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नाटक की एक विधा- नौटंकी, जिसे भोजपूरी समाज में नाच के नाम से भी जाना जाता है और नाच में काम करने वाले कलाकारों को नचनियाँ कहा जाता है। पूर्व में भी कोई भी प्रतिष्ठित विवाह या समारोह नाच के बिना अधूरा माना जाता था। फिल्म की कहानी भी भोजपूरी परिवेश के सौम्य एवं लोक संगीत में पिरोयी हुई एक नचनियाँ परिवार की तीन पीढ़ियों की दास्तां है। जिसमें भोजपूरी समाज की सौंधी माटी की सुगंध, सौंदर्य, संगीत एवं नृत्य समाहित है, जो कि उ.प्र. ही नहीं बल्कि बिहार, बंबई, कलकता और माॅरिशस में भी जानी जाती है। पहली पीढ़ी वह जब नाच में मर्यादानुसार धार्मिक नाटकों का मंचन किया जाता था-जैसे- ’’राजा हरिश्चन्द्र, तारामती, सत्यवान सावित्री’’ आदि। दूसरी पीढ़ी 90 का दशक जब टी.वी., वी.सी.आर. से गाँव-गाँव में अश्लील फिल्मों के प्रदर्शन का प्रचलन शुरू हुआ जो अश्लीलता और फूहड़पन का आरंभिक दौर था। बारातें अपनी मर्यादा का उल्लंघन करने लगी, शराब होठों को छूने लगी थी। तीसरी पीढ़ी आज की आधुनिकता की, जब नाच खत्म हो गया उसके कलाकार मेलों में उत्तेजक नृत्य के पर्याय बन गये।
नाच परिवार के सदस्य नचनियाँ जिनका नाच एवं गाने को ही समर्पित रहता है, यही उनका व्यवसाय भी और भावना भी, यानि सब कुछ यही। नचनियाँ कभी बारात की शान होती है तो कभी मनौती पूरी होने पर मंदिरों में नचाई जाती है। आज वह कभी मेले या उत्सव में मनोरंजन का साधन होती है, तो कभी लोक जीवन में पतुरिया होती है। यही नाचने, गाने की कला इन्हें समाज में एक उपभोग की वस्तु बना देती है और एक तुच्छ दर्जे पर लाकर खड़ा कर देती है।
वर्तमान में इन नचनियों का उपभोग मात्र मनोरंजन तक ही सीमित नहीं रह गया है अब यह महफिलों की शान कमरों की शान, मेहमानों को खुश करने का साधन और मेलों में उत्तेजक, नृत्य करने वाले नर्तक बनकर रह गई है। कानों में रस घोलने वाले स्वर अब भयंकर चीखों में बदल गये हैं। मनौती पूरी होने पर मंदिरों में नचाई जाने वाली नचनियाँ, खुद के अस्तित्व एवं कला की रक्षा की मनौती मंदिरों में मांगती हुई नजर आती है।
शोषण के इस वीभत्स समाज में एक नचनियाँ परिवार की तीन पीढ़ियों के संघर्ष की मार्मिक कहानी का चित्रण करना इस फिल्म का प्राथमिक उद्देश्य है। जहाँ एक ओर समाज फिल्मी कलाकारों को सिरमौर बनाकर रखता है वहीं दूसरी ओर पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी कला को जीवित रखने वाले इन नचनियों को हमारा समाज दोयम दर्जे में रखता है और हेय की दृष्टि से देखता है आखिर क्यों?
[From the official press booklet]