विद्यार्थी चाहे किसी भी उम्र का क्यों न हो, उधम मचाने और नटखट पने से बाज़ नहीं आता। उसे कोई देखे तो अनायास कह उठेगा - विद्यार्थी और गुण्डे में कोई फ़र्क नहीं।
ऐसे ही वातावरण में पड़कर मोहन को राजेश्वरी का एक चपात खाना पड़ा था। उस चपात ने एक युवक को बुरी राह पर जाने से रोक दिया।
मगर जब चपात मारने वाली राजेश्वरी ने मोहन को अपने देवर के रूप में देखा तो प्यार से कहा -“अब चपात नहीं मारूँगी”।
मोहन ने एक बच्चे की तरह लपक कर भाभी के चरणों में बैठते हुए कहा - “नहीं भाभी! उस चपात मारने वाले हाथ को हमेशा ही मुझ पर उठा रहने देना, ताकि फिर कभी मैं कोई भूल न कर सकूँ”।
देवर-भाभी का नाता - माँ बेटे का नाता है।
जिस प्रकार भयंकर तूफ़ान हरे भरे और महकते हुए कोमल वृक्ष को एक ही झोके में धराशायी कर देता है; उसी प्रकार सन्देह का तूफ़ान समाज के पवित्र नाते और सुख का सर्वनाश कर देता है।
सन्देह पर विजय पाने के लिए विवेक का सहारा लेना चाहिए।
बिना विचारे जो करे सो पीछे पछताय।
(From the official press booklet)