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सावित्री अपने बेटे दर्शन को ज़रूरत से ज्यादा प्यार करती थी- वो ये बर्दाश्त कर ही नहीं सकती थी कि उसका लाडला किसी और को प्यार करे, यहाँ तक कि उसकी सगी छोटी बहन सीता को भी दर्शन को प्यार करने का अधिकार नहीं था- ममता के तूफ़ान में घिरी हुई सावित्री ने दर्शन को भी मजबूर किया कि वो किसी और को प्यार न करे लेकिन वो दर्शन की भावनाओं पर बाँध न लगा सकी। और जैसे जैसे उसका ये डर बढ़ता गया कि वो अपने बेटे को खो बैठेगी वैसे वैसे उसकी ये कोशिश भी बढ़ती गई कि वो उसको सारी दुनिया से छुपा कर अपनी गोद में समेट ले- उसकी इस हरकत से सारे घर में दुख के बादल छा गये- सावित्री भी अपनी ही लगाई हुई आग से न बच सकी। वो हर घड़ी इसी सोच में मरी जाती थी कि अगर दर्शन को सच्चाई का पता चल गया तो वो उस से इतना प्यार नहीं करेगा जितना अब करता था।
वो कौन सी सच्चाई था जिसे वो दर्शन से छुपाना चाहती थी?
क्या वो छुपा सकी?
ये सब लाडला में देखिये।
[From the official press booklet]