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जीवन नाम है अच्छे और बुरे दिनों का, गर्मी और बरखा का, धुप और छाँव का।
अजीत बनारस के पास एक गाँव जगतपूर में खेती-बारी करके अपनी इकलौती बहन पारो के सुख-सपनों का ताना-बाना बुन रहा था। उसने पारो की शादी तय कर दी। ज़मीन्दार हरिदास अपने कर्ज़दार अजीत से अपनी बेइज्ज़ती का बदला चुकाने की ताक में बैठा था। वकील गुलशन राय की लड़की मधु, ज़मीन्दार के लड़के डाक्टर मनोहर को चाहती थी। मनोहर उसे ठुकरा चुका था। लेकिन ज़मीन्दार ने मधु को अपनी बहू बनाने का लालच देकर, वकील को अपने साथ मिला लिया। परो के भरे मंडप में कुर्क अमीन ने अजीत का घर-बार, खेतीबारी, और दहेज़ का सामान तक कुर्क करा लिया। अजीत को जेल की बन्द कोठरी में अपने आँसू पोंछने पड़े और पारो के मेहन्दी रचे हाथ, गली-कूचों में अपनी निष्ठुर किस्मत को टटोलने लगे। भाग्य चक्र पारो को उसके भाई अजीत के दुश्मन ज़मीन्दार के बेटे मनोहर के नर्सिंग होम में ले आया।
पारो के नर्सिंग होम में आने से, मधु के कलेजे पर साँप लोटने लगे। उसने ज़मीन्दार को भड़का कर पारो को फिर से बेघर बना दिया। लेकिन भगवान इस संसार में भेजने से पहले ही सबका ठिकाना बना देता है। उसी शहर के एक गरीब लेकिन शरीफ सिख से उसकी भेंट हुई। और वह सिख ज्ञानी जी की सहायता से शहर के एक सेठ के घर नौकरानी बन गई। किस्मत बदलते देर नहीं लगती। मंडप में सेठ की लड़की की जगह पारो नौकरानी से मनोहर के दिल की रानी बन गई।
ज़मीन्दार के खून का प्यासा अजीत जेल से छूट कर सीधा ज़मीन्दार के घर आया। अपनी बरबादी का बदला लेने के लिये वह चोरी छिपे ज़मीन्दार के घर में घुसा। लेकिन वह क्या जानता था कि जिस आदमी की जान का वह दुश्मन बन कर आया है, उसकी सगी बहन पारो उसके दुश्मन की बहू बन चुकी है। रात के अंधेरे में उसे अपनी बहन पर ही वार करना पड़ा। भाई-बहन की मुलाकात किस्मत को फिर न भायी और ज़मीन्दार ने पारो पर बदचलनी का झूठा इल्जाम लगाकर उसे घर से बाहर निकाल दिया।
घनघोर बरसती रात में, गिरती पड़ती पारो को कस्तूरबा प्रसूतिगृह में आसरा मिला। वह माँ बन गई। लेकिन गरीबी क्या नहीं कराती? उसने अपनी ममता का गला घोंट दिया। उसे अपने कलेजे के टुकड़े को शहर के एक रईस को सौंपना पड़ा। कौन अभागन माँ होगी जो इस जुदाई को सहन कर सकेगी।? वह गंगा की गोद में कूद पड़ी। लेकिन अजीत बहन से मिलकर लौटने के बाद नाविक बन गया था। सहोदर अजीत ने उसे लहरों से दान माँग लिया।
मधु के छिछोरे हाव-भाव से मनोहर का घाव और भी हरा हो गया। उसने मधु को सदा के लिये ठोकर मार दी। जब औरत शबनम से आग बनती है, तब वह औरत नहीं रहती। उसने मनोहर को कत्ल करवाने की ठान ली और उसके लिये उसने अजीत को चुना।
क्या अजीत ने अपनी बहन की माँग का सिंदूर मिटा दिया? क्या वह अपनी बरबादी का बदला ले सका? क्या पारो अपने कलेजे के टुकड़े को इस जीवन में वापस पा सकी?
(From the official press booklet)