शैलेन्द्र पूरी- दुनिया के लिए एक महान गीतकार और कवि, मगर मेरे लिए सिर्फ बाबा! दरअसल हम सभी भाई बहन अपने पिता शैलेन्द्र जी को बाबा कहकर पुकारा करते थे! उस समय की बम्बई में चाहे डैडी और पापा कहने का चलन था मगर बाबा हमारे लिए सिर्फ बाबा थे! और खासतौर पर मेरे लिए बाबा का मतलब था दुनिया भर की नेमतें! अगर में कहूं की में आज तक अपने बाबा की इबादत करता हूँ तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी! और यह इसलिए नहीं की वे महान गीतकार थे, कवी थे, बल्कि इसलिए की वे एक अदभुत इंसान थे!
आलोचकों और समीक्षकों ने बाबा के गीतों की अपने-अपने ढंग से व्याख्या की हे! बहुत से समालोचक तो उनकी तुंलना संत कबीर दास भी करते हैं !में अपने आपको सक्षम नहीं पाता हूँ की उनके गीतों और कविताओं पर टिप्पणी कर सकूँ! मेरा प्रयास यही रहेगा की में आप सबसे साझा कर सकूँ की में बाबा को एक पिता के रूप में कैसा पाता हूँ!
जब बाबा का निधन हुआ उस समय मेरे उम्र करीब पन्द्र-साढ़े पन्द्र साल की रही होगी! उनके रहते एक मस्त मौला सी जिंदगी जी रहा था! ज़माने की कठोर सच्चाइयों से अभी वास्ता नहीं पड़ा था!
वैसे तो बाबा के लिखे गीतों को गुनगुनाते हुए ही बड़ा हुआ हूँ! वो अपनी कविताएँ भी कभी कभी सुनाया करते थे! यह भी सच हे की उनके लेखन की गहराई को उस समय नहीं पकड़ पाता था! बाबा के गीत की हर पंक्ति में कैसे एक सन्देश छिपा होता था, उसे समझ पाने के परिपवक्ता अभी मुझ में विकसित नहीं हुई थी!बस उनके लिखे गीत संगीत की धुनों पर थिरकते थे और में उन गीतों के सुरीलेपन में खो जाता था! बाबा के जाने के बाद जब में बड़ा हुआ तो कुछ-कुछ समझ आने लगा की बाबा की लेखनी से कितने महान गीतों का जन्म हुआ हे!
यह तो छुटपन से ही महसूस होने लगा था की हमारे बाबा कोई मामूली इंसान नहीं जरूर कोई सेलेब्रिटी हैं! सिर्फ संगीतकार, फिल्म निर्माता, निर्देशक या लेखक ही नहीं, फ़िल्मी दुनिया के तमाम चकाचोंध कर देने वाले नाम भी हमारे घर पर आया करते थे! जाहिर हे की मुझे राज कपूर अंकल का घर आना खास तौर पर अच्छा लगता था! उनकी एक विशेष आदत थी कि वे हमेशा बाबा को सोफे पर बिठा कर खुद पर्श पर उनके पैरो के नजदीक बैठते और उन्हें,कविराज' या ''पुश्किन' कह कर बुलाते ! मेरे लिए वो बहुत गर्व के पल होते की एक इतना महान शोमैन मेरे बाबा को कविराज कहता हे और एक महान रुसी कवि से तुलना करता हे !
पर सेलिब्रिटी होना कभी बाबा के व्यक्तित्व पर हावी नहीं हुआ बाबा के पाऊँ हमेशा जमीं पर टिके रहते! उन्हें सफ़ेद कुरता -पजामा या सफ़ेद पेंट-शर्ट पहनना पसंद था, कभी-कभार जब किसी फिल्म के प्रीमियर पर या पार्टियों में जाना होता तब शूट पहनते ! उन्होंने अपने बचपन की और शुरूआती दिनों के मुश्किलों और संघर्ष को हमेशा याद रखा! शायद यही वजह रही होगी की बाबा लोगों के दुःख दर्द आसानी से समझ लेते थे और जब भी मौका पड़ता यथासंभव अपने आसपास के लोगों की खुले दिल से मदद करते!
