रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम का वह पवित्र बंधन है, जिसे कोई नहीं तोड़ सकता, आज से बहुत वर्ष पहले की बात है।
नागदेवी दूसरी नागीनों के साथ पृथ्वी पर भगवान शिव की पूजा करने के लिए आई थी, दौलत के लालच में एक सपेरे ने उसे पकड़ लिया, लक्ष्मी व उसके पति ने सपेरे को अनमोल हीरों का हार देकर नागदेवी को मुक्त करा दिया, नागदेवी ने प्रसन्न होकर लक्ष्मी को सन्तान का आशीर्वाद दिया।
कुछ समय के बाद लक्ष्मी की गोद भर गई, किन्तु विधी के विधान के कारण लड़की के जन्म लेते ही माता-पिता अपनी बेटी आशा को उसके चाचा चाची को सौंप कर चल बसे, चाचा तो सज्जन स्वभाव के थे, किन्तु चाची शांता दुष्ट विचारों की थी, रात दिन वह बच्ची से काम कराती, उसे तरह तरह कष्ट देती थी, एक दिन शांता की बेटी सविता अपने भाई के हाथों में राखी बांध रही थी, आशा ने भी उसे राखी बांधनी चाही तो चाची ने उसे बहुत मारा, आशा दुःखी होकर बाहर चली गयी और उसने नागदेवता को पुकारा, नागदेवी के कहने पर नागपुत्र ने आशा के पास आकर उससे राखी बंधवाई और हर संकट में साथ देने का वचन दिया।
धीरे धीरे समय बीतता गया, आशा व सविता जवान हो गईं, सविता की शादी में आशा अमर को बचाने में खुद घायल हो गई, इस घटना से अमर के दिल में आशा के लिए प्रेम पैदा हो गया, पहले तो अमर की मां आशा को मनहूस व अभागिन समझकर बहू बनाने पर तैयार न हुई किन्तु नागभाई के समझाने पर आशा व अमर की धूम धाम से शादी हो गई। दोनों का जीवन सुख से बीतने लगा, पर एक ज्योतिषी की भविष्य वाणी ने इस सुख में दुःख के अंगारे डाल दिए, उसने बताया की आज से छः महीने बाद तेरे सुहाग का सूर्य अस्त हो जाएगा। सुनते ही आशा का रोम रोम कांप उठा, किन्तु उसके नागभाई ने आकर उसे सान्त्वना दी और भगवान शंकर के 16 व्रतों का पालन करने के लिए कहा, अखण्ड सौभाग्य वति का आशीर्वाद दिया।
क्या दुष्ट चाची शांता ने उसके व्रतों को पूरा होने दिया?
क्या आशा 16 सोमवार के व्रत रख कर अपने सुहाग की रक्षा कर सकी?
एक नागभाई ने अपनी बहन की खुशी के लिए क्या क्या त्याग किया?
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(From the official press booklet)