Subscribe to the annual subscription plan of 2999 INR to get unlimited access of archived magazines and articles, people and film profiles, exclusive memoirs and memorabilia.
Continueसन् 1764 की बात है। भारत के लिये, ये दिन बडे संकट के थे। बंगाल के बाद, ईस्ट इंडिया कम्पनी, अपनी हुकूमत दक्षिण-भारत में फैलाने के मन्सूबे बांध रही थी। उन्होंने अरकाट के बुज़दिल नवाब को कर्ज में फंसा कर, वसूली के नाम पर, दक्षिण में अपना कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया था। मगर, उन्हीं दिनों, दक्षिण में एक जबरदस्त देशभक्त ताकत भी थी, जिससे टक्कर लेना मामूली बात नहीं थी। वह ताकत थी- वीरपांडिया कट्टबोमन-पांचाल-करुचि के महाराज।
अंगरेज़ों ने वीरपांडिया को फुसलाना चाहा, मगर नाकाम रहे। उन्होंने कट्टबोमन के राज में अराजकता मचानी शुरू की, थैलियों के मुंह खोल दिये, लेकिन उन्हें वहां गद्दार नहीं मिल सके। और जब टैक्स मांगने की जुरअत की, तो वीरपांडिया की बहादुरी के सामने मुहं की खानी पड़ी। तब, अपनी कूटनीति से, अंगरेज़ों ने, ऊपर से तो, दोस्ती बनाये रखी, मगर अन्दर ही अन्दर से, वीरपांडिया के बेवकूफ़ और बुज़दिल पड़ोसियों को अपनी ओर मिलाना शुरू किया और देश के इन गद्दारों की मदद से, वीरपांडिया कट्टबोमन पर हमला किया। आजादी की इस लड़ाई में, वीरपांडिया अमरशहीद हो गये और हिन्दुस्तान की अज़ादी हासिल करने की राह में, वे अपने प्राण निछावर करने का सबक सिखा गये, जिस राह पर, झांसी की रानी, तात्या टोपे, भगतसिंह और देश के हजारों शहीद चलते रहे और हिन्दुस्तान को आज़ाद कर के ही दम लिया।
इस रोमांचकारी कहानी को, मद्रास पद्मिनी पिक्चर्स ने, 25 लाख की लागत से, टैक्नीकलर की भव्यता में पेश किया जो अब तक के बने, सभी ऐतिहासिक चित्रों में, सर्व श्रेष्ठ है और जिसे, आलोकभारती ने अब हिन्दी में तैयार किया है। विदेशी गुलामी के खिलाफ अपने प्राण होमने वाले, भारत के पहिले शहीद को, आलोक-भारती की यह विनम्र श्रद्धांजली है।
(From the official press booklet)