indian cinema heritage foundation

Veer Bhimsen (1985)

  • LanguageHindi
Share
0 views

कभी किसीके रहते नहीं है सब दीन ऐक समान बाबा समय बडा बलवान।

पांडवो की किर्ती ओर वीर भीमसेन के बाहुबलसे क्रोधीत होकर दूर्योधनने पांडवोका नाश करनेके लिऐ अपने अनुचर पुरोवन को पांडवोके निवास लाक्षागृहमे आग लगानेके लीए भेजा। संजोशवशात वीर भीमसेन जागत गये ओर उसने पुरोचनको बंदीवान बना दिया मगर आग चारो तरफ फैलती ही जा रही थी तब सुखदेवने अपने भविष्य भाखते हुए महलका गुप्तदवार बतलाया ओर पांडव उस जलते हुए महलसे भाग निकले।

उनके चाचा विदूर को इस षडयंत्र की ज्ञान देर से हुई ओर वे गुप्तमार्ग की ओर चल पड़े पांडव अपनी माता कुंता के साथ उन्हें जंगलमें ही मील गये विदुरके कहने पर उन्होने गुप्तवासमे रहना स्वीकार किया ओर वे किचक नगरी की ओर चल पडे। रास्तेमे भीम जब जंगलमे फल आदी तोडने गये तो उनकी राक्षस कन्या हेडम्बासे मुलाकात हुई ओर हेडम्बा वीर भीमसेन पर आकर्षित हो गई। वहा उसका भाइ हेडम्ब आ गया दोनोमें लडाइ हुई ओर हेडम्बको भिमने मार दिया।

हेडम्बाने माता कुंतासे वीर भीमसेन को मांग लिया। ये विधीका विधान भी था और भगवान श्रीकृष्णकी भविष्यवाणी भी थी हेडम्बा  उसे ब्राह्मण सुशर्माके घर ले आई उस वक्त ब्राह्मण सुशर्माके घरके किसी भी एक व्यक्ति की बली राक्षस बकासुर को देनी थी। भीमने इस बातको सुना और उसने बकासुरका वध किया और ब्राह्मण पुत्रशंकर को बचा लिया। इससे खुश होकर सुशर्मा ब्राह्ममणने उन्हें पांचालीके स्वयंवर मे ले गये जहा विर भिमसेन के बंधु अर्जूनने मत्सयवेध किया और द्रौपदी से विवाह कीया कींतु जब वे घर आये मताकुंती ने अनजानेमेही कह दिया की तुम पांचो भाइयों जो लाए वो बाट लो और ईस तरह माताकुंताके वचन ओर द्रौपदीके भगवान शंकरसे मांगे हुए वरदान के मुताबीक द्रौपदी पांचो पांडवोंकी पत्नी बन गई।

वहां बढती हुई दुशमनी को सोचकर कौरवाधी पति महाराजा धृर्तराष्ट्र ने निर्णय किया की राजके दो समान भाग करके दोनो पांडवों और कौरवों में बांटदिये जाय मगर यहाँ मामा शकुनी चाल चल गये के जब देना चाहते हो तो उन्हें एक अलग साम्राज्य दे दो ओर खाडवप्रस्थ देनेका निर्णय किया।

खांडवा प्रस्थ एक निर्जन ओर बंजर इलाका था वहा वे अपना महल बनाना चाहते थे के यकायक दैत्य मयासुर प्रगट हुए और उन्होंने अपनी माया से खांडव प्रस्थ को इन्द्र प्रस्थ बना दिया।

पांडव जुवे मे सब हार बैठे ओर उन्होने द्रौपदीको निर्वस्त्र करना चाहा मगर भगवान श्री कृष्णने द्रौपदीके चीरपुस्कार उसकी लाज बचाई।

चुकी वे जुवे मे हारे हुवे थे उन्हें बारह वर्षका वनबास ओर एक वर्षका अज्ञातवास भोगना पडा।

अज्ञात वासका समय पांडवोने विराट नगरमे बिताया वहा विराट राजके साले किचकने द्रौपदी पर कुदृष्टी की उसका भी वीर भीमसेनने वध किया।

अब वे अपना राज्य हक्क भोगने आये मगर दुर्योधन ने इन्कार कर दिया ओर युद्धका आहावन दिया भगवान श्री कृष्णने भी सोचा युद्ध अनिवार्य है। ओर इस युद्ध मे न सिर्फ कौरव ही मरे, दुर्योधन का भी अंत हुआ और हस्तीना पुरकी गादी पर पांडव विराजमान हुए।

                                                                        (यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानी भवती भारत भगवान श्री कृष्ण)

                                                                                 अल्युत्यानम्धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्

                                                                                  परित्राणाय साधुनांम् विनाश्यच् दुश्कृताम्

                                                                                   धर्म संस्थापनार्थाय संभवामी युगेयुगे

                                                                                        भगवान श्रीकृष्णः

                                                                                 (From the official press booklet)

Crew