वह फिल्मी होरो के हमकाल थे. यानी के क्नचसपबंजम थे. दुनिया उन्हें असली नाम से पुकारने की बजाए डुप्लीकेट अमिताभ बच्चन (फिरोज), डुप्लीकेट संजय दत्त (रशिद खान), डुप्लीकेट अनिल कपूर (आरिफ खान), डुप्लीकेट मिथुन (मोहन) कहकर पुकारते थे.
मगर उनके दिल में जुल्म के खिलाफ भड़क रही थी. इसीलिए लोग उन्हें डुप्लीकेट शोले कहते थे.। मुसीबत यह थी के वह शहर में जब भी कोई अच्छा काम करते थे पुलिस उनके अच्छे काम को गैर कानूनी करार देकर जेल की सलाखों में बंद कर देती थी.
कानूनी की बंदिशों से तंग आकर यह लोग भागते-भागते रामगढ़ पहुंच गयो. जहा बसंती थी. गब्बर के जुल्म का शिकार ठाकुर था. और उसकी विधवा बहू थी. और वहां गांववालों के सर पर मन्डला रहा था. डुप्लीकेट गब्बरसिंह के आतंक का साया. फिर क्या हुआ? देखिए, पाली फिल्म्स की शोले बरसाती हुई "डुप्लीकेट शोले".
(From the official press booklet)