अज्जू नाम का एक हजाम एक बड़े गांव में रहता था। और अमीर आदमिओं की हजामत बना कर अपना गुजारा किया करता था। उसका एक ही बेटा था जिसका नाम अनवर था। वह अपनी कमाई का आधा हिस्सा अपने बेठे की पढ़ाई और लाटरी के टिकटों पर खर्च करता था।
इसकी दिली ख्वाहिश थी कि इसका बेटा अच्छी तालीम हासील करे। अगर कभी भगवान ने इसकी सुन ली और लाटरी निकल आई तो वह अपने धन्धे और गांव को छोड़ कर कही दूर बड़े शहर में चला जाएगा। अपने आपको बड़े ऊंचे खनदान का जाहिर करेगा। अपने बेटे को अच्छी तरह से पढ़ाएगा और इसकी शादी भी किसी बड़े घर में करेगा।
एक दिन भगवान ने उसकी सुन ही ली। उसको लाखों रूपए की लाटरी निकल आई। वह अपनी बेटे और बीवी के साथ दिल्ली आ गया। एक बहुत बड़ा बंगला खरीद लिया और जज्जू हजाम से नवाब अजमतुल्ला खान साहिब फारूकी बन गए।
अड़ौस में एक खान बहादुर रहते थे। उसकी इकलौती बेटी अभी अभी इंगलैंड से पढ़ाई हासिल करके वापिस लोटी थी। उसका नाम था निशात। निशात और अनवर की मुलाक़ात झगड़े से शुरू हुई और धेरी धीरे यह झगड़ा मुहब्बत में बदल गयाा। निशात और अनवर दोनों एक ही क्लब का मैम्बर थे। राणा साहिब इन दोनों घरानों के फैमिली डाक्टर थे और इन दोनों खानदानों को बड़े नज़दीक से जानते थे। निशात के एक खालाजाद भाई शिब्बू मियां थे। वह भी निशात से शादी करना चाहता था। उधर नवाब हादर अली मरहूम के बेटे शौकत मियां भी निशात पर नज़र जमाए हुए थे। इन दोनों उम्मीदवारों से मीर साहिब खूब पैसे ऐंठते थे।
खान बहादुर ने जो कि बड़े खानदान वालों से ही तालुक रखते थे अपनी बेटी निशात की शादी अनवर से तह कर दी।
इधर नवाब अजमतुल्ला की बेगम अपने बेटे अनवर की शादी अपने नाई भाई की बेटी से करना चाहती थी।
शादी वाले दिन बेगम का भाई भी आ धमका। उधर शौकत मियां ने निशात को पकड़ कर कहीं बन्द कर दिया। जब बारात खानबहादुर के बंगले पर पहुंची तो बेगम का भाई आ पहुंचा और उसने नवाब अजमतुल्ला की सारी हकीकत खान बहादुर को बता दी। खान बहादुर आग भगोला हो गए। निशात का क्या हुआ। अनवर और निशात मिले या नहीं। शौकत और शिब्बू का क्या हुआ यह सब परदा स्क्रीन पर देखिये।
(From the official press booklet)