उनका स्वभाव ऐसा था की हम बच्चों पर उनके हाथ उठाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था ! जब किसी बात के लिए बाबा नाराज भी होते और अपनी नाराजगी हमारे ऊपर जतनी होती तो उनका तरीका हमारी मन के तरीके से एकदम अलग होता ! मेरी माँ अंग्रेजी की इस कहावत: स्पेयर दी रोड एंड स्पॉयल दि चाइल्ड'' में विश्वास रखती थी और जब जब हम उनकी बातें न मानते या अनुशासन तोड़ते, तो हमारी अच्छी पिटाई होती !
दूसरी तरफ बाबा ऐसे थे जो कभी अपनी बात समझाने के लिए डांट या पिटाई का इस्तेमाल नहीं करते ! उनकी आवाज में ही कुछ ऐसा असर होता की सुनते ही हमे अपने गलती का अहसास हो जाता !
मुझे एक बार कि घटना याद हे- स्कूल में मेरे नंबर अच्छे नहीं आए और जो रिपोर्ट कार्ड मिला वह अगले दिन माँ-बाप से दस्तखत करा के स्कूल में क्लास टीचर को वापस देना था ! मैं अपना रिपोर्ट कार्ड लेकर बाबा के पास गया और उनके हाथ में थमा कर उस पर दस्तखत करने को कहा ! मेरा रिपोर्ट कार्ड देखकर बाबा बहुत हताश हुए ! उन्होंने मुझसे पूछा, कि इतने कम नंबर क्यों आए आखिर स्कूल की पढाई-लिखाई के आलावा तुम लोगों के पास और क्या काम हे? और यदि एक ही काम हे तो स्कूल में अच्छा परफॉर्म करना चाहिए !'' मेरे पास बाबा के सवाल का कोई जवाब नहीं था और में अपनी नजरें झुके पाव टेल की फर्श देखता रहा ! मुझ में इतना साहस ही नहीं था की उनकी आँखों में आखें डाल कर बात कर सकूँ! बाबा ने चुपचाप रिपोर्ट कार्ड पर दस्तखत कर दिए और कहा-अब तुम जाओ , आज से मैं तुमसे बात ही नहीं करूँगा !
बाबा स्वभाव से एक पारिवारिक व्यक्ति थे ! हालांकि उनका काम ही ऐसा था की दिन और रात व्यस्त रहते, लकिन जब भी सम्भव होता उन कामों के बीच से वे अपने परिवार के लिए हमेशा समय निकालते ! ऐसे में वे पूरे परिवार को गाड़ी में बिठाकर लम्बी सैर के लिए ले जाते, सिनेमा, नाटक, संगीत के कार्यक्रम दिखाते और समुद्र के किनारे घुमाने ले जाते कभी - कभी बाबा हमें सर्कस दिखाने भी ले जाते थे !
जब कभी बाबा शाम को घर पर होते तो में उनसे अपना स्कूल का होमवर्क जांचने को कहता, कई बार मेने उनसे अलजेब्रा के सवाल भी पूछे हैं ! मुझे हैरानी तब होती जब मेरे कवि बाबा मेरे अलजेब्रा के सवाल इतनी आसानी से किस तरह हल कर देते ! वे मुझे बहुत पयार से सिखाते की अलजेब्रा के सवालों को कैसे चुटकी मारते हँसते खेलते हल क्या जा सकता हे ! इतने वर्षों बाद भी बचपन की ये घटनायें जब याद आती हैं तो मन आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाता !
बाबा अलग-अलग तरह के संगीत सुना करते- कभी बड़े गुलाम अली खान को सुनते, कभी बिस्मिल्लाह खान को सुनते, कभी इकबाल बानो की गजलें सुनते,कभी नेट किंग कोले या लुइ आमर्स्ट्रांग को सुनते- इस कड़ी में और भी बहुतेरे नाम हैं ! पूरी दुनिया के अलग अलग तरह के संगीत में उनकी रूचि ने हम बच्चों के मन में भी हर तरह के संगीत के प्रति आकर्षण पैदा कर दिया ! बाबा हमेशा चाहते थे की में किसी साज़ के बजाने में महारथ हासिल कर लूँ ! इसलिए मुझे हमेशा गाने और कोई साज़ (इंस्टूमेंट) सिखने के लिए प्रोत्साहित करते ! उनके कहने से मैंने पियानो सीखना शुरू किया पर यह सिलसिला बहुत दिनों तक चल नहीं पाया !
