indian cinema heritage foundation

Rekha (1943)

  • LanguageHindi
Share
0 views

बिन्दू और छाया राय साहब की बेटियां थी। छाया की माँ बिन्दू की सौतेली माँ थी। पूर्णिमा के दिन बिन्दू अपने पैसों का गुड्डा लाई और छाया मिठाई लाई। मिठाई खा चुकने के बाद छाया ने बिन्दू का गुड्डा छीनना चाहा, बिन्दू ने अपना गुड्डा न दिया। छाया की माँ ने शिकायत की तो राय साहब ने बिन्दू को मारा और गुड्डा छीन कर छाया को दे दिया। बिन्दू रूठ कर पड़ोस वाले बाबा के यहाँ चली गई। बाबा बिन्दू को बहुत प्यार करते थे, बिन्दू को लेकर वह दूसरे शहर चले गये। राय साहब ने बिन्दू को बहुत खोज की किन्तु कुछ भी पता नहीं चला।

दस साल बाद-

अब छाया बड़ी हो गई थी और राय साहब रायल आर्ट सोसाईटी के सभापति थी। बिन्दू भी बड़ी हो गई थी लेकिन बाबा से बिछुड़ चुकी थी और गाना गा-गाकर भीख माँगती फिरती थी। एक बार जब कि वह ट्रेन में गाना गाकर भीख माँग रही थी, उसकी मुलाकात रूप नाम के कलाकार से हो गई। वह कला प्रदर्शनी के लिये एक चित्र बनाना चाहता था तो उसने बिन्दू का मोडल पसन्द किया। रूप ने बिन्दू नाम बदल कर रेखा रख दिया। रूप ने बिन्दू का चित्र बनाया। रेखा को भीख माँगते हुये देख कर छाया ने भी उसे बुलाया और छाया ने भी उसका वही पोज बनाया जो रूप ने बनाया। दोनों चित्र प्रदर्शनी में प्रदर्शित किये गये। लोगों को रूप का बनाया हुआ चित्र बहुत पसन्द आया लेकिन पारितोषिक छाया को मिलने वाला था क्येांकि पिता सभापति थे। यह देख कर छाया ने अपने पिता से अनुरोध किया कि इनाम रूप को ही दिया जाय। इनाम रूप को मिला इस प्रकार रूप और छाया का परिचय हुआ। घनिष्टता बढ़ी और छाया प्रेम करने लगी रूप को। रेखा भी रूप को चाहती थी और रूप को रेखा अच्छी लगती थी। छाया एक बड़े धनवान की इकलौती लाडली पुत्री थी और रेखा एक मामूली भिखारन।

रूप ने रेखा से शादी की या छाया से? बाबा का पता लगा या नहीं?

यह सब आपको अपने शहर के भव्य सिनेमा गृह में देखने को मिलेगा

(From the official press booklet)