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Duniya Na Mane (1937)

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  • Release Date1937
  • GenreDrama
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
  • Run Time151 min
  • Gauge35mm
  • Censor RatingU
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{एक गांव}

{"मां पर पूत पिता पर घोड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा" गांव में रामलीला हो- नाटक हों-मां बाप उनमें हर तरह से हिस्सा लें और बच्चे पीछे रहें? एक रोज़ दोपहर के वक़्त बड़े बूढ़े तो आराम कर रहे थे कि बच्चों को स्वराज्य मिल गया और उनको खुद नाटक करने की सूझी।}

ड्रामे का नाम था "शारदा"-वही जो अपने बड़ों के साथ देखा करते थे! यानी एक था बूढ़ा और एक थी जवान लड़की-एक पुरोहित यानी धर्म के ठेकेदार ने उनकी शादी कराई-नतीजा....?

ग़रज़ के ड्रामा होने लगा-बोर्ड लगाया तो अजीब-यानी

"देहाती नाटक समाज"

ओ ऽ ओ ऽ नहीं नहीं "नाक"-"नाटक" की है-और "ट" बेचारी ऊपर लटक कर रह गयी है-

परदा-मां बहिनों की फटी पुरानी धोतियां जिसमें से पहले ही अन्दर का पूरा पूरा दृश्य नज़र आ रहा है - दूर हुआ, अरे यह कौन? अपनी बड़ी बड़ी मूछों से तो मैनेजर मालूम होता है।

मॅनेजरः- हम ई कंपनी के मॅनेजर आन्-और ई का सबूत यू हमार बड़ी मुआछें।

एक छोकरा-हां-हां-यह तो हम जानित हैं-आगे कहो-

मैनेजर-...मैं...मैनेजर... मैं.... मैनेजर (अन्दर से एक "मुन्डी" सिर बाहर को झांककर बोलता है)

अरे-हमार इस खेलमां-(अरे ओ-प्रामटर मालूम होता है)

{पबलिक-यानी वही देखने वाले लड़के- -हंसी न उड़ायें इस लिए, मैनेजर प्रामटर के हाथ से काग़ज़ छीन कर अपना भाषण एक ही सांस में पढ़ जाता है पीछे कोई डंडेवाला है क्या?}

मैनेजरः- हमारे इस खेल में औरतों का काम शरीफ़ औरतें करेंगी और मर्दों का भी काम शरीफ़ मर्द करेंगे इस लिए बीड़ी पीने की सख़्त मनाई है।

{अरे वाह-"कौन कहता है कि दुनिया तरक्क़ी नहीं कर रही है" बड़े बुजुर्ग तो अभी यह सोच ही रहे हैं कि औरतों को नाटक सिनेमा में हिस्सा लेना चाहिये या ना? कि देहात के "नाक" में शरीफ़ औरतें काम करने के लिए पहुँच भी गई-समझे आप??}

(लड़के तालियां बजाते हैं-बेचारा मैनेजर वहां से "खिसकता" है। सूत्रधार (वाह शक्ल से क्या रोब बरसता है?) अपने साथियों के साथ पधारते हैं-भगवान के नाम पर शगुन के तौर पर फूल फेंकते हैं कि बच्चे अपना ही "चढ़ावा" समझ कर उनको "समेट" लेते हैं-)

(चलो बच्चों को भी तो ईश्वर का स्वरूप मानते हैं!?..... मगर बंदर का नाम भी तो देते हैं!?)

(From the official press booklet)