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राजन, रायसाहेब कैलाशनाथ का इकलौता बेटा है। वह स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ खेल-कूद, नाटक और सैरमें दिल खोल कर हिस्सा लेना चाहता है लेकिन उसके पिता समझते हैं कि इससे उनका बच्चा बिगड़ जायेगाा। एक सैर पर जब बालमंडल के सारे बच्चे नन्दूकी अगुवाईमें निकले तो राजन भी उनके साथ होगया। बापकी मनही थी लेकिन माँ का प्यार चुप न रह सका। उसने राजन को इजाज़त दे दी। फिर क्या था- रायसाहेब ने राजन को वापस लाने दामू को भेजा- मिर्ज़ा को भेजा और दोनों भी असफल रहे तो ख़ुद जा धमके। इधर बच्चे अपने सैर के दौरान में गाँव गाँव में श्रमदान की अलख जगाते स्कूलोंकी मरम्मत करते और रातको नाटक तमाशे से गाँव के ग़रीबोंका मनोरंजन करते। जिस जिस गाँव में बच्चे गये गाँव वालोंका प्यार उन्हें मिला। सेवासे कौन ख़ुश नहीं होता? रायसाहेब शहर लौट आए ख़ाली हाथ- लेकिन बच्चे पहुँच गये थे उनसे पहले। रायसाहेब ने राजन का स्कूल जाना बन्द कर दिया। बाहर दोस्तों को राजन के बिना सूना सूना लगा। बच्चों ने अख़बारों में इश्तहार पढ़ा कि राजन के लिए मास्टरों की ज़रूरत है। कुछ बच्चे मास्टर बनकर चले-लेकिन यह राज़ खुलकर रहा। तब तो रायसाहेब के तन बदन में आग सी लग गई। उन्होंने अपने दोस्तसे एक सख़्त से सख़्त मास्टरकी माँग की। नए मास्टर पधारे। उसी वक्त राजन का दोस्त चटपट नाटक की किताब लेने आया था। दोनोंने उसे ख़ौफ़नाक मास्टर को देखा और जब मास्टर कमरेमें आया तो राजन पहले ही खिड़की से कूदकर भाग गया था। मास्टर के हाथ में आया चटपट। बस फिर क्या था राजन की जगह चटपट की पढ़ाई शुरू होगई। एक महीने तक राजन उधर ड्रामे की रिहर्सल करता रहा और चटपट इधर पढ़ता रहा।
लेकिन बादमें क्या हुआ?
क्या रायसाहेब को इस राज़ का पता चला? क्या बच्चे ड्रामा कर सके?
क्या रायसाहेब के राजन के बारे में विचार बदले?
[From the official press booklet]