indian cinema heritage foundation

Mast Qalandar (1955)

Subscribe to read full article

This section is for paid subscribers only. Our subscription is only $37/- for one full year.
You get unlimited access to all paid section and features on the website with this subscription.

Subscribe now

Not ready for a full subscription?

You can access this article for $2 + GST, and have it saved to your account for one year.

Pay Now
  • LanguageHindi
Share
33 views

शाही महलों की दीवारों पर पड़े हुए खून के छींटे गवाह है कि ताज के लालच में भाई-भाई का खून बहाता रहा है। खरासान के महलों में भी एक रात ऐसा ही खून जमिल के हाथों बहाया गया, लेकिन मलका और वलीअहद कमीने जमिल के हाथ न लग सके। शाह मरहूम के वफ़ादार नौकर जलाल इन्हें खुफिया रास्ते से लेकर फरार हो गया। मलका वलीअहद और अपनी हामला बीबी रशीदा को खण्डहर में छोड़ कर जलाल रातों रात महल में आ घुसा और छूरे के एक ही वार से अपने आका के खून का बदला चुका लिया लेकिन वज़ीर आज़म के फ़रेब ने जलाल और मलका को क़ैद की काल-कोठड़ी में फेंक कर ताज फिर वलीअहद के सर तक न पहुंचने दिया।

वफ़ादारों के जिस्म फौलाद के बने होते हैं। एक रात जलाल क़िले की दीवारें फलांग रक कैद से रिहा हो गया। हण्डहर में पहुंचा तो बदनसीब बीबी बच्ची को जन्म देकर जहानेफ़ानी से जा चुकी थी। बाप की आंखें रो पड़ीं लेकिन जलाल की वफा मुस्कराती रही। बीबी की याद को सीने से चिमटाए और वलीअहद का बोझ कन्धों पर उठाए वो वफा की पगडंडी पर आगे बढ़ गया। किसी वफादार की मदद से मलका कैद से रिहा होकर बेटे की बलाएं लेने बाहर आई, लेकिन जलाल जा चुका था, कुदरत मां और बेटे के दरम्यान जुदाई की संगीन दीवार खड़ी कर चुकी थी। बीस साल तक मां अपने दुलार को खोजती रही, बुढ़ापा आ गया, लेकिन बेटा न मिला।

वक़्त ने वलीअहद का नाम मस्तकलंदर रख दिया और वो अजीब दिन भी आ पहुंचा कि हुकूमत का ताजदार अपनी ही प्रजा के सामने नट बस कर नाच रहा था। आज़म की बेटी शाहजादी सीमा की शाही बग्घी इधर आ निकली। ढोलक की थपकार जो पड़ी, घोड़े विदक गये। सीमा की जान खतरे में थी कि मस्त ने आगे बढ़ कर उसकी जान बचा ली। शहजादी तो बच गई लेकिन मस्त का दिल न बच सका। मुहब्बत ने मस्त के गले में गीतों की शकल इख्तयार कर ली। वो भेस बदल कर महल में शहजादी के सामने आ रहा था, शहजादी का दिल भी मस्त के लिए धड़कने लगा, लेकिन आज़म के भतीजा चांद को दिलों का ये प्यार रास न आया। चालाकी से उसने मस्त को शाहजादी का पैगाम भेज कर शाही चष्मे पर बुला भेजा। अभी दो दिल मिलने न पाए थे कि जुदा कर दिए गये। जसाल की बेटी नूर ने अब्बा को मस्त की गिरफ़्तारी की खबर दी। उस पर बिजली टूट पड़ी। अभी जलाल की वफा मस्त के लिये ठीक से रो भी न पाई थी कि ग़ार पर शाही हमला हो गया, जलाल के सब साथी मारे गये। जख़मों से चूर वो खण्डहर की तरफ भाग खड़ा हुआ। उधर मस्त जेल से खण्डहर की तरफ भाग रहा था कि किसी सिपाही की गोली ने उसे भी जख़मी कर दिया। आका और नौकर मिलते मिलते रह गये। जलाल बीबी की क़बर पर गला फाड़-फाड़ कर अपनी ही शिकायत करने लगा। क़बर तो खामोश रही लेकिन जलाल की आवाज़ पहचान कर मलका वहां आ पहुंची। किस क़दर ग़मनाक था ये मुक़ाम कि मलका जलाल को मिली भी कब, जब की वफ़ादार हाथ उसकी अमानत खो बैठे थे। यही नहीं अब मस्त को छुड़ाने के लिए उसके पास न दौलत थी और न ही साथी। लेकिन मलका की तसल्लियों ने उसमें नई रूह फूंक दी, उसकी हिम्मत आज़म से टकराने के लिए एक बार फिर से तैयार हो गईं। मलका वापस खण्डहर की तरफ लोट रही कि मां के पांव की ठोकर बेहोश बेटे को लगी, लेकिन हाय रे नसीब मां बेटे को पहचान न सकी।

मस्त की गिरफ़्तारी के इनाम का ऐलान बस्तियों और जंगलों में गूंज उठा था। मलका ने भी आवाज सुनी और अपने बेटे को छुड़ाने की गरज से पांच हज़ार अशर्फियों के बदले मस्त को गिरफ़्तार करा दिया। एक मां ने अपने बेटे को दौलत के लिए बेच डाला। ये सब किस तरह हुआ, परदे फिल्म पर देखिये।

(From the official press booklets)