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कविवृन्द का रहत-पट पर काव्यपाठ-क्रमानुसार
राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह ’दिनकर’ -
’’झूमे चरण के नीचे मैं उमंग में गाऊँ
और तान, तान फण व्याल कि तुझपर मैं बाँसुरी बजाऊँ...’’
श्री संतोषानन्द -
’’जिसने जन-जन का रुप तराशा है,
मेरी भाषा, हिन्दी भाषा, सब की भाषा है...’’
श्री काका ’हाथरसी’ -
’’लक्ष्मी मैया वर दे,
काका कवि को इसी वर्ष करोडपति कर दे,
वर दे, लक्ष्मी मैया वर दे...’’
श्री सोम ठाकुर -
’’सागर चरन परवारे गंगा शीश चढ़ाये नीर,
मेरी भारत की माटी है, चंदन और अबीर,
सौ सौ बार नमन करूँ मैं,
मैया, सौ सौ बार नमन करूँ...’’
श्री बेकल ’उत्साही’ -
’’नदिया प्यासी, खेत उदासे, उजड़े है खलिहान,
मैं कैसे गीत सुनाऊ...’’
श्री नीरज -
’’खुशी जिसने खोजी, वह धन लेके लौटा,
हँसी जिसने खोजी, वह चमन लेके लौटा...’’
श्रीमती स्नेहलता ’स्नेह’ -
’’तन की सीमाएँ चेतन बैरागी है,
कैसे समझाऊँ मैं, मन तो अनुरागी है...’’
श्री राधेश्याम ’प्रगल्भ’ -
’’सिपाही देश के मेरे कफन को बाँध के सरसे,
चले हैं आज जब घर से,
तो घटाओं की तरह घुमड़ो,
बवन्डर की तरह उमड़ो...’’
श्री शैल चतुर्वेदी -
’’वैसे तो मैं एक शरीफ इन्सान हूँ,
आप ही की तरह श्रीमान हूँ,
मगर अपनी बाईं आँख से बड़ा परेशान हूँ,
अपने आप चलती है,
लोग यूँ समझते हैं कि चलाई गईं है
जान बूझ कर मिलाई गई है,
एक बार बचपन में, शायद सन् बचपन में
क्लास में एक लड़की बैठी थी पास में
नाम था सुरेखा, उसने हमें देखा,
और हमारी आँख वहीं चल गईं...’’
श्री ओम प्रकाश ’आदित्य’ -
’’दोपहरी में चोर द्वार का तोड़ रहा था ताला
पुलिसमैन था खड़ा सड़क पर बोला उससे ’लाला’,
’खड़े खड़े क्या देख रहे हो पकड़ो इसे सिपाही!
कहा सिपाही ने, इसको मैं नहीं पकड़ता भाई
आगे चलकर मेरी नौकरी खो सकता है...’’
श्री गोविन्द व्यास -
’’मैं हार गया, मैं हार गया मैं हाय
इलेक्शन हार गया...’’
श्रीमती माया देवी -
’’तुम एक बार आजाओ प्रिये ता आँचल बाँध सुहाग ओढूँ
काजल आंजू, पायल बाँधू ट्टग में झाकूँ, दपर्ण तोडूँ
तुम एक बार आजाओ...’’
श्री निर्भय ’हाथरसी’ -
’’एक मिनिस्टर को गुस्सा आया
तो चपरासी पर चिल्लाया...’’
श्री बालकवि ’बैरागी’ -
’’नेहरु चाचा ओ
कि कश्मीर की धरती पर जो भी आँख उठाएगा
नेहरु चाचा कसम तुम्हारी मिट्टी में मिल जाएगा...’’
श्री माणिक वर्मा -
’’आजका मनहूस दिन भगवान जाने कैसे कटेगा
सुबह सुबह पत्नी की सूरत देखी है...’’
श्री केदार शर्मा -
’’एक दिन राधा ने बाँसुरिया नंदलाल की चुपके से चुरा ली...’’
श्री गोपाल प्रसाद व्यास
’’रहिबे को मकान होय अट्टा दार
और हाथ सिलबट्टा पर उच्छक्का देय हिलक जाय...’’
[From the official press booklet]