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अनाथ राजू को स्कूल के एक सज्जन प्रिन्सीपल अपने गांव से ले आते हैं। लेकिन राजू के लिए स्कूल में आना जैसे पाप हो गया, सारे स्कूल के बच्चे उसे अनाथ कह कर चिढ़ाते और राजू से यह सहन नहीं होता, वो मारपीट कर बैठता। प्रिन्सीपल भी राजू का दुःख देख कर दुखी होता। एक दिन प्रिन्सीपल दुखी राजू को बताता है कि राजू, तू अनाथ नहीं है। तेरे चाचाजी है और वो है चाचा नेहरु।
राजू का दिल खुशी से झूम उठा, तो मैं अनाथ नहीं हूँ मेरे चाचाजी हैं। उसके मासूम दिल में चाचा रेहरु से मिलने की इच्छा बढ़ती गई और एक दिन उसे मालूम हुआ कि चाचाजी मम्बई आ रहे हैं तो राजू चुपचाप स्कूल स्कूल से भाग जाता है और बम्बई पहुँच जाता है, पर राजू के पहुँचने से पहले ही उसके चाचा रेहरु दिल्ली चले जाते हैं। वो मासूम इतने बड़े शहर में अकेला क्या करे, कहाँ जाए, उसे भटकते देख एक गुंडा जबरदस्ती उसे पकड़ कर अपने अड्डे पर ले आता है और उसे भीख मांगने पर मजबूर करता है। बेचारा राजू कर भी क्या सकता था? उसने देखा जिन्होंने ना कहा उनके पांव, हाथ काट दिए जाते है, अन्धा कर दिया जाता है। उसका मासूम दिल दर्द से भर आया, उसे वहाँ एक अन्धी लड़की मुनिया दिल्ली भाग जाने को उत्साहित करती है ताकि राजू चाचा नेहरु से जाकर यह सब बताएगा तो चाचाजी हमें इन दुष्टों से बचा लेंगे।
राजू भाग निकलता है और दिल्ली पहुँच जाता है। चाचाजी के लिए एक लाल गुलाब का फूल लेता है और त्रिमूर्ती का पता पूछते हुए आगे बढ़ता है, बड़ा खुश है आज अपने चाचाजी से मिल ही लेगा, पर भाग्य को यह मंजूर नहीं था। मासूम राजू की आंखें से गंगा जमना बह निकली पर उसकी आत्मा ने एक आवाज सुनी, चाचा नेहरु अमर है, वे हमेशा तुम्हारे साथ है। अच्छे काम करने वाले और अच्छे रास्ते पर चलने वाले के पथ प्रदर्शक बन कर हमेशा उसके साथ है।
(From the official press booklet)