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Sharabi (1964)

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शराबी बड़ी उलझन में था-
जीवन के दोराहे पर
एक ओर शराब थी- दूसरी तरफ् मुहब्बत!
और सवाल था - यह किसे अपनाए किसे ठुकराए?
आख़िर उसने मुहब्बत को अपना लिया!
और वचन दिया - वादा किया - वह कभी शराब नहीं पियेगा!
मुहब्बत अपनी जीत पर मुस्कराने लगी!
दिन गुज़रते गये - मुहब्बत मुस्कराती रही, महकती रही!

लेकिन एक भीगी रात-
भाग्य की एक हलकी सी शरारत ने
उसे फिर उसी उलझन में डाल दिया!
फिर वही सवाल-?
मुहब्बत या शराब? शराब या मुहब्बत?
इस कशमकश में-
शराब जीत गई! शराबी हार गया!
और इस हार पर वह पछताया, बहुत रोया और गिड़गिड़ाया
लेकिन मुहब्बत ने उसे माफ़ नहीं किया!

और फिर वह मुहब्बत को भूलकर शराब का हो गया
अब वह था और शराब थी! शराब थी और वह था!!

और अब मुहब्बत ने उसे अपनाना चाहा, तो अपना न सकी-
बहुत देर हो चुकी थी अब-
अब शराब उसकी रग रग में रच चुकी थी!
उसके खून की एक एक बूंद उससे शराब मांगती थी!
वह अब वहां बहुंच चुका था - जहां से लौट आना मुश्किल था!
पहले वह शराब पीता था! और अब-अब शराब उसे पीती थी!

लेकिन जहां इन्सान असफलल हो जाता है,
और जहां इन्सान के प्रयत्न व्यर्थ हो जाते हैं
वहां समय की टेढ़ी मेढ़ी रेखाएं जीवन का रूख़ पलट देती हैं!

समय की कुछ ऐसी ही टेढ़ी मेढ़ी रेखाओं ने
उसके जीवन का रुख़ पलट दिया!
और वह फिर उस स्थान पर आ गया-
जहां शराब उसके लिये ज़हर और मुहब्बत जिन्दगी थी!

(From the official press booklet)