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केदार शर्मा ओर पृथ्वीराज कपूर की दोस्ती और समझदारी

21 May, 2020 | Long Features by Ajay Brahmatmaj
Kidar Sharma. Image Courtesy: Cinemaazi archives

फिल्म गलियारे और फिल्मप्रेमियों के बीच यह किस्सा आम है कि शोमैन राज कपूर शुरू में केदार शर्मा के सहायक थे. वह केदार शर्मा की तीसरे सहायक थे. उनका काम क्लैप देना था. एक बार उनसे ऐसी गलती हो गई कि केदार शर्मा ने पूरी यूनिट और शूटिंग देखने आई भीड़  के सामने उन्हें थप्पड़ मारा. उस थप्पड़ की अनुगूंज आज भी फिल्मी किंवदंतियों में सुनाई पड़ती है. इस थप्पड़ के आगे-पीछे की घटनाओं में किसी की रुचि नहीं रहती. वैसे केदार शर्मा के बारे में राज कपूर की यह  मशहूर उक्ति है, ‘केदार शर्मा अकेले संस्थान की तरह हैं. उन्होंने फिल्म मेकिंग के बारे में मुझे सब कुछ सिखाया.’

कम लोग जानते हैं कि राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर और केदार शर्मा की दोस्ती बहुत पुरानी थी. इसकी शुरुआत कोलकाता में हुई थी. तब पृथ्वीराज न्यू थिएटर्स के एक्टर थे और केदार शर्मा देवकी बोस के आकर्षण और प्रभाव में कोलकाता पहुंचे थे. उनकी इच्छा न्यू थिएटर्स में देवकी बोस के साथ काम पाने की थी. पृथ्वीराज कपूर और केदार शर्मा की प्रगाढ़ता की बात करने के पहले आइए थोड़ा जान लें कि केदार शर्मा कौन थे?
  

फिल्म गलियारे और फिल्मप्रेमियों के बीच यह किस्सा आम है कि शोमैन राज कपूर शुरू में केदार शर्मा के सहायक थे.
विभाजन के पहले के पश्चिमी पंजाब के सियालकोट सूबे के नारोवाल गांव में केदार शर्मा का जन्म हुआ. निर्धन परिवार में जन्मे केदार शर्मा का बचपन भयंकर गरीबी में बीता. वे पढ़ने-लिखने में तेज थे. उन्हें वजीफा मिलता था. पिता मेधावी पुत्र से बहुत खुश रहते थे. वह खुद उन्हें गांव में आयोजित झांकियों में ले जाते थे. उन्होंने बेटे को संगीत की शिक्षा भी दी थी. छोटी उम्र में ही केदार शर्मा ने हारमोनियम बजाना सीख लिया था. संगीत, कविता, साहित्य और नाटक में केदार शर्मा की रुचि बढ़ती जा रही थी. इस बीच फिल्में देखने का भी शौक हो गया था. फिल्मों से जुड़ने और ‘ड्रीम मर्चेंट’ बनने की ख्वाहिश बचपन में ही कुलांचे मारने लगी थी.
फिल्मों से जुड़ने और ‘ड्रीम मर्चेंट’ बनने की ख्वाहिश बचपन में ही कुणाचे मारने लगी थी.
पिता ने आगे की पढाई के वास्ते कॉलेज में एडमिशन के लिए ₹300 दिए थे, लेकिन केदार शर्मा अपने संगीत शिक्षक मास्टर गुरदीत सिंह के साथ मुंबई जाने का मन बना चुके थे. दोनों ने मुंबई की ट्रेन पकड़ ली. मास्टर गुरदीत सिंह से उन्होंने पिता को पत्र लिखवाया कि केदार ‘ड्रीम  मर्चेंट’ बनने के लिए मुंबई जा रहा है. मैं इस सपने में उसकी मदद कर रहा हूं.’ उस समय के मुंबई प्रवास और प्रयासों में केदार शर्मा और उनके गुरु दोनों की समझ में आया कि उनकी प्रतिभा को कोई नहीं पहचान पा रहा है. स्टूडियो दर स्टूडियो के चक्कर लगाने और तमाम किस्म के लोगों से मिलने के बाद केदार शर्मा को एहसास हुआ कि अभी उनका वक्त नहीं आया है. उन्होंने पंजाब लौट जाना उचित समझा. घर लौटने पर पिता की भरपूर गालियां मिलीं. बहरहाल,इस बार एडमिशन के लिए वे खुद साथ में कॉलेज गए. केदार शर्मा ने पढ़ाई पूरी की. परीक्षा दी. परीक्षा खत्म होने के बाद उन्होंने न्यू थिएटर्स की ‘पूरण भगत’ फिल्म देखी. देवकी बोस निर्देशित इस फिल्म ने उन्हें इतना मुग्ध और प्रभावित किया कि उन्होंने अकेले जा कर अनेक बार यह फिल्म देखी. उन्होंने तय कर लिया कि अब देवकी बोस की तरह ही डायरेक्टर बनना है. ‘ड्रीम मर्चेंट’ बनना है.
 
