Subscribe to the annual subscription plan of 2999 INR to get unlimited access of archived magazines and articles, people and film profiles, exclusive memoirs and memorabilia.
Continueकपटी भद्रचामुण्ड साधु का वेष बनाकर महल में गया और छल-कपट से चन्द्रकान्ता को कुतिया बनाकर ले गया।
भद्रचामुण्ड ने चन्द्रकान्ता को फिर से मानव रूप दिया तो मोहिनी जलभुन उठी।
जादूगर चन्द्रकान्ता के पास पहुंचा। ज्योंही वह आगे बढ़ा सतीत्व की आग की लपटें उस पर झपटी। ग़ुस्से से पागल होकर उसने चन्द्रकान्ता को कैदख़ाने में डाल दिया।
आनन्दकुमार एक बड़ी सेना लेकर आये मगर जादूगर ने उन्हें सेना समेत पत्थर बना दिया।
चन्द्रकान्ता को जादूगर की क़ैद में बारह वर्ष बीत गये। विजयकुमार बड़ा हुआ और एक रात छुपकर घर से भागा और अपनी मां से मिला। उसे अपनी मां से पता चला कि जादूगर के प्राण एक तोते में हैं जो सात-सात पर्वतों के पार है। विजय बड़ी-बड़ी मुसीबतें झेलकर आख़िर तोता ले ही आया।
मगर किले में घुसने से पहले ही दरवाज़ा बन्द हो गया। दूर कहीं गणेशजी के मन्दिर में मूर्ति थी जिनसे उसने अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। गणेशजी के सैकड़ों हाथियों ने किले पर धावा करके किले को नष्ट कर दिया।
जादूगर चन्द्रकान्ता को मारने गया। मगर राजकुमार ने तोते की गर्दन मरोड़ दी। जादूगर मर गया। उसके मरते ही उसका सारा जादू खत्म हो गया। आनन्दसेन-चन्द्रकान्ता और विजयकुमार आपस में मिले। चारों तरफ़ खुशियों के बीच में विजयकुमार को युवराज बनाया गया।
(From the official press booklet)