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“खून के रिश्ते” और “प्यार” के बीच एक जबरदस्त टकराव हुआ, और उस टकराव ने एक भावनापूर्ण कहानी को जन्म दिया. वो कहानी जो शिबानी के मासूम दिल पर जालीम राका ने उसके भाई के खून से लिखी.
शिबानी दाना पुर के एक गरीब किसान शंभूनाथ की बेटी जिसकी जिन्दगी की दहलीज पर खुशियों की बारात आने का समय था. वक्त की आँधी ने उसकी तकदीर की राहों में कांटे बिखेर दिए - उसकी रातों की नींद, दिल का चैन सब कुछ लुट गया. बस यही एक जुनून सवार था उस पर कैसे वो अपने भाई को चिता से उठने वाली लपेटो को, राका के खून के छींटों से शांत करे.
जब शिबानी जिन्दगी की इस कशमकश से बूझ रही थी, तो उसकी जिन्दगी में शंकर आता है. शंकर जो एक खूनी. और अपने अतीत की परछाई से पीछा छुड़ाने के शहर से भागा हुआ है. इस छोटे से गाँव में अपने आप कानून की पहुँच से दूर समझ कर शिबानी के घर में पनाह लेता है.
शिबानी अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए शंकर को हथियार बनाना चाहती है. इसलिए वो उससे प्यार का नाटक करती है. मगर शंकर सचमुच उससे प्यार करने लगता है. इस बात से बेखबर कि उसका अतीत इन्स्पेक्टर एम.के. के रूप में साये की तरह उसके पाछे रेंगता हुवा आ रहा है. और उसका भविष्य राका के साथ खून की होली खेलने को व्याकुल है.
भूत, वर्तमान और भविष्य के इस जोरदार टकराव में कुछ पुराने घाव ताजा हो जाते है और कुछ नए जख्म बन जाते है. जिन “जख्मों के निशान” आपके मन से वक्त की हजार आँधियाँ भी नहीं मिटा सकेंगी.
(From the official press booklet)