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हिमालय की गोद में बसे हरीपुर गांव में गंगा और जमना की बिधवा मां ज़मींदार के घर में काम करके अपने बेटों को पालती। गंगा काम में मां का हाथ बटाता और जमना..... जमना अपनी पढ़ाई में मगन रहता।
ज़मींदारनी का भाई हरीराम चालचलन का आदमी था। एक दिन उसने अपनी ऐय्याशी के लीये अपनी बहन के गहनों का डिब्बा चुरा लिया और उसका दोष गंगा जमना की निर्दोष मां के माथे मढ़ दिया। यह कलंक मां के लिये जानलेवा बन गया। गंगा के मन पर इससे बड़ी चोट लगी।
दुखदर्द सहता हुआ गंगा जवान हुआ। वह सच्चाई से जीना चाहता था। मां की अंतिम इच्छा को पूरा करना और भाई के जीवन को संवारना, उसके जीवन का सबसे बड़ा काम, सबसे बड़ा सपना था। जमना को आगे पढ़ाने और अपने जीवन निर्वाह के लिये उसने ज़मीदार के गोदाम में नौकरी करली थी। जमना को शहर पढ़ने के लिये भेजकर गंगा बहुत खुश था।
गांव के नाचगानों और कबड्डी के वार्षिक दंगल में गंगा सबसे आगे रहता। हां अगर वो किसी से जीत न पाता तो वो धन्नो थी, चंचल और अल्हड़ धन्नो जो गंगा की हर बात में मीनमेंख निकालती, उसका मज़ाक उड़ाती.... फिर भी वह उसे अच्छी लगती।
एक दिन धन्नो को अकेला पाकर हरीराम ने उसकी इज्ज़त लूटनी चाही लेकिन अचानक गंगा ने वहां पहुंचकर धन्नो को बचा लिया। इस काम से उसने धन्नो का मन तो जीत लिया लेकिन हरीराम को सदा के लिए अपना शत्रु बना लिया..... और एक दिन हरीराम ने गंगा पर अनाज की चोरी का दोष लगाकर उसे जेल भेजवा दिया। जेल से लौटकर गंगा सुख शांति से जीवन बिताना चाहता था, लेकिन हरीराम उसके जीवन में बराबर एक कड़वाहट एक ज़हर घोलता रहा।...... और एक दिन अनीति और अत्याचार के विरुद्ध उसके मन में सुलगती हुई विद्रोह की आग, ज्वाला बनकर भड़क उठी।
ज्वाला जिसका काम जलाना है। कोई भी हो, कुछ भी हो, वह सबको जला डालती है।
(From the official press booklet)