ज़िन्दगी और दुनियाँ दोनों बहुत खूबसूरत चीजें हैं।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का बटवारा हुआ। हिन्दू हिन्दुस्तान के सरहद में आ गये, सिर्फ़ अपनी 2 ज़िन्दगी लेकर।
शान्ती के हाथों की मेंहदी अभी फीकी नहीं हुई थी कि अपने पति, सास, ससुर, माँ, बाप, भाई सबके प्यार से दूर हो गई। घर की दीवारें उसे काटनी लगी, वह अपने पति के पास पहुँचने के लिये घर से निकल पड़ती है। कुछ लोग उसका पीछा करते हैं। उसकी मदद के लिये एक दरवाज़ा खुलता है-शान्ती चीख उठती है। लेकिन अबदुलरहमान की एक आवाज़ “बहन परदा कर लो” शान्ती को राहत देती है। इन्सान अगर शैतान बन सकता है तो देवता भी। अबदुलरहमान जैसा गुन्डा और बदमाश इन्सान से शान्ती को पनाह मिली और भाई का प्यार भी। भाई भी कैसा जिसने बहिन की शक्ल भी नहीं देखा, पहचानता तो उसकी आवाज़ से या उसके पैर से, बिल्कुल लक्ष्मण की तरह।
पाँच साल के बाद शान्ती देहली रिफ्युज़ी कैम्प में आती है। माँ, बाप, भाई उसे पहचानने से इन्कार कर देते हैं। उसका पति आता है, शान्ती उसके प्यार की निशानी उसके सामने लाती है। बच्चे को देखकर उसका पति भी शक करता है और उसे जली कटी सुनाकर चला जाता है। शान्ती की ज़िन्दगी में फिर से रोशनी आने की कोई उम्मीद नहीं रही और वह अपने आप को ख़त्म करने पर आमादा हो जाती है। लेकिन छलिया उसे बचा लेता है। माँ की ममता जागी और शान्ती कैम्प में बच्चे के लिये आती है लेकिन बच्चा अपना फर्ज़ पूरा करने के लिये माँ को ढूंढने निकल पड़ा था। बच्चे को न पाकर शान्ती उदास हो जाती है। छलिया उसे अपने झोपड़े में लाता है।
एक दिन शान्ती को खबर मिलती है कि उसका बच्चा स्कूल में है। वह बच्चे को मिलने के लिये जाती है। लेकिन वहाँ अपने पिता को मास्टर की हैसियत में देखती है जो अनवर की क्लास में पढ़ा रहा था। शान्ती अपना दर्द दबाये वापस आ जाती है।
धीरे 2 छलिया शान्ती को प्यार करने लगता है। लेकिन शान्ती से कहने की हिम्मत उसे नहीं होती। कभी कहता तो सिर्फ़ इतना कि वह एक लड़की से पयार करता है। शान्ती भी उस लड़की को देखने की तमन्ना ज़ाहिर करती है। छलिया मुस्कराकर मिलाने का वादा करता है।
अबदुलरहमान अपनी बहिन सकीना को ढूँढने दिल्ली आता है। कई साल के बाद छलिया की उससे मुलाक़ात होती है। छलिया अपने पुराने हिसाबों का तक़ाज़ा करता है। और चला जाता है। अबदुलरहमान छलिया के साथ शान्ती को देखता है और उसे भगा ले जाने का इरादा कर लेता है जिससे छलिया का हिसाब चुक जाये और सकीना का बदला भी मिल जाय।
करवाचैथ के दिन जब शान्ती चन्द्रमा को अर्ध देती है तो पानी में छलिया की छाया दिखाई देती है। शान्ती काँप उठती है और छलिया से दूर हो जाने के लिये तैय्यार होती है। लेकिन छलिया उसे कहता है कि जाने से पहले उस लड़की को तो देख लो जिसे मैं प्यार करता हूँ। वह शान्ती को लेकर जाता है और.......................।
तो क्या छलिया को शान्ती का प्यार मिलता है?
अबदुलरहमान शान्ती को भगाने में क़ामयाब होता है।
शान्ती को उसका, पति उसका बच्चा सुख और संसार मिलता ह?
ये सब जानने के लिये आप सुभाष पिक्चरस् का “छलिया” देखिये।
[from the official press booklet]