अपने घर की इज्जत कायम रखने के लिए भारतीय नारी अपनी जान की आहुती भी दे देती है।
घरकी लाज की मुख्य अभिनेमी रंजना का चरित्र भी इसी भावना पर आप्धारित है।
जवानी के प्रथम पहर से ही उसे एक अच्छे पति का पयार तथा शहर के सुप्रतिष्ठित जज की ससुर के रूप में दुलार मिला था। मगर विधाता को ये अच्छा न लगा और उसका पति...! उसका जीवन अंधकारमय हो गया-उसकी आशायें बिखड गई-वह विधवा हो गई।
इतना ही नहीं,! समाज को जब उसकी ससुर-सेवा-वृत्ति भी अच्छी न लगी तो उसने कोसना शुरू किया, अफवाहें उडाई, और वह अभागिन जिंदगी से हताश होकर मरने लगी। मगर-मगर उसकी छोटी बहन शोभा ने उसे मरने की इजाजत न दी। पूर्ण आधुनिक युवती शोभाने उसे जीवित रहने के लिए बूढे सुसर से शादी कर ली।
उजडा घर फिर से आबाद होता दिखाई देने लगा-किन्तु कुछ ही दिनों के लिए। फिर गलत-फदमी ने दामन कला और शोभा भी उसपर शक कर बैठी। बात यहाँ तक बढ गई कि उसने घर तक छोड दिया।
बूढ़ा दिमागी चोट बर्दास्त न कर सका-उसकी भी आवाजें बंद हो गई। डाक्टरों की सलाह से रंजना ने आंसू भरी गीत गाये और जज साहब को फिर से नई जिंदगी मिली। इसी समय बाबूलाल से पता चला कि शोभा को बच्चा हुआ है। रंजना फुली न समाई, तथा जज को लेकर उसे देखने चल पड़ी। इनके पहुँत ही शोभा ने दरवाजा बंद कर लिया और इन्हें निराश लौटना पड़ा। किन्तु कुछ ही क्षण बाद घर धू धूकार जलने लगा। रंजना लौट न सकी। जज के साथ धधकती ज्वाला में कूद पड़ी।
फिर क्या हुआ? आग का भयंकर परिणाम क्या निकला, शोभा का बडाय दूर हुआ या नहीं... परदे पर देखिये।
[From the official press booklet]