जवानी की सारी अभिलाषायें और दाम्पत्य जीवन में मिलने वाले परम आनन्द के सपने चूर चूर हो जाते है। जब अरूणा अपने पति संतोष से कामसुख पाने में पूरी तरह असफल हो जाती है।
उसके मन में अनेकों विचार उठते है। पर नारी का संस्कार परीवार का सम्मान और सामाजिक नियमों को ध्यान में रख कर शारीरीक सुख को त्याग कर अरूणा, एक बंजर जमीन की तरह जीने पर विवश हो जाती है। एक दिन उसके जीवन में एक मोड आ जाता है प्रभात के रूप में। प्रभात अरूणा के पति संतोष के बचपन का दोस्त था तथा शराब, ड्रग्स और आधुनिकता में डूबी आजाद ख्यालों वाली औरतो की मोहब्बत में डूबा रहने वाला इन्सान था। वह अरूणा की कमजोरीयों को मॉप्त लेता है। अरूणा भी प्रभात के व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाती है। और कुछ मुलाकातों बाद दोनो एक दूसरे के पयार में इस तरह डूब जाते है कि न मिलने पर दोनो को एक दूसरे की कमी खलने लगती है।
एक दिन संतोष को शक हो जाता है कि प्रभात और अरूणा के बीच शारीरीक सम्बन्ध बन चुका है। दूसरी तरफ प्रभात अरूण से खुलकर कहता है कि वो अपने पति संतोष को छोड कर उसके साथ रहे।
क्या अरूणा अपने प्रेमी के लिए अपने पति को छोड डालता है?
क्या प्रभात अरूणा को पाने के लिए संतोष का खून कर डालता है?
क्या संतोष, अरूणा की खुशी के लिए उसके रास्ते से हट जाता है?
उलझनों से भरे इन सवालो के जवाब है अटलान्टा प्रोडक्शन की अनुपम भेंट पति प्रेमी ।
(From the official press booklets)