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Sonal (1973)

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कालेज में पढ़ने वाली खूबसूरत सोनल बचपन से ही अपनी भाभी के आत्सल्यपूर्ण लालन-पालन में जवान हुई थी। एकबार सोनल अपनी भाभी और छोटे भैया के साथ पिकनिक पर गई हुई थी, वहीं पर वह डा. राजीव के सम्पर्क में आई, जिसके अंदर लोगों की सेवा करने की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। डा. राजीव कोढ़ियों के अस्पताल का चालक था।

एक ओर कोढ़ जैसे असाध्य महारोग के निवारण के लिए उचित उपाय का संशोधन कार्य और दूसरी ओर तेजी से जवान हो रही एक गूँगी बहरी लड़की लक्ष्मी की देखभाल - बस यही राजीव का जीवन बन चुका था। ऐसे में सोनल बहार बन कर डा. राजीव की जीवन बगियामें आई और दोनों की घनिष्ठ मैत्री ने बहुत जल्दी ही उन्हें प्रणय - विभोर दम्पत्ति बना दिया। पिता समान बड़े भाई का विरोध भी सोनल के प्रेम के बीच दीवार न बन सका माँ समान बड़ी भाभी के सहयोग से दोनों एक सूत्र में बंध गए।

अगर प्रेम का पथ मुलायम, कोमल फूलों की सेज है तो काँटों से भरपूर रास्ता भी तो है। समय के साथ-साथ जक्ष्मी और सोनल के मन में इष्र्या की ज्वाला भड़क उठी। इस मनमड़ाव का कारण था राजीव जिसकी पत्नी के प्रति प्रेम व लक्ष्मी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण भावना और संशोधन कार्य के प्रति उसकी कर्तव्यनिष्ठा की कदर न सोनल कर सकी और न लक्षमी। इतना ही नहीं, राजीव के सहायक सतीश की घिनौनी चेष्टाओं ने भी सुलगती आग को हवा देने का काम किया।

राजीव और सोनल के बीच की दरार बढ़ती ही गई। यहाँ तक कि एक दिन परिणामस्वरूप जो विस्फोट हुआ वह था तलाक। इस संघर्ष में सोनल का गर्भपात हो गया। सच्चा प्यार कबतक तड़पता रहा? कब तक सोनल और राजीव एक दूसरे का वियोग सह सके? लक्ष्मी का क्या हुआ? पुराने विचारों वाले रूढ़िवादी सोनल के वकील भाई और अनपढ़ होते हुए भी खुले विचारों वाली सोनल की भाभी एक भीषण संघर्ष में फंस गए कि समाज के ठेकेदारों और धर्मधुरन्धरों की लाज-शर्म और धार्मिकताकी नींव डोल उठी। इस रोमांचकारी कहानी का परिणाम क्या हुआ? देखिये रूपहले पर्दे पर सोनल।

(From the official press booklet)