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Zindagi Zindagi (1972)

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शहर के दूर आशानगर एक गाँव है। जहाँ के पंचायत के अस्पताल में डाक्टर सुनील काम करता है, अस्पताल के करीब ही उसके रहने के लिए क्वाटर है। ये अस्पताल गाँव के चोधरी रामप्रसाद ने बनवाया था जो दो बार पंचायत के प्रेसीडेन्ट रह चुके है दिल के मरीज़ है और अस्पताल में ही पड़े है मगर तीसरी बार फिर अस्पताल के पलंग पर से ही इलेक्शन हड़ रहे है। डाक्टर सुनील को गाँव का हर आदमी पसंद करता है क्यों के वो ज्यादा तर अपनी मीठी बातो से ही लोगों की बीमारी अच्छी कर दिया करता है। सुनील अपनी इस गाँव की ज़िन्दगी में खोया हुआ है, अचानक एक दिन मीता अपने बच्चे को लिए हुए अस्पताल पहुँचती है और उसे देखते ही सुनील सन्नाटे में आ जाता है उसकी ज़िन्दगी जो एक ठहरे हुये समुन्द्र की तरह थी उसमें तूफान आ जाता है और उस गहरे समुन्द्र की तह में दबी हुई आठ साल पुरानी यादे उभरने लगती हैं और वो उन यादों में खो जाता है, जब पहली बार वो दिल्ली में मेडीकल कालेज में मीता से मीला था जहाँ उसको रईस बाप मरीज़ था और फिर उन दोनों की मुलाकाते दोनों एक दूसरे की तरफ चले आ रहे थे।

इधर मीता जब सुनील को अपना सारा हाल बताती है के कैसे उसके बेवा हो जाने के बाद उसने अपनी सारी जायदाद दान कर दी और खुद एक फेक्टरी में काम करने लगी और फिर एक दिन उसका बच्चा बाबु सीढ़ीयों पर से गीर पड़ा और उसकी टाँग में ऐसी छोट लगी कि वो फिर चल न सका और मीता उसके अलाज के लिये जगह-जगह गयी लेकिन कई डाक्टरों की कोशिश के बाद भी पैर अच्छा ना हो सका और वे किसी तरह सुनील का पता मालुम करके उसके पास आयी, आखीरी उम्मीद लेकर। क्योंकि उसे हमेशा सुनील पर भरोसा था। सुनील मीता को अपने क्वाटर में मेहमान रखता है और एक कमरा उसके लिए ठीक कर दिया जाता है, फिर सुनील बाबु का इलाज शुरू करता है। डाक्टर सुनील को जब अपने कामो से फुरसत मीलती है तो वो अपनी ज़िन्दगी की पुरानी यादों में खो जाता है। जब वो और मीता एक-दूसरे के इतने करीब आ गये थे कि एक दिन उन्होंने शादी का फैसला कर लिया और जब सुनील अपनी माँ को लेकर बात पक्की करने मीता के घर गया तो वह मीता के चाचा और चाची जो अब उसके गार्डीयन थे तो उन्होंने उसकी माँ की बेइज्जती कर के उनको घर से निकाला था और इसी गुस्से में सुनील अपनी माँ को साथ लेकर शहर छोड़कर लापता हो गया था फिर इस छोटे से गाँव में आकर अपनी ज़िन्दगी के दिन गुज़ार रहा था। इधर सुनील के इलाज से बाबू को कोई फायदा नहीं होता तो एक दिन वो उसे अपने साथ लेकर दिल्ली जाता है अपने कालेज के प्रीन्सीपल डाक्टर मुकर्जी से मशवरा करने जो बड़े मशहूर है और वहीं पर उनकी राय के मुताबीक बाबु के पांव का आपरेशन होता है और कुछ दिन बाद सुनील बाबु को लेकर गाँव वापस आता है जहाँ मीता बेचैनी से दोनो का इन्तज़ार कर रही थी गाँव आने के बाद सुनील बाबु के पैर की मालीश शुरू करता है लेकिन उस आपरेशन और सुनील की सारी मेहनत के बाद भी बाबु ना खड़ा हो सकता है ना चल फिर सकता है और मीता जो बड़ी उम्मीदे लेकर आयी थी बहुत निराश होती है, सुनील से यह बरदाश्त नहीं होता और के जान तोड़कर कोशिश करता है बाबू को अच्छा करने के लिये। बाबु फिर से चल पाता है या नहीं और सुनील और मीता की जिन्दगी किस नये रास्ते पर चलती है- यह आप परदे पर देखीये।

(From the official press booklet)