दानवोंकी पराजय हुअी। बलिराजा मारा गया, मगर शुक्राचार्यने अपनी संजिवन विद्यासे सारे दानवकुल को संजिवन किया। पुनः संग्रामकी सजावट हुअी। उस समय दानवों ने देवों पर आक्रमण किया... दानवोंकी विजय हुअी। अिस तरह शुक्राचार्य की प्रतिज्ञा पूर्ण हुअी। बलिराजा इन्द्रासन पर आरूढ हुआ... किन्तु लक्ष्मी बिना शुक्रचार्य को इन्द्रासन, ईन्द्रजाल जैसा लगा; उसमें भी जब उस जाल में फंसे हुए गरीबोंको बलिराजाके सामने पेश किए गये, तब वह... तीनों लोक का स्वामी भी कंपित हो उठा। गुरुने इस पेहली से छूटने का मार्ग दिखाया और विष्णु-पत्नी भगवती लक्ष्मी को पृथ्वी पर लानेकी आज्ञा दी। आज्ञा का पालन हुआ और पहले पहल भगवती लक्ष्मी, बैकुंठ छोड कर पृथ्वी पर पधारी।
मगर शुक्राचार्य के हृदय को शांति कहां? इन्द्रासेन को कायम बना रखने की लगन में लगे गुरुने अपने शिष्य के पास अश्वमेघ यज्ञ का ऐलान कराया। तब देवमाता अदिति के गर्भ से विष्णु भगवान ने जन्म लिया। वामन रूप धारण कर ईश्वर भूतल पर आये... बलिराजा से तीन डग भूमि की मांग की। बलिने मांग का स्वीकार किया।
पहले डगमें प्रभने पृथ्वी नाप ली, दूसरे में स्वर्ग को समा दिया, अब तीसरा डग? वह डग दिया बलिराजा के मस्तक पर, और अभिमानसे उन्नत बना हुआ वह मस्तक ईश्वर के चरणों में झुक गया।
बलिराजाने अपने हृदय से अभिमान को दूर किया। मगर प्रभु के पैरों से कुचला कर अपमानित बना हुआ अभिमान बलिराजा के मस्तक से निकल कर तीनों लोक के मस्तक-मस्तक पर छा गया... इस दुर्गुण से दबे हुए संसार को मुक्त करने वाले ईश्वरके नये जन्म की अपेक्षा रखने के बजाय देखा अभिमान के अंजाम स्वरूप "वामन अवतार"।
(From the official press booklet)