कुछ लोग कहते हैं - प्रेम का दूसरा नाम ही ईश्वर है और ईश्वर उस शक्ति का नाम है जिस शक्ति से बढ़ कर दुनिया में कोई और दूसरी शक्ति नहीं है।
और जब यह ईश्वर की शक्ति प्यार बन कर किसी के दिल में समाती है तो बड़ी जिद्दी बन जाती है। अपना प्यार पाने के लिए रिश्तों की दिवार से टकराती है। आग के दरिया से हो कर गुज़र जाती है।
ऐसी ही शक्ति प्यार बन कर सपना के दिल में जब समाती है तो वह अपने प्रेमी को पाने के लिए हद से गुज़र जाती है। उसके बाप ने खनदान की इज़्जत बचाने के लिए सपना और उसके प्रेमी को जान से मार डाला। बाप ने सोचा चलो किस्सा खत्म हो गया। मगर किस्सा तो अब शुरु हुआ। अधूरे प्यार का बोझ लिये सपना मर तो गयी थी मगर उसकी आत्मा ने इंत्तेकाम की ज्वाला बन कर लोगों के जीवन को जलाना और इंत्तेकाम लेना शुरू कर दिया। मगर एक बहादुर ठाकुर ने उस आत्मा को पकड़ कर जला डाला और समझा के खेल खत्म हो गया। मगर सपना का अंत नहीं हुआ था। वह ठाकूर की बेटी के शरीर में समा गई और वीरान रातों के सन्नाटे में लोगों का खून पीने लगी।
मगर जो लोग इश्क की दी हुई ताकत का दुरुपयोग करते हैं। ईश्वर उन्हें नष्ट करने का सामान भी पैदा कर देता है। सपना की हमशकल लड़की जो सपना की ही तरह अपने प्रेमी से प्यार करती है उस लड़की और सपना का आमना-सामना हो गया। सपना के पास प्रेम शक्ति थी मगर इंत्तेकाम लेकर बे-गुनाहों का खून बहा कर उसकी शक्ति अपवित्र हो चुकी थी और उस लड़की के पास प्रेम की पवित्र शक्ति थी। जब दोनों शक्तियां टकराई तो क्या हुआ? कौन जीता, कौन हारा? यह जानने के लिए देखिये पाली फिल्मस कृत "कातिल चुड़ैल"।
(From the official press booklet)