Prithviraj Kapoor. Image Courtesy: Film India, 1941

पिता चाहते थे कि केदार पीएचडी कर लें और प्रोफेसर बन जाएँ. उन दिनों प्रोफेसर होने की अपनी खास कद्र थी, लेकिन केदार ने तो फिल्मों में जाने की ठान ली थी. पिता और पुत्र के बीच बहस हुई. किसी भी तरह केदार नहीं माने तो पिता ने जायदाद से बेदखल करने तक की धमकी दी. केदार राजी हो गए और एक सादे कागज पर उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया. अगले दिन पिता ने कटाक्ष किया तो महाशय की सवारी कोलकाता कब जा रही है? केदार ने शांत स्वर में जवाब दिया.’ ₹25 घट रहे हैं. रेल टिकट के पैसे नहीं है मेरे पास. अगर कोई दे दे तो मैं पहली कमाई से लौटा दूंगा.’ पिता ने किसी भी प्रकार की मदद से इनकार कर दिया. तब तक केदार की शादी हो चुकी थी. उस रात बिस्तर पर जागे और बेचैन करवट बदलते पति को देखकर पत्नी रामदुलारी ने उन्हें बचा कर रखे ₹25 दिए और अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रेरित किया. घर से चलने के पहले माँ ने केदार शर्मा से तीन कसमें लीं. 1.कभी शराब नहीं छुएंगे, 2.शाकाहारी बने रहेंगे और 3.कभी ऐसी फिल्म नहीं बनाएंगे जो मां-बेटी एक साथ नहीं देख सकें. मां की तीनों कसमें हमेशा उनके साथ रहीं और मार्गदर्शन करती रहीं. उनकी फिल्में इसका साक्षात उदाहरण हैं.
घर से चलने के पहले माँ ने केदार शर्मा से तीन कसमें लीं. 1.कभी शराब नहीं छुएंगे, 2.शाकाहारी बने रहेंगे और 3.कभी ऐसी फिल्म नहीं बनाएंगे जो मां बेटी एक साथ नहीं देख सकें. मां की तीनों कसमें हमेशा उनके साथ रहीं और मार्गदर्शन करती रहीं.
बहरहाल, केदार शर्मा कोलकाता पहुंचे. गुमान था कि अपनी कलात्मक संवेदना और ज्ञान की वजह से उन्हें न्यू थिएटर्स में तुरंत एंट्री मिल जाएगी. देवकी बोस से उनकी मुलाकात हो जाएगी. जमीनी सच्चाई सपनों से कठोर होती है. न्यू थिएटर्स का पठान दरबान उन्हें गेट से अन्दर घुसने भी नहीं देता था. केदार परेशान और निराश थे. तभी किसी ने मदान थिएटर्स में असिस्टेंट पेंटर की नौकरी की जानकारी थी. वहां ₹100 की नौकरी मिली तो केदार शर्मा ने टालीगंज में एक कमरा किराए पर ले लिया. टालीगंज में रहने के दौरान ही केदार शर्मा को पता चला कि पंजाब से आए दो कलाकार पृथ्वीराज कपूर और कुंदन लाल सहगल पास में ही रहते हैं. उनका पता-ठिकाना मालूम कर केदार शर्मा उनसे मिलने पहुंचे. पास में