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Door Ki Awaz (1964)

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प्रकाश (जॉय मुकर्जी) ने रेल के डिब्बे में एक चांद सा चेहरा (सायराबानो) देखा और मदहोश सा हो गया... निगाहें लडी और एक कहानी शुरू हो गई... लेकिन कौन जानता था, कि रेल गाड़ी जिस में वह सफ़र कर रही थी, जल्द ही दुर्घटना का शिकार हो जायेगी।
हस्पताल के ज़खमियों में बदचलन कैलाश (प्राण) और मनोरंजक मोतीलाल (जानी वाकर) के अलावा प्रकाश की बहन माला (मलका) और सुन्दरताकी वही देवी जिस ने ट्रेन में प्रकाश के दिल में एक हलचल पैदा कर दी थी मौजूद थी। जब प्रकाश दुर्घटना की ख़बर सुनकर अपनी मां (दुर्गा खोटे) के साथ हस्पताल पहुंचा उसने दोबारा रेल की अजनबी लडकी को ज़खमीं हालत में देखा। उस के दिल में मुहब्बत चुटकियां लेने लगी। वह उस के बारे में बहुत कुछ सोचलने लगा... और जब उस गरीब के बारे में सब को यह मालूम हुआ कि इतने बडे संसार में उस का कोई सहारा नहीं ह तो प्रकाश की कोमल हृदय मॉ उसे भी माला के साथ अपने घर ले आई। 
धीरे धीरे दोनो की मुहब्बत गहरी होती गई प्रकाश की मां पुराने विचारों की धार्मीक औरत थी। वह यह कैस बरदाश्त कर सकती थी कि उस के बेटे का मेलजोल एक एसी लडकी से इतना बड जाये जिस कि जातपात का कोई पता नही था। वह गुस्से से आग बगुला हो गई, लेकिन एक दिन प्रकाश और मोती ने उनके सामने एसा कामयाब ड्रामा खेला कि प्रकाश की बुढी मां की आखें खुल गई और फिर एक साथ दो शादियां हो गई। यानी प्रकाशको ज्योती मिल गई और मोती को माला।
अब प्रकाश की जिन्दगी में बहार ही बहार थी, उस पर बच्चे के जन्म ने उन की खुशीयों को और भी बड़ा दिया।
और फिर तीन साल बाद जब कि नन्हे राजाकी जन्मदिन मनाया जा रहा था, सब पार्टी में मौजूद थे, लेकिन ज्योती की प्यारी माला कही नज़र नहीं आ रही थी। उसे इस बात का बेहद दुख हुआ और वह खुद उसे लेने के लिये फौन घर से रवाना हो गई। थोड़ी ही देर बाद माला पार्टी में पहुँच गई, लेकिन ज्योती वापस नहीं आई। उस का कहीं पता नहीं था। वह कहां खो गई? क्यों खो गई? कैसे खो गई? यह आप रजत पट पर देखिये।