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Sant Raghu (1957)

  • LanguageHindi
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संत रघु कौन थे? यह प्रश्न उस व्यक्ति के लिए न पूछना चाहिए जिसके साथ ’संत’ शब्द चांद के साथ चांदनी की तरह जुड़ गया हो। संतों का इतिहास, उनका चरित्र और उनकी अमर वाणी शांति का प्रचार करती है। संत रघु इन सब गुणों के ज्वलंत उदाहरण थे।

रघु का जन्म मछुवा जाति में हुआ था। मीरा उनकी जीवन संगिनी थी। दोनों के हृदय में गंगाजल की तरह पवित्र स्नेह था। रघु दीपक था तो मीरा उसकी ज्योत थी। मठाधीश के पुत्र शिवनाथ की कुदृष्टि भी मीरा के रूप पर पड़ चुकी थी। मीरा के हाथ का छुवा हुआ पानी पीने से दूर भागने वाला शिवनाथ उसके अधरामृत का पान करने के लिए व्याकुल था।

संयोगवश एक दिन मीरा के हाथ “राधाकृष्ण” की मूर्ति लग गई। रघु ने राधा को मीरा और मीरा ने कृष्ण को रघु समझकर उस मूर्ति की पूजा आरंभ कर दी। शिवनाथ को बहाना मिल गया। उसने अपने पिता मठाधीश को भड़काया- उस समय का एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण यह कैसे सहन कर सकता कि एक शूद्र मूर्ति की पूजा करे? बस यही संघर्ष का कारण हुआ।

रघु के गुरू स्वामी नित्यानन्द, जो कि एक त्यागी अैर सत्यवादी सन्यासी थे, रघु का पक्ष लेकर मठाधीश से भिड़ गये। शास्त्रार्थ हुआ। सत्य के सामने मिथ्याभिमान न ठहर सका। अन्त में शास्त्र ने शस्त्र का रूप धारण कर लिया और बलपूर्वक रघु से मूर्ति छीन ली गई।

फिर भी मीरा और रघु का प्रेम चन्द्रमा की कलाओं की तरह दिन प्रति दिन बढ़ने लगा। यह देखकर रघु की माँ और माधो ने दोनों को विवाह सूत्र में बांधना निश्चय किया। ब्याह की शहनाई बजने ही वली थी कि मुहूर्त निकालते समय ज्योतिषी को यह मालूम हुआ कि मीरा की जन्मकथा अज्ञात है। माधो केवल उसका पालक पिता है फिर क्या था बात के पर लग गये। वो हवा की तरह तमाम गाँव में फैल गई। दुष्टों को अवसर मिला, मठाधीश ने मीरा का जाति बहिष्कार कर दिया। रघु की माँ समाज का सामना न कर सकी।

बिजली टूट पड़ी दोनों के प्रेम पर। फूल अंगारे बन गये। मुस्कराहट आंसुओं में डूब गई। मीरा सदा के लिए अपने पिता के साथ गांव छोड़कर चली गई। रघु पागल हो गया।

फिर क्या हुआ? रघु संत कैसे बना? स्वमी नित्यानन्द ने अपने परम शिष्य के लिए क्या क्या किया? पाखण्डी मठाधीश और शिवनाथ के अत्याचारों का किस प्रकार अंत हुआ? पती-परायण सती साध्वी मीरा का बिछड़े स्वामी से मिलन हुआ या नहीं? रघु को नारी मिली या नारायण? सत्य और असत्य के युद्ध में किसकी विजय हुई? रघु ने अपनी भक्ति के बल से किस तरह श्री जगन्नाथजी के मंदिर में उपस्थित जनसमूह को भगवान के विराट दर्शन कराये? इन सब जटिल प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए आप अवश्य यह महान् भक्तिपूर्ण और शिक्षाप्रद चित्र सपरिवार देखिये।

।। भक्त और भगवान की जय।।

(From the official press booklet)