पृथ्वीराज कपूर का घर था,इसलिए पहले उनके घर गए. उनके बेटे रणबीर(राज कपूर)से मुलाकात हुई. गुलाबी चेहरे और नीली आँखों के रणबीर ने बताया कि पापा अंदर कमरे में हैं. वह सितार का रियाज कर रहे हैं. तब तक पृथ्वीराज की नजर केदार पर पड़ गई थी. उन्होंने हाथ के इशारे से बुलाया और पास में बैठने को कहा. वह सितार पर राग भैरवी बजा रहे थे. रियाज के बीच उन्होंने पूछा, ‘तुम कौन हो और मेरे पास क्यों आए हो?’ केदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर से मिलने के पहले ही अभ्यास कर लिया था कि उन्हें क्या-क्या कहना है? उन्होंने झट से बताया, ‘मिस्टर कपूर, मैं कवि हूं. साथ में नाटककार, कंपोजर और स्टेज एक्टर भी हूं. अभी मैंने अंग्रेजी में एमए किया है. देवकी बोस से मिलने मैं यहां आया हूं. क्या आप पंजाबी भाई होने के नाते मुझे उनसे मिलवा देंगे?’ पृथ्वीराज सितार के तारों को छेड़ते हुए बोले, ‘काश मैं तुम्हारी मदद कर पाता. हम तो कठपुतली हैं. विधाता जो चाहता है, वही होता है. हाल ही में मैंने अपने भाई त्रिलोक की सिफारिश की है. फिर से किसी और के लिए उनसे मदद नहीं मांग सकता. मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता. मेरी सलाह है कि तुम के एल सहगल से मिल लो. वे पास में ही रहते हैं. शायद वे मदद कर दें.’
पृथ्वीराज सितार के तारों को छेड़ते हुए बोले, ‘काश मैं तुम्हारी मदद कर पाता. हम तो कठपुतली हैं. विधाता जो चाहता है, वही होता है. '
पहली मुलाकात में पृथ्वीराज कपूर की स्पष्ट मनाही के बावजूद केदार शर्मा रुष्ट नहीं हुए. पृथ्वीराज ने बगैर लाग-लपेट के मना किया था, लेकिन साथ ही के एल सहगल से मिलने की राह दिखाई थी. यह एक अलग किस्सा है कि केदार शर्मा कैसे के एल सहगल से मिले और वे उन्हें दुर्गा खोटे के पास ले गए. आखिरकार देवकी बोस से मुलाकात हुई. देवकी बोस ने काम देने का आश्वासन दिया और अपनी अगली फिल्म ‘सीता’ शुरू होने पर केदार शर्मा को स्टील फोटोग्राफी की जिम्मेदारी दे दी. पहली ही मुलाकात में केदार शर्मा की पृथ्वीराज और के एल सहगल की दोस्ती हो गई थी, जो आजीवन बनी रही. ‘सीता’ में दुर्गा खोटे नायिका थीं और पृथ्वीराज कपूर नायक की भूमिका निभा रहे थे. इसी फिल्म में त्रिलोक कपूर को भी भूमिका मिली थी. इस फिल्म की शूटिंग के दरम्यान लगातार मिलते रहने से केदार शर्मा और पृथ्वीराज कपूर की दोस्ती गाढ़ी हुई.