बाद में बाबा ने शैली भैया, मेरे एक कजिन और मुझे वायलिन सिखने को कहा !कजिन और शैली भैया , तो कुछ दिनों तक सिखने के बाद बोर हो गए मगर में सीखता रहा ! बाद में मेरे छोटे भाई दिनेश ने भी वायलिन सिखने में मेरा साथ दिया !मैंने उस समय कभी कल्पना भी नहीं की थी की बाबा के कहने से संगीत सिखने में मेरा साथ दिया जो सिलसिला शुरू हुआ था वही एक दिन उनके न रहने पर मुझे प्रोफेशनल म्यूजिशियन तक बना सकता हे और मुझ में परिवार पालने का भरोसा पैदा कर सकता हे ! और हुआ भी यही, इसी से तो में परिवार को आर्थिक तौर पर सभाल पाया और अपने छोटे भाई बहनों की पढाई में योगदान कर पाया !
शरू शरू की बात हे जब में वायलिन बजाना सीख रहा था तब एक दिन बाबा ने अपना वायलिन और म्यूजिक बुक दिखलाने को कहा फिर बोले आज मुझे कुछ बजा कर सुनाओ में बाबा के सोवियत संघ के प्रति झुकाव और कम्युनिस्ट विचारों के बारे में जानता था सो मैंने सांग आफ दि वोल्गा बोटमैन'' बजा कर सुनाया
वह बन्दिस बाबा को पसंद आई और खुश होकर उन्होंने मुझे किताब की अगली बन्दिस बजाने को कहा ! में हिचकिचा रहा था क्योंकि अभी उसकी प्रेक्टिस पूरी नहीं हुई थी और मुझे विश्वास नहीं था की में उस धुन को ठीक से बजा पाउँगा ! बाबा ने मेरा हौसला बढ़ाया मेने हिम्मत करके धुन बजानी शुरू की बाबा बहुत ध्यान
से सुनते रहे ! मैं खासा विचलित खड़ा था ! ना मालूम बाबा क्या प्रतिक्रिया दें ! बाबा ने मेरी पीठ थपथपाई , बेटा, कोशिश करने से मत घबराओ ! जब तक कोशिश नहीं करोगे तो काम में परफेक्शन कैसे लाओगे ! बेहतरीन काम करने का एक ही तरीका हे काम को किया जाय फिर बो कोई भी काम क्यों ना हो ! मुझे उनकी ये बात आजतक याद हे !
अक्सर हर शाम बाबा के साथ बैठकर में समाचार - पत्रों से क्रॉसवर्ड पजल सॉल्व किया करता था ! हालाँकि दिनेश बहुत छोटा था लेकिन हम उसको अपने उस शौक में शामिल करते ! बाबा के साथ पूरे किये इस शौक ने हमें बहुत सारे ने शब्द सिखाए और शब्दों की दुनिया से नाता जोड़ने में मदद की !
यह सच है की जब बाबा हमें छोड़ कर गए , हम सभी बच्चे काफी छोटे थे ! मगर जीवन की हर मुश्किल घडी में उनके गीत हमेशा हमें सही राह दिखाते हैं ! जब कभी सामने गहरी काली सुरंग दिखाई देती हे और मन हताशा से भर जाता है तो बाबा के गीतों के शव्द एक सकारात्मक ऊर्जा बन कर लगातार मेरी हिम्मत बढ़ाते हैं ! में बाबा को अपने भीतर महसूस करता हूँ ! पल पल पर वे मुझे राह दिखाते हैं !मेरा प्रयास रहता हे की में बाबा की दिखाई विनम्रता ईमानदारी ,निष्पक्षता की राह पर चल सकूँ ! बाबा आपने लिखा थ किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है बस आपका जलाया प्यार का दिया दिल में जलता रहे
This is a reproduction of the original published in Dharti Kahe Pukar Ke published by V K Global Publications Pvt. Ltd., 2019.
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