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Mehrban (1967)

  • LanguageHindi
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एक था राजा और एक थी रानी। इनके तीन शहज़ादे और एक शहज़ादी थी। शहज़ादे व्याहे जा चुके थे और शहज़ादी अभी कुँवारी थी। उस राजा का एक गुलाम भी था। मालिक के एक इशारे पर मर मिटने वाला भोला भाला इन्सान, जिसकी ज़िन्दगी का मक़सद सिर्फ़ प्यार करना था; दोस्त से भी और दुश्मन से भी। वो राजा कोई पुराने ज़माने का तख़्तोताज का मालिक नहीं था बल्कि इसी दौर का एक रईस था। नाम था शान्तीस्वरूप और उसके गुलाम का नाम था कन्हैय्या। कन्हैय्या उस घर का नौकर नहीं था बल्कि उसे उस घर में मालिक जैसे अखित्यार हासिल थे। और तो और शान्तिस्वरूप के बेटे तक उसका डुक्य मानते थे।

लेकिन एक दिन ऐसा भी आया कि शान्तिस्वरूप राजे से भिखारी हो गया। अब उसकी अपनी औलाद उससे आँखें चुराने लगी। अब उसका सिर्फ एक ही हमदम एक ही दोस्त था.... कन्हैय्या। ग़रीब कन्हैय्या ने अपने मालिक के लिये क्या कुछ किया ये पर्दाये सीमी पर देखिये।

(From the official press booklet)