‘सीता’ के सेट पर हुए एक हादसे ने उन दोनों को और करीब ला दिया. ‘सीता’ में देवकी बोस ने भारतीय फिल्मों के इतिहास में पहली बार तूफान का सीन शूट किया था. नया प्रयोग था. तब ‘स्टॉर्म फैन’(तेज़ हवा के लिए) नहीं होते थे. इस सीन में तेज हवा दिखाने के लिए जहाज मंगवाया गया था. तूफ़ान के लिए जहाज का पंखा चलाना था. दुर्गा खोटे के लिए मार्किंग कर जहाज के पंखे चला दिए गए थे. पंखे से तेज हवा चली तो सामने रखी पत्तों की ढेर और टहनियां उड़ने लगीं. अचानक केदार शर्मा ने देखा कि जहाज के आगे रखे पत्ते तेजी से कम हो रहे हैं. उस तरफ यूनिट के किसी सहायक का ध्यान भी नहीं है. अतिरिक्त होशियारी दिखाने के लिए केदार शर्मा पत्ते लेकर बढे. तेजी से चलता पंखा उन्हें दिख नहीं रहा था. वे बढ़ते जा रहे थे. तभी कोई चीखा. देवकी बोस ने उछलकर पीछे से केदार शर्मा को खींचा और पटका. थोड़ी भी देर हो जाती तो केदार शर्मा के परखच्चे उड़ जाते. तुरंत शूटिंग रोक दी गई. देवकी बोस गुस्से में तमतमा रहे थे. काटो तो खून नहीं. केदार शर्मा डर से कांप रहे थे. पृथ्वीराज ने उनके कांपते हाथों को मजबूती से पकड़ा और एक तरफ ले गए. दोनों पास में रखी एक बेंच पर बैठे, पृथ्वीराज कपूर ने उनकी आंखों में देखते हुए समझाया, ‘अभी तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े हो जाते. नकली जंगल में तुम्हारे लोथड़ा और खून छितराया रहता. आज ‘ड्रीम मर्चेंट’ का सपना टूट गया होता. फिल्म इंडस्ट्री को तुम्हारी मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन तुम्हारे बूढ़े मां-बाप और तुम्हारी जवान पत्नी तो तुम्हारी अच्छी खबर के इंतजार में है. उन पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ता.’ उस रात पृथ्वीराज मौत के मुंह में जाने से बचे और घबराये केदार को अपनी साइकिल पर बिठाकर घर तक छोड़ने गए. 
 
