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जोड़ा हो तो ऐसा-जैसा किशोर और शान्ता का-जहाँ बीवी एक दूसरे पर हज़ार जान से कुर्बान-दोनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें बिछड़ना पड़ेगा। मगर किशोर को दफ़्तर के काम से अफ्ऱीका जाना पड़ा-शान्ता अपने बाप दिनदयाल के घर बनारस चली आई-उसके साथ उसकी विधवा सहेली बिमला भी आई जो शान्ता के पास ही रहती थी। शान्ता का छोटा भाई प्रमोद अपनी बहिन और बिमला के प्यार से खिल उठा। बीवी की मौत के बाद दिनदयाल ने दूसरी शादी नहीं की-और उनके दोस्त बांकेलाल ने बहुत ज़ोर भी दिया।
जिस जहाज से किशोर अफ्ऱीका जा रहा था-वह समुन्दर में डूब गया। इस ख़बर ने शान्ता की दुनिया अन्धेर कर दी। दिनदयाल के लिये इस ग़म के तूफ़ान में खड़ा रहना मुश्किल हो गया। शराब में अन्धे होकर एक रात उन्होंने बिमला का हाथ पकड़ लिया और कुछ दिनों के बाद उससे शादी कर ली।
शान्ता और प्रमोद अपने ही घर में बेघर हो गये। नई बीवी को पाकर दिनदयाल अपने बच्चों की सुधबुध बिलकुल भूल गये। और उन्हें मारने पीटने भी लगे-नौबत यहाँ तक पहुंची कि बाप के ख़ोफ़ से प्रमोद का हार्ट फ़ेल हो गया। शान्ता भाई की लाश लेकर गंगा में कूद पड़ी-मगर मुसीबतें बाकी थीं, जो एक गाने वाली ने शान्ता को डूबने से बचा लिया, और वह अब उनकी कैद में थी। इस कैद से निकलकर शान्ता ने बेमिसाल हौसले से ज़िन्दगी का मुकाबला किया-कमज़ोर और अनाथ होते हुये भी तूफ़ानों और शैतानों से टकर ली। और एक दिन वह आया कि लाला दिनदयाल हाथों में ज़न्जिरें पहने अपनी बेटी की अदालत में पेश हुये। यह है नये ज़माने की कहानी।
बाकी रजत पट पर देखिये। किशोर मरा नहीं जिन्दा था।
(From the official press booklet)