सिंहासन, गान्धारा और अवन्ती, दो राज्यों की कहानी है, महाराज क्षमेन्द्रभूपति वृद्धावस्था की वजह से चाहते हैं कि अब राज्य का भार राजकुमारी अलकनन्दा संभाल लें, उन्हें विश्वास है कि सेनापति विक्रमसिंह की मदद से वो राजकाज बखूबी चला सकती है।
परन्तु गान्धारा के महामंत्री भानूप्रताप, राजकुमारी को खत्म करके अपने बेटे कालकेतू को राजा बनाना चाहते थे, विक्रमसिंह भानूप्रताप की रग रग से वाकिफ़ था, इसलिये एन वक्त पर पहुंचकर उन्होंने राजकुमारी को तो बचा लिया, लेकन खुद भानूप्रताप के जाल में फंस गया- राजदरबार में भरी सभा के बीच महाराज ने उसे देश निकाले की सज़ा दे दी, लेकिन जाते जाते वो महाराज को सतर्क कर गया।
विक्रमसिंह के जाते ही भानूप्रताप ने अपने हथकंडे दिखने शुरू कर दिये- अपराजिता देवी का स्वीकृत किया हुआ राजमुकुट गायब करवा दिया-राज्य के जागीरदारों को भड़काना शुरू कर दिया, ताकि राजकुमारी का राजतिलक न हो सके-इतना ही नहीं, वो अवन्ती के राजगुरू अभंगदेव से जा मिला-जिसने राजकुमार आदिन्यवर्धन को एक नर्तकी के जाल में फंसाकर खुद राजकाल अपने हाथ में लिया था-अभंगदेव बहुत ही कूटनीतिज्ञ था-उसका इरादा भी भानूप्रताप की तरज, राजकुमार को रास्ते से हटाकर अपने बेटे उग्रराह को राजगद्दी पर बिठाने का था-दोनों ने मिलकर कालभैरम और कटारीकटैया को भड़काकर गान्धारा राज्य पर ठीक राजतिलक के मौके पर हमला करने के लिये तैयार कर लिया-लेकिन उनकी हर गति विधि पर नज़र रखनेवाले विक्रमसिंह ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया इतना ही नहीं अलकनन्दा का राजतिलक हो गया-मुकुट भी मिल गया-और सारे गद्दारों को देश निकाले की सज़ा भी मिल गई।
यह ख़बर सुनते ही अभंगदेव को जबरदस्त धक्का पहुंचता है- वो अपना चक्रव्यूह रचना शुरू कर देता है-अपनी रची विषकन्या, चन्दनागंधी-जो अब जवान हो चुकी है, उसके पास आदित्यवर्धन को उग्रराहू के द्वारा भेज देता है-राजकुमार चन्दना के प्रेम जाल में फंस जाये और सुहाग रात उनकी जिन्दगी की आखरी रात हो। लेकिन इन्सान कुछ सोचता है और होता कुछ और है-कालकेतू प्रकृति का सौन्दर्य देखता हुआ चन्दना से मिलता है, उससे बलात्कार करना चाहता है-चन्दना के नाखून के ज़हर से मर जाता है-चन्दना को कपाल से अपनी असलियत का पता चल जाता है-वो राजकुमार को देखते ही ग़ायब हो जाती है।
राजकुमार उसके पीछे जंगलों में मारे मारे फिरते हैं। कालकेतू की मौत की ख़बर सुनते ही अभंगदेव भीषम को राजकुमार को ख़त्म करने का हुक्म देता है और चन्दना को पकड़ कर लाने के लिये कहता है। लेकिन चन्दना विक्रम के हाथ आ जाती है। इधर अभंग देव राजतिलक की घोषणा कर देता है और उग्रराहू को गद्दी पर बिठाना चाहता है, लेकिन ऐन वक्त पर आदित्य का हमश्क्ल विक्रम आ जाता है और गद्दी पर बैठ जाता है। यह सब वो आदित्य के कहने पर करता है। अभंगदेव को पता चल जाता है कि राजतिलक आदित्य का नहीं बल्कि विक्रमसिंह का हुआ है। वो विक्रम को आदित्य का कातिल करार देता है-राजमाता उसे मृत्युदण्ड दे देती है।
उधर गान्धारा में जब महारानी अलकनन्दा को यह खबर मिलती है तो वो अपनी सेना के साथ अवन्ती की ओर निकल पड़ती है।
अभंगदेव अपने मकसद में कामयाब हुआ कि नहीं? आदित्यवर्धन और चन्दनागंधी मिले कि नहीं?
यह आप “सिंहासन” देखने के बाद ही जान पायेंगे।
(From the official press booklet)