‘सीता’ फिल्म में पहली बार देवकी बोस तूफान का सीन शूट किया था. किसी भी भारतीय फिल्म में तूफान पहली बार दिखाया जा रहा था. तब ‘स्टॉर्म फैन’ नहीं होते थे. इस सीन में तेज हवा दिखाने के लिए जहाज मंगवाया गया था.
उसके बाद ‘सीता’ के सेट पर चल रही अंदरूनी पॉलिटिक्स से तंग आकर केदार शर्मा ने इस्तीफा दे दिया. उनके इस रुख से देवकी बोस और पृथ्वीराज दोनों खुश हुए. पृथ्वीराज ने बताया कि मेरा बेटा रणबीर तुम्हें ‘शेर’ कहता है. उससे तुम मिला करो. वह तुम्हारी बहुत इज्जत करता है. उसके लिए तुम जीनियस हो. पृथ्वीराज और केदार की मुलाकातें बढ़ती गयीं. इस दौरान देवकी बोस से मनमुटाव भी हुआ, लेकिन पृथ्वीराज हर कदम पर केदार का हौसला बढ़ाते रहे. न्यू थिएटर्स के दिनों का एक मजेदार वाकया भी है. पृथ्वीराज टालीगंज से भवानीपुर के बड़े फ्लैट में रहने चले गए थे. रोज शाम को पांच बजे जब दोनों स्टूडियो से निकलते तो पैदल केदार शर्मा के घर तक आते थे. पृथ्वीराज की साइकिल साथ में रहती थी. दोनों थोड़ी देर अंधेरा होने के पहले तक केदार के घर के पास एक लैंप पोस्ट के नीचे खड़े होकर बातें करते थे. फिर पृथ्वीराज साइकिल से अपने घर चले जाते थे. एक शाम दोनों लौटते समय रोज की तरह लैंप पोस्ट के नीचे खड़े होकर बातें करने लगे. उस शाम उर्दू शायरी पर दिलचस्प बातें होने लगीं. करीब आधे घंटे के बाद न्यू थिएटर्स के मालिक बीएन सरकार अपनी कार से जाते दिखाई पड़े तो दोनों ने उनका अभिवादन किया. उस शाम बातचीत का सिलसिला बढ़ता गया.. केदार पास के घर नहीं गए और न पृथ्वीराज अपने घर. दोनों वहीं लैंप पोस्ट के नीचे पूरी रात बातें करते रहे. अगली सुबह साढ़े नौ बजे बीएन सरकार ने दफ्तर जाते समय उन्हें वहीं खड़े देखा तो गाड़ी रोक दी. उन्होंने उनसे पूछा, ‘क्या तुम दोनों कल शाम से यहीं खड़े बातें कर रहे हो? तब दोनों को एहसास हुआ कि इस बीच ना तो उन्हें भूख-प्यास लगी और ना झपकी आई, उन्हें अपने घर जाने की सुधि भी नहीं रही. वे 16 घंटों से बातें किए जा रहे थे. ऐसी थी उनके बीच की समझदारी और दोस्ती.
पृथ्वीराज ने बताया कि मेरा बेटा रणबीर तुम्हें ‘शेर’ कहता है. उससे तुम मिला करो. वह तुम्हारी बहुत इज्जत करता है. उसके लिए तुम जीनियस हो.
न्यू थिएटर्स की फिल्म ‘विद्यापति’ के हिंदी संवाद और गीत केदार शर्मा लिख रहे थे. उन्होंने विद्यापति के मूल मैथिली गीतों को हिंदी अभिव्यक्ति दी थी. उनकी इस प्रतिभा से देवकी बोस और संगीतकार आर सी बोराल बहुत खुश थे. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक बार एक दृश्य में केदार शर्मा ने मूल बांग्ला पटकथा से फेरबदल कर दी. उन दिनों बांग्ला और हिंदी में बन रही फिल्मों में पहले बांग्ला के कलाकारों के साथ सीन शूट कर लिए जाते थे. फिर उसी तरह की एक्टिंग और संवादों को हिंदी में दोहरा दिया जाता था. इस बार फेरबदल किए गए दृश्य मैं संवाद अलग थे. संवाद अलग होने से पृथ्वीराज की अदाकारी भी मूल से अलग हो गई. देवकी बोस नाराज हुए. उन्होंने यहां तक कह दिया कि मैं तुम दोनों पंजाबियों से निर्देशन नहीं सीखूंगा. मैं डीके बोस हूं. इस यूनिट का कैप्टन. शूटिंग पैकअप करो और सभी घर जाओ. मैं अदना संवाद लेखक और उसके दोस्त अभिनेता से अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता. केदार और पृथ्वीराज सकते में आ गए. बात बीएन सरकार तक पहुंची, लेकिन उन्होंने केदार और पृथ्वी का समर्थन कर दिया. मन में खटास तो आ ही चुकी थी. केदार शर्मा की अगली हरकत ने आग में घी का काम किया. एक दिन शूटिंग रुकी हुई थी तो केदार ने स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए उठा ली. उन्हें लगा कि मैं फिल्म का संवाद लेखक और गीतकार हूं तो मेरा इतना हक तो बनता है कि मैं पूरी स्क्रिप्ट पढ़ सकूं. केदार को स्क्रिप्ट उठाते देखते ही देवकी बोस आग बबूला हो गए. उन्होंने खरी-खोटी सुनाई. केदार को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने ‘सॉरी’ कह दिया, लेकिन तय कर लिया अब यहाँ काम नहीं करना है. यह बात उन्होंने पृथ्वीराज से शेयर की. पृथ्वीराज ने तपाक से कहा,’अगले सोमवार तक सरप्राइज के लिए तैयार रहना.’ सोमवार आया और पृथ्वीराज ने बताया कि मैंने भी इस्तीफा दे दिया है. केदार शर्मा जा रहा है तो मैं कैसे रह सकता हूं. मैं मुंबई जा रहा हूं. पृथ्वीराज के इस फैसले ने केदार का दिल छू लिया. दोनों ने ‘विद्यापति’ पूरी करने के साथ न्यू थिएटर्स छोड़ दिया.
 
