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Ghar Ghar Ki Kahani (1970)

  • Release Date1970
  • GenreDrama
  • FormatColor
  • LanguageHindi
  • Run Time138 mins
  • Length4109.91
  • Number of Reels16
  • Gauge35mm
  • Censor RatingU
  • Censor Certificate Number82256
  • Certificate Date04/11/1980
  • Shooting LocationVijaya-Vauhini (Madras)
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शंकरनाथ एक मध्यम वर्ग के परिवार का प्रमुख था। वह एक आदर्श पिता एवं आदर्श पति था। ’चादर जितनी लंबी हो, उतने ही पाँव फैलाने चाहिये’ यह उसके जीवन का सिद्धांत था।  उसका पुत्र रवि पर्यटन के रुपये’ न पाकर अपने पिता को जब गलत समझने लगा, तब शंकरनाथ ने परिवार संभालने की जिम्मेवारी रवि के हाथ में सौंप दी। रवि अपने पिता की आमदनी के अनुरूप परिवार को चलाने का प्रयत्न करने लगा। उसके भाई व बहन-रूपा व राजा ने भी इसमें सहयोग दिया। तीनों बच्चों ने स्वावलंबन और क़िफ़ायत के महत्व को अपने अनुभव से समझा। परिणाम स्वरूप बड़े संघर्ष के बाद वह परिवार सुखी बना। यह परिवार सबके लिए अनुकरणीय एवं आदर्श बन गया। आज शंकरनाथ पृथ्वी पर सबे प्रसन्न व्यक्ति है, क्यों कि उसने अपने घर को स्वर्ग बनाया।

सीताराम शंकरनाथ का साला था। उसके सामने ....... ओर ख़र्च में सामंजस्य बैठाने का कोई प्रश्न न था। प्रश्न तो उसके बिगड़े हुए गोपी को राह पर लाने और डूबते हुए परिवार को बचाने का था। सीताराम की पत्नी जानकी अपने पति की परवाह न करती थी और आँख मूँद कर, खुले हाथों अपने इकलौते बेटे के लाड़-प्यार में रुपये पानी की तरह बहा देती थी। नतीजा यह हुआ कि उसका बेटा गोपी आवारा और जुआख़ोर निकला। गोपी की आवारागर्दी पर सीताराम को बड़ी मानसिक वेदना हुई। वह अपने बेटे के भविष्य को बनाना चाहता था, मगर लाचार था। मगर एक दिन गोपी बुरी संगत में पड़कर जुए में ट्रान्सिस्टर तथा साइकिल गँवा बैठा। अब सीताराम के सब्र की सीमा टूट गयी। उसने क्रोध में आकर अपनी पत्नी के हाथ से चाभियाँ छीन लीं और घर संभालने की पूरी जिम्मेवारी अपने हाथ में ली। इसके बाद गोपी को ट्रान्सिस्टर तथा बाइसिकिल शाम तक वापस लाने की चेतावनी देता है। इस प्रकार सीताराम ने अपने डूबते परिवार को बचा लिया और उसका खोया हुआ बेटा उसे वापस मिल गया।

साधूराम एक कंपनी में हेड़ क्लर्क था। उसके पाँच बच्चे थे। वह अपनी आमदनी से बढ़कर खर्च करने का आदि बना। वह अपनी पत्नी और बच्चों की हर ख़्वाहिश की पूर्ति करना अपना जीवन का लक्ष्य मानता था। अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए वह हर जायज व नाजायज राह पर चलने को तैयार था। उसने रिश्वत लेना शुरू किया। टेण्डरवालों की फाइल रुपयों के पहियों पर चलाता। आख़िर वह एक दिन रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा गया। उसके पाप का फल सारे परिवार को भुगतना पड़ा। उसकी बेटी की मंगनी टूट गयी। साधूराम के पास एक अलीशान बंगला था। उसकी पत्नी हीरे के गहनों से लदी थी, फिर भी ये सब उसके काम न आये। वह समाज में बदनाम हुआ। उसकी सारी इज्ज़त मिट्टी में मिल गयी। अपनी औकात के बाहर बेहद बढ़े हुए हौसलों के चक्कर में पड़कर उसका घर तबाह हो गया।

[From the official press booklet]