हैं। वे एक दूसरे को दिल दे चुके हैं। लेकिन उनके स्वप्न चकनाचूर हो जाते हैं जब जज रामकृष्ण और उनकी पत्नी इसे अस्वीकार करते हैं। उनकी मान्यता है कि सुमति लक्ष्मी की अनैतिक सन्तान है।
झूलना जो अब मुसीबत की तह तक नीचे आ चुका है। ऊपर उठना शुरु होता है।
यह जानने के लिए कि किस रफ्तार से झूले का झूलना ऊपर जाता है, वासु फिल्म्स का “झूला” देखिये।
[From the official press booklet]