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बम्बई शहर के एक छोटे से घर में, शंकर एक ट्रक ड्राइवर रहता था। उसकी सुन्दर सी बीवी पारो और दो साल का बेटा दीपक, उसके जीवन का सब कुछ था।
शंकर, ईमानदर, दयालू और एक अच्छा इन्सान था जो दुःखियों की मदद के लिये हर समय तैयार रहता था। उसका दिल था सोने का, पर साथ ही अत्याचारों के खिलाफ भी हमेश मुकाबला करने खड़ा रहता था- अपने लोहे के हाथ लेकर “सोने का दिल-लोहे के हाथ” शंकर जिस धनी सेठ के पास नौकरी करता था, उसके पार्टनर माथुर ने पैसों के लालच में उसकी हत्या कर दी और इसका इल्जाम लगा दिया बेगुनाह शंकर पर। गुनाहगार माथुर अदालत में बेगुनाह साबित हो गया और बेगुनाह शंकर को गुनाहगार ठहराकर सात साल की सजा सुना दी गई।
सात साल जेल में सजा काटने के बाद दिल में एक खुशी लिये, शंकर बेताबी से अपने घर पहुंचा तो यहां न उसकी बीवी थी और न ही उसका बेटा दीपक। उसके लबों पे एक ही सवाल था कि आखिर वो दोनों हैं कहाँ?
शंकर की बीवी पारो मेहनत मजदूरी करके अपने दस वर्ष के बेटे दीपक को एक स्कूल में पढ़ा रही थी, जिसे यह मालूम नहीं था कि उसका पति शंकर जेल से छूट चुका है। जब भी दीपक अपनी मां से पूछता कि उसका बाप कहां है तो दिपक से झूट कह देती कि वह दूर नौकरी पर गया है और एक दिन जरूर आयेगा।
एक दिन अचानक शंकर ने उसी माथुर को देख लिया जिसकी वजह से उसे जेल जाना पड़ा और आज बीवी, बेटे से बिछड़कर भटकना पड़ा। शंकर ने माथुर से अपनी इस तबाही का बदला लेने का फैसला किया और उसका कत्ल कर दिया।
लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था- उसके खूदके बेटे दीपक ने यह कत्ल होते देख लिया और खूनी-खूनी-खूनी पुकार उठा। “बाप कातिल और बेटा गवाह”।
दीपक जिसे बचपन से अपने बाप से मिलने की तमन्ना थी आज अपने बाप को नहीं पहचान सका।
और शंकर भी आज अपने दीपक को नहीं पहचान सका और अपने ही बेटे (चश्मदीद गवाह) के खून का प्यासा हो गया।
आखिर एक दिन शंकर की मुलाकात अपनी बीवी पारो और बेटे दीपक से हो गई। मगर उस वक्त दीपक एक खौफनाक हादसे में अंधा हो चुका था और दीपक यह नहीं जानते हुए कि यही वह खूनी है, बापू-बापू कहकर शंकर के गले लग गया।
और शंकर इस सोच में पड़ गया कि अगर दीपक की आंखें होतीं और वह उसे देख सकता तो क्या होता?
क्या दीपक फिर से देख सका?
क्या दीपक अपने बाप के गले मिला या खूनी समझकर नफरत से निगाहे फेर ली?
यह सब परदे पर देखिये.......।
(From the official press booklet)