इन्सान फ़ानी है, और प्यार अमर है।
इसिलये प्यार करने वालों का नाम अमर हो जाता है।
एक बार रवि ने संध्या से कहा- संध्या मैं जानता हूं कि तुम मुझसे प्यार करती हो.... तुम प्यार का मतलब जानती हो?
संध्या ने जवाब दिया- तुम समझा दो।
रवि बोला-प्यार आत्मा का होता है-शरीर का नहीं। शरीर के मिलाप में हवस और आत्मा के मिलाप में भगवान खुद रहते हैं।
उसने यह भी कहा- लोग रुक्मिणी-कृष्ण नहीं कहते, राधा-कृष्ण कहते हैं, क्योंकि राधा के प्यार में त्याग था।
संध्या और रवि बचपन से इकट्ठे खेले थे, इन दोनों का चोली और दामन का साथ रहा था। विधाता ने इनको जैसे एक ही डाल की कली और फूल बनाया था।
एक दिन संध्या ने पूछा- क्या यह सच है कि जब भगवान ने मोहब्बत की किस्मत बनाई थी, तो लिख दिया था कि दो प्यार करने वालों का कभी भी मिलाप न हो।
उसे कोई जवाब न मिला। इसका जवाब हो भी क्या सकता था? होनी तो विधाता के हाथ में है और फिर होनी को कौन टाल सकता है?
’शोला और शबनम’ की कहानी ’संध्या और रवि’ की कहानी है। इसमें एक शोला है और दूसरा शबनम। इनमें शोला कौन है और शबनम कौन?
इन दो प्यार करने वाली रूहों का क्या हुआ? वो मिलीं या नहीं? प्यार सच है या झूठ? प्यार अमर है या फ़ानी?
ये सब कुछ जानने के लिये आप हमारी “शोला और शबनम” देखिये।
“शोला और शबनम” एक अछूती दास्तान है।
(From the official press booklet)