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Continueसगत सिंह के चारों लम्बे तगड़े शक्तिशाली बेटे शेरा, विजय, जगत और छोटू अपने गांव करड़ा से दशहरे का मेला देखने जैसलमेर पहुंचे करड़ा मार्ग में विजय और जगत ने शेरा को बताया कि वहां मेले में उन्हें अपने खानदानी दुश्मन पोचीना के चैधरी से भी बदला लेने का अच्छा अवसर मिलेगा। शेरा ने उन्हें समझाया कि मेले में इस प्रकार खून खराबा करना ठीक न होगा। परन्तु भाई अपनी बात पर अड़े रहे।
मेले में शेरा अकेला घूम रहा था, कि हिंडोले में झूलती हुई एक चंचल और अति अति सुन्दर रेशमा को देख कर उसका दिल बुरी तरह धड़क उठा। मेले में कई बार दोनों का आमना-सामना हुआ और यह चांद का टुकड़ा उसके दिल में समा गया। उधर विजय और जगत ने अपने खनदानी दुश्मन चैधरी के इकलौते बेटे गोपाल को घेर लिया। छोटु भाग कर शेरा को बुला लाया। जगत और विजय गोपाल की हत्या करने ही वाले थे, कि शेरा ने आकर उन्हें रोक दिया। बातों-बातों में शेरा को पता चला कि रेशमा उसके खानदानी दुश्मन चैधरी की बेटी है। अगले दिन मन्दिर में उनकी फिर भेंट हुई तो उन्होंने मिलकर निर्णय लिया कि अपने-अपने खानदान की घृणा की आग का वह अपने प्रेम की फुहार से बुझा कर दम लेंगे। एकांत की मुलाकातों में उनका प्रेम आगे बढ़ता रहा एक दिन रेशमा ने शेरा को बताया कि उसके भाई गोपाल का विवाह होने वाला है।
जिसमें शायद शेरा के घर वालों ने गड़बड़ मचाने की ठानी है। शेरा ने वचन दिया कि उसके होते यह हंगामा न हो सकेगा। विवाह के दिन शेरा अपने पिता के डांटने फटकारने के बावजूद रेशमा के घर पहुंच गया।
उसने रेशमा के पिता चैधरी से कहा कि वह खानदानी शत्रुता को समाप्त करने आया है। चैधरी को उसकी बात का विश्वास नहीं आया, परन्तु जब शेरा अपमान सहने और पिटाई तक सहने में न डगमगाया तो चैधरी के हाथ से बन्दुक जमीन पर जा गिरी और उसने शेरा को सीने से लगा लिया। उसी क्षण छोटु की बन्दुक से निकली हुई दो गोलियों ने चैधरी और गोपाल का अंत कर दिया।
इक नई ब्याही लड़की का वंधव्य और अपनी प्रेमिका रेशमा का दुख देख कर शेरा के दिल में पिता और भाईयों के प्रति घृणा और क्रोध का तूफान जाग उठा। वही उसी आग में जलता हुआ पिता के पास पहुंचा।
पिता क्रोध में आकर शेरा की मां तक पर आरोप लगा बैठा, कि पता नहीं ऐसा कायर बेटा किसकी सन्तान है। क्रोध में पागल शेरा के हाथ से अनजाने में बन्दुक की लबलबी दब गई। अगले ही क्षण सगत सिंह की लाश उसके सामने पड़ी थी। शेरा ऊंठ पर बैठ कर भाग निकला। शेरा अपने कुटुम्ब के एक-एक प्राणी के खून का प्यासा था। रेशमा ने हालांकि सबको क्षमा कर दिया था, परन्तु शेरा के सर पर खून सवार था।
रेशमा उस से मिलने के लिये रेगिस्तान की धूल छानने को निकल खड़ी हुई। उसी जगह दोनों की भेंट हुई जहां दोनों प्रेम भरी बातें किया करते थे। रेशमा ने शेरा को अपने प्रेम का वास्ता दिया, कि बेकार के इस खून खराबे से बाज आ जाए। परन्तु रेशमा के प्रेम ने शेरा के सारे आस्तित्व को एक नई रोशनी से भर देना चाहा-
और फिर-
(From the official press booklet)