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ज़ाका (अमरीश पुरी) और शाका (शक्ति कपूर) के बदनाम गैंग में जॉनी (अनील कपूर) नया-नया शामिल हुआ था।
शाका को "पीटर" के रूप में जॉनी उस वक्त जानता था, जब वह बहुरूप बदल-बदल कर रोज़ी-रोटी कमाया करता था। पीटर के ज़रिये जॉनी पहुँचना चाहता ता ज़ाका तक, ताकि ज़ाका के लिए बड़े-बड़े काम करे और खूब दौलत कमाये।
एक ईमानदार पुलिस अफ़सर, इंस्पेक्टर शेखर (जितेन्द्र), जो ज़ाका के एक-एक कारनामे से वाकिफ था और ज़ाका और उसके गैंग बेनकाब करके कानून के हवाले करने के लिए जान तोड़ कोशिश
शेखर एक पुलिस आफिसर होने के साथ-साथ चुंकि एक इन्सान भी था। अपनी ड्यूटी के अलावा उसे अपनी छोटी बहन से भी बेहद प्यार था। उसकी बहन सुनीता (अर्चना जोगलेकर) अपने भाई शेख के गहरे देास्त राकेश (राज किरन) की मुहब्बत में गिरफ्तार थी। शेखर भी चाहता था कि जल्दी से अपनी बहन के साथ पीले कर दे ताकि वो अपने घर में सुखी रहे।
और एक दिन इंस्पेक्टर शेखर की पकड़ में ज़ाका के गैंग का एक खास आदमी रॉनी (शरत सक्सेना) आ जाता है। रॉनी के ज़रिये शेखर ने पीटर को फाँसने के लिए एक जाल फैलाया लेकिन पीटर के बजाये फंस गया जॉनी। और पीटर भाग निकलने में कामियाब हो गया मगर जॉनी काफी कोशिशों के बाद धर लिया गया। पूछ-ताछ करने पर जॉनी अपना शिनाख्ती कार्ड दिखलाता है, जिसमें उसका असली नाम "रवि सक्सेना" है जो दिल्ली पुलिस का आदमी हैं। उसे ज़ाका गैंग को खत्म करने के लिए विशेष रूप से भेजा गया है।
अब शेखर और जॉनी दोनों ज़ाका के खास अड्डे का पता लगाने में जुट जाते हैं। इधर रॉनी अपनी ज़बान खोलने पर तैयार नहीं था। वो जानता था कि जिस दिन उसकी ज़बान खुली, वही दिन उसकी जिन्दगी का आखरी दिन होगा। इंस्पेक्टर रवि और शेखर ने एक नई चाल चली। रॉनी को यह कह कर रिहा कर दिया कि वो सरकारी गवाह बन गया हैं। जिस घड़ी रॉनी कोर्ट से बाहर आया, ज़ाका गैंग के आदमी रॉनी को खत्म करने की कोशिश में थे। उन्हें डर था कि रॉनी अपनी ज़बान न खोल दे। रॉनी अपनी जान बचाकर भागा। ज़ाका के गुंडे उसके पीछे लग गये....लेकिन साथ ही रवि सक्सेना भी अपनी जान बचाने के लिए रॉनी एक आडिटोरियम में घुस गया, जहाँ से रॉनी फोन करता हैं इंस्पेक्टर शेखर को वो बताता है कि जल्द से जल्द यहाँ पहुँचे। वो सिल्वर स्क्रीन थिएटर की सीट नं. जी-20 में बैठा हैं जहाँ वह उस से मिलना चाहता है और खुद को पुलिस के हवाले करना चाहता हैं। इसी बीच रवि सक्सेना आडिटोरियम में दाखिल होता हैं। गीता उसे देखते ही न केवल नाच और गाना बंद कर देती है, बल्कि रवि को राजा कह कर पुकारती है। रवि अपनी असलियत छिपाने के लिए खुद भी गीता के साथ नाचने-गाने लग जाता है लेकिन रॉनी पर भी नज़र रखता हैं।
इंस्पेक्टर शेखर आडिटोरियम में पहुँच जाता हैं। यहाँ रवि को नाचता गाता देख कर शेखर को आश्चर्य होता है। रॉनी की बगल वाली सीट पर शेखर बैठ जाता हैं और बात करने की कोशिश करता हैं लेकिन यह जान कर उसे जहनी झटका लगाता है कि रॉनी मर चुका है, उसे छुते ही उसका शरीर शेखर पर आ गिरता है। दर्शकों में काना फुसी शुरू हो जाती है। राजा और गीता भी दौड़ कर वहीं पहुँच जाते हैं। राजा पर शेखर आरोप लगाता है कि ये सब उसी की लापरवाही के कारण हुआ है। इस बीच गीता फिर एक बार जॉनी को राजा कह कर बुलाती है, जिस से शेखर को शक हो जाता है। अब शेखर रवि सक्सेना पर नज़र रखना शुरू कर देता है। शेखर को पता चलता है कि रवि का आना जाना गीता के यहाँ है। वह तुरंत दिल्ली क्राइम ब्राँच से संपर्क करता। यह जान कर शेखर को एक और ज़ोरदार झटका लगता है रवि सक्सेना मर चुका है तो फिर यह कौन है?
गीता और राजा का आपस में क्या रिश्ता है?
आखिर राजा ने इतने नाम और भेस क्यों बदले?
राजा आखिर ज़ाका तक क्यों पहुँचना चाहता है?
क्या राजा का कोई मिशन था? और अगर था तो क्या?
इन सबके अलावा एक और पात्र है "बिजली" (किमी काटकर) एक समय था जब वो बरखा थी, जो अपने कॉलेज के ज़माने में एक होनहार छात्रा थी। लेकिन हालात ने उसे मजबूर कर दिया कि वो कॉलेज छोड़ कर लूट और धोखे बाज़ी करे।
क्या बिजली का सही राह पर लाने में इंस्पेक्टर शेखर कामियाब हो गया?
यह और उपर बताये गये सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे एक दिलचस्प, संसनीखेज़ फिल्म "आग से खेलेंगे" में।
(From the official press booklet)