Raj Kapoor. Image Courtesy: Film India, 1949
 
पृथ्वीराज ने टपक से कहा,’अगले सोमवार तक सरप्राइस के लिए तैयार रहना.’ सोमवार आया और पृथ्वीराज ने बताया कि मैंने भी इस्तीफा दे दिया है. केदार शर्मा जा रहा है तो मैं कैसे रह सकता हूं. मैं मुंबई जा रहा हूं. '
केदार शर्मा ने न्यू थिएटर्स से निकलने के बाद पहले ‘औलाद/दिल ही तो है’ और फिर ‘चित्रलेखा’ का निर्देशन किया. दोनों फ़िल्में अपनी नवीनता और भव्यता की वजह से पसंद की गयीं. केदार शर्मा का नाम मुंबई तक पहुंच चुका था. ‘औलाद’ के मुंबई प्रीमियर के समय उनकी मुलाक़ात जद्दनबाई से भी हुई थी. इस बीच पृथ्वीराज ने मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में जगह बना ली थी. केदार से उनका पत्राचार होता रहता था. उन्होंने केदार को तार भेजा कि जल्दी आ जाओ. मैं तुम्हें चंदूलाल शाह से मिलवा दूंगा. उन्होंने तुम्हारी फिल्म ‘चित्रलेखा’ देखी है और तुम्हारे काम से प्रभावित हैं. केदार शर्मा को इसी अवसर की प्रतीक्षा थी. वह दोस्त पृथ्वीराज के आमंत्रण पर मुंबई पहुंचे. चंदूलाल शाह और उनकी पार्टनर गौहर बाई से मुलाकात बहुत अच्छी और फलदायक रही. केदार शर्मा रणजीत मूवीटोन के निर्देशक हो गए. वहां रहते हुए उन्होंने दर्जनों फिल्में निर्देशित कीं. रणजीत मूवीटोन की केदार शर्मा निर्देशित पहली फिल्म ‘अरमान’ थी. मोतीलाल हीरो और खुर्शीद की बहन शमीम हीरोइन थीं.  

रणजीत मूवीटोन के लिए केदार शर्मा ने ‘विषकन्या’ भी निर्देशित की थी. इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, साधना बोस और सुरेन्द्रनाथ मुख्य कलाकार थे. शूटिंग के दरम्यान केदार शर्मा ने महसूस किया कि पृथ्वीराज थोड़े विचलित और उदास रहते हैं. केदार शर्मा ने उनसे पूछा. ‘अगर व्यक्तिगत मामला ना हो तो अपनी समस्या बताओ. आप मुझ पर भरोसा रखें. मैं अपनी सामर्थ्य में कोई भी मदद कर सकता हूं. मुझे लग रहा है कि आप किसी बात से बहुत परेशान हैं.’ पृथ्वीराज ने दिल खोला,’ मैं अपने बेटे राजू के लिए परेशान हूं. जवानी की दहलीज पर खड़ा वह बिगड़ रहा है. मैंने उसे कॉलेज में दाखिला दिलवाया, लेकिन उसका ध्यान लड़कियों में लगा रहता है...’ केदार शर्मा ने पूरी बात सुनने के बाद सलाह दी कि आप उसे मेरे पास भेज दें. मैं शिक्षक भी हूं. मैं उसे अपनी कला और कुछ पाठ सिखा दूंगा. मैं कठोर शिक्षक हूं, लेकिन अत्याचारी नहीं हूँ. हां, आप फिर कोई दखलंदाजी नहीं करेंगे. हम गुरु-चेले की तरह काम करेंगे. वह मेरा सहायक होगा.

 
Kidar Sharma with Raj Kapoor.Image Courtesy: Medium
तुमने कोलकाता में मुझ से एक फिल्म स्ट्रिप दिखाकर पूछा था कि फ्रेम में तस्वीरें हरकत कैसे करती हैं? तब मैंने तुम्हें जवाब दिया था कि मैं पता कर रहा हूं, जिस दिन पता चल गया... मैं तुम्हें जरूर बता दूंगा अब. वक्त आ गया है. मैं तुम्हें बताऊंगा. 
अगले दिन पृथ्वीराज बेटे राज के साथ स्टूडियो में मिलने आए. राज ने पंजाबी चलन के मुताबिक केदार शर्मा का ‘पैरी पैना’ किया. केदार शर्मा ने याद दिलाया कि तुमने कोलकाता में मुझ से एक फिल्म स्ट्रिप दिखाकर पूछा था कि फ्रेम में तस्वीरें हरकत कैसे करती हैं? तब मैंने तुम्हें जवाब दिया था कि मैं पता कर रहा हूं, जिस दिन पता चल गया... मैं तुम्हें जरूर बता दूंगा अब. वक्त आ गया है. मैं तुम्हें बताऊंगा. 

राज कपूर उनके तीसरे सहायक हो गए. उन्हें क्लैप देने का काम दिया गया. राजू ने तत्परता से यह काम किया, लेकिन केदार शर्मा ने गौर किया कि हर बार क्लैप देने से पहले राज बालों में कंघी करता है और लेंस में खुद को मुस्कुरा कर देखता है. एक दिन फिल्म की शूटिंग शहर से 40 किलोमीटर दूर घोड़बंदर में चल रही थी. सूर्यास्त का मनोरम दृश्य लेना था. एक एक्टर के चेहरे पर डूबते सूरज की ‘जादुई रोशनी’ का सीन था. उस दिन गुरु केदार शर्मा ने राज को समझाया भी कि आज कंघी करने में वक्त मत गंवाना. सूरज तेजी से डूबेगा और हम इसे मिस नहीं कर सकते. राज से उन्होंने पूछा भी तैयार हो ना? उधर से ‘यस अंकल’ जवाब आया तो केदार शर्मा ने कैमरा चालू करने की आवाज दी. राज आये. क्लैप देने के पहले उन्होंने आदतन कंघी की और लेंस में मुस्कुरा कर देखा. गफलत में कैमरे के सामने खड़े एक्टर की नकली दाढ़ी क्लैप में फंस गई और निकल आई. गुरु के गुस्से का ठिकाना न रहा. उन्होंने राज को बुलाया और पूरी यूनिट के सामने एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया. शूटिंग देखने आई भीड़ भी वहां मौजूद थी. राज कपूर के गुलाबी गाल पर केदार शर्मा की उंगलियों के निशान पड़ गए थे. राज कपूर ने चूं तक नहीं किया. वे मुस्कुराते हुए लौट गए. 
 
उन्होंने करा और ₹25000 का चेक राज कपूर को दिया और बताया कि मेरी अगली फिल्म के हीरो तुम हो. मैं ही निर्माता हूं. खुशी से राज की आंखों में आंसू आ गए.

अगले दिन फिर से शॉट लिया गया. स्टूडियो लौटने पर उन्होंने राज कपूर को बुलाया. उन्हें भारी ग्लानि हुई थी. उन्होंने महसूस किया था राज तो कैमरे के सामने खड़ा होना चाहता है और मैं उसे कैमरे के पीछे की ट्रेनिंग दे रहा हूं. राज आए तो उन्होंने चहकते हुए अपने अंदाज में पूछा, ‘क्या मैं दूसरा गाल आगे करूं?’ केदार शर्मा ने कहा,’मैंने एक अहम फैसला लिया है.’ उन्होंने करार और ₹25000 का चेक राज कपूर को दिया और बताया कि मेरी अगली फिल्म के हीरो तुम हो. मैं ही उस फिल्म का निर्माता हूं. खुशी से राज की आंखों में आंसू आ गए. कल जब केदार शर्मा ने थप्पड़ मारा था तो राज कपूर ने चूं तक नहीं किया था और आज वह रो पड़े. 

राज कपूर की पहली फिल्म ‘नीलकमल’ थी. उस फिल्म का नाम पहले ‘बेचारा भगवान’ था. राज कपूर की पसंद से फिल्म की हीरोइन के लिए मुमताज(मधुबाला) को चुना गया था. यह उन दोनों की पहली फिल्म थी. राज कपूर आजीवन केदार शर्मा को अपना एकमात्र गुरु मानते रहे और पूरा आदर दिया.

पृथ्वीराज और केदार की दोस्ती बनी रही. केदार शर्मा ने राज कपूर को बहैसियत गुरु पूरे अधिकार से वह थप्पड़ मारा था और फिट राज कपूर की दिली खवाहिश पूरी कर दी थी. उन्हें कैमरे के सामने ला दिया था.


 

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फिल्म समीक्षक,रिसर्चर और यूट्यूबर अजय ब्रह्मात्मज पॉपुलर फिल्मों से परहेज नहीं करते. अजय की  कोशिश है कि पॉपुलर फिल्मों को समझा जाए और उन्हें  गहन एवं गंभीर विषय का दर्जा दिया जाए.उनकी दो पुस्तकें 'सिनेमा समकालीन सिनेमा' और 'सिनेमा की सोच' वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी हैं. 'ऐसे बनी लगान',(सत्यजीत भटकल),'जागी रातों के किस्से'(महेश भट्ट) और 'जीतने की ज़िद'(महेश भट्ट) उनकी अनूदित पुस्तकें। नॉट नल से पतली पुस्तक सीरीज में फिल्मों,फिल्मकारों और कलाकारों पर 10 ईबुक प्रकाशित।
फिलहाल स्तम्भ लेखन और समीक्षा में सक्